नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को पुलिस सुधार संबंधी अपने पिछले साल के आदेश में सुधार करते हुए साफ किया कि जिन अधिकारियों का कार्यकाल कम से कम छह महीने बचे हों उनके नाम पर पुलिस महानिदेशक के पद पर नियुक्ति के लिये विचार किया जा सकता है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि संघ लोक सेवा आयोग द्वारा पुलिस महानिदेशक पद के लिये सिफारिशें और नियुक्ति के लिये सूची तैयार करने का काम पूरी तरह से मेरिट के आधार पर होना चाहिए.


शीर्ष अदालत ने उत्तर प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक प्रकाश सिंह के आवेदन पर यह सफाई दी. प्रकाश सिंह ने कोर्ट से अपने तीन जुलाई, 2018 के आदेश में सुधार का अनुरोध किया था.


पूर्व पुलिस महानिदेशक ने आरोप लगाया था कि जुलाई, 2018 के निर्देश में संघ लोक सेवा आयोग को सिर्फ उन आईपीएस अधिकारियों के नामों पर पुलिस महानिदेशक पद पर नियुक्ति के लिये विचार करने के लिये कहा था जिनका सेवाकाल दो साल बाकी हो. उन्होंने आरोप लगाया कि राज्य सरकारें इस निर्देश का दुरूपयोग कर रही हैं और पुलिस महानिदेशक पद पर नियुक्ति के लिये सक्षम वरिष्ठ अधिकारियों को नजरअंदाज कर रही हैं.


सुप्रीम कोर्ट ने जुलाई में पुलिस सुधार के बारे में कई निर्देश दिए थे और पुलिस महानिदेशक जैसे उच्च पद पर नियुक्ति के मामले में पक्षपात और भाई भतीजावाद की संभावनाओं को खत्म करने के इरादे से कोर्ट ने किसी भी पुलिस अधिकारी को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक नियुक्त करने से सभी राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को रोक दिया था.


कोर्ट ने केन्द्र के इस कथन का संज्ञान लिया था कि कुछ राज्यों ने सेवाकाल के अंतिम दिन अधिकारी को पुलिस महानिदेशक नियुक्त करने का तरीका अपना लिया है और इसकी वजह से ऐसा अधिकारी सेवानिवृत्ति की आयु पूरी करने के बाद भी दो साल के लिये सेवा में बना रहता है.


शीर्ष अदालत ने संघ लोक सेवा आयोग को मेरिट और वरिष्ठता को प्राथमिकता देने के साथ ही यह भी निर्देश दिया था कि पुलिस महानिदेशक पद के लिये सिर्फ उन्हीं आईपीएस अधिकारियों के नामों पर विचार किया जाए जिनके पास कम से कम दो साल का सेवाकाल शेष है.


सिंह ने नई याचिका में आरोप लगाया कि सक्षम और ईमानदार पुलिस अधिकारियों को प्रमोशन से वंचित करने के लिये राज्य सरकारें अपने निहित स्वार्थों की वजह से दो साल का न्यूनतम सेवाकाल शेष रहने संबंधी साफ निर्देश का इस्तेमाल कर रही हैं.


प्रकाश सिंह की ओर से अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने दलील दी थी कि इस वजह से उत्कृष्ठ और सक्षम अधिकारियों की पदोन्नति के मामले में अनदेखी की जा रही है क्योंकि उनके पास दो साल का सेवाकाल शेष नहीं है और संघ लोक सेवा आयोग का कहना है कि वह ऐसे नामों पर विचार नहीं करेगा.


भूषण ने इस संबंध में बिहार के पुलिस महानिदेशक का उदाहरण दिया और कहा कि उन्होंने इस्तीफा दे दिया था और वह बीजेपी में शामिल हो गये थे परंतु अब उन्हें पुलिस में शामिल होने की अनुमति देकर पुलिस महानिदेशक बना दिया गया.


केन्द्र की ओर से अटार्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने इस याचिका का विरोध करते हुये कहा था कि कोर्ट ने सेवानिवृत्ति के नजदीक पहुंच रहे पुलिस अधिकारियों को पुलिस महानिदेशक नियुक्त करने की कुछ राज्यों की परंपरा को ध्यान में रखते हुये पहला आदेश पारित किया था.


कुछ राज्यों ने तो पुलिस सुधार के बारे में शीर्ष अदालत के फैसले की भावना को दरकिनार करते हुये कार्यवाहक पुलिस महानिदेशकों की नियुक्ति की थी जबकि कुछ राज्यों ने शुरू में कुछ अधिकारियों को कार्यवाहक पुलिस महानिदेशक बनाया और बाद में सेवानिवृत्ति से पहले ही उन्हें स्थाई कर दिया जिसकी वजह से वह 62 साल तक सेवा में बने रहे.


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