Supreme Court On Waqf Property: सुप्रीम कोर्ट ने अपने हाल के एक अहम फैसले में कहा है कि अगर कोई व्यक्ति वक्फ का ट्रस्टी नहीं है, न ही सह-स्वामी है, लेकिन वह लाभार्थी है तो 'प्रतिकूल कब्जे' के जरिये वक्फ की जमीन होते हुए भी वह उसका अधिकार प्राप्त कर सकता है. पढ़ने में यह बात कुछ पेंचीदा लग सकती है, इसलिए आइए इसे विस्तार से समझते हैं.
वक्फ क्या है?
वक्फ दरअसल अरबी भाषा का शब्द है. इसका मतलब दान की गई जमीन से होता है. इस्लाम में अल्लाह के नाम पर धर्मार्थ कार्यों के लिए दी गई जमीन या संपत्ति 'वक्फ' कहलाती है.
वक्फ का लाभार्थी या बेनिफिशियरी क्या है?
जिस व्यक्ति को वक्फ का लाभ मिलता है, उसे इसका लाभार्थी कहा जाता है. न्यायिक व्यक्ति भी वक्फ का लाभार्थी हो सकता है. यह जरूरी नहीं कि लाभार्थी गरीब ही हो, मुस्लिम कानून के तहत गरीबों को हर वक्फ का अंतिम लाभार्थी माना जाता है.
प्रतिकूल कब्जा क्या है?
प्रतिकूल कब्जे को अंग्रेजी में 'एडवर्स पजेशन' कहते हैं. भारत के कानून के मुताबिक, अगर किसी व्यक्ति की जमीन पर कोई दूसरा व्यक्ति निर्विरोध रह रहा है, उस जमीन पर उसे निर्विरोध रहते हुए 12 साल हो गए हैं तो वह प्रतिकूल कब्जे यानी एडवर्स पजेशन का दावा कर सकता है.
अगर उसका दावा सही पाया गया तो उसे जमीन का टाइटल यानी अधिकार (मालिकाना हक) प्राप्त हो जाता है. इसी तरह अगर कोई व्यक्ति किसी सरकारी जमीन 30 साल से ज्यादा समय से निर्विरोध रह रहा है तो वहां भी वह प्रतिकूल कब्जे का दावा कर उस जायदाद का अधिकार प्राप्त कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट 'साबिर अली खान बनाम सैयद मोहम्मद, अहमद अली खान और अन्य' केस पर सुनवाई कर रहा था. इसी केस सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने एडवर्स पजेशन संबंधी फैसला दिया. शीर्ष अदालत के इसे फैसले के कारण अब वक्फ की जमीनें भी इसी परिधि में आ गई हैं. इसका मतलब है कि अगर कोई व्यक्ति जिसका संबंध वक्फ से उसके ट्रस्टी या सह-स्वामी के रूप में नहीं है और अगर वह केवल वक्फ का लाभार्थी होते हुए निर्विरोध वक्फ की जमीन पर रह रहा है, तो वह प्रतिकूल कब्जे (एडवर्स पजेशन) का दावा कर उस जमीन का अधिकार प्राप्त कर सकता है.
जस्टिस केएम जोसेफ और हृषिकेश रॉय की बेंच ने वक्फ अधिनियम, 1995 से संबंधित एक मामले की सुनवाई करते हुए अपने अहम फैसले में कहा, ''हमारा विचार है कि प्रतिकूल कब्जे से मालिकाना हक हासिल करने का दावा करने वाले वक्फ के लाभार्थी के खिलाफ कोई प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता है.''
'लाभार्थी को मुतवल्ली के साथ नहीं जोड़ा जा सकता है'
बेंच ने आगे कहा, ''वक्फ के एक लाभार्थी को वक्फ के लिए अजनबी के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता है. कोई संदेह नहीं है कि लाभार्थी को मुतवल्ली के साथ नहीं जोड़ा जाना चाहिए. मुतवल्ली वक्फ का प्रबंधक होता है. मुतवल्ली केवल प्रबंधक के रूप में काम करता है. वक्फ की संपत्ति, कानून में सर्वशक्तिमान में निहित है.
परिसीमा अधिनियम की धारा 10 के प्रावधानों के अनुसार वह एक ट्रस्टी के रूप में माना जाता है. एडवर्स पजेशन की दलील के लिए अपेक्षित इरादे की जरूरत होती है, यानी दुश्मनी की संभावना. यह जरूरी अवधि के लिए वास्तविक कब्जे के अलावा है.''
HC के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार कर रहा था सुप्रीम कोर्ट
ये टिप्पणियां वक्फ बोर्ड को संपत्ति के कब्जे की सुपुर्दगी से संबंधित एक अपील में की गईं. बेंच इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील पर विचार कर रही थी और प्रतिवादी (याचिका का जवाब देने वाला व्यक्ति या उत्तरदाता) की ओर से सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दायर अपील पर वक्फ ट्रिब्यूनल से पारित आदेश के खिलाफ पुनरीक्षण का निर्देश दिया गया था.
बुलंदशहर के कलेक्टर ने वक्फ अधिनियम, 1995 की धारा 52(2) के तहत आदेश जारी किया था, जिसे लेकर प्रतिवादी ने फिर से उस आदेश को लेकर अपील की थी. कलेक्टर ने वक्फ बोर्ड के कंट्रोलर की ओर से वक्फ बोर्ड को विवादित जमीन का कब्जा हासिल और सुपुर्द कराने के लिए दिए गए एक अनुरोध के आधार पर कार्रवाई की थी. अनुरोध 1995 के अधिनियम की धारा 52(1) के तहत किया गया था.
मामला जब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो कई सवालों पर विचार किया गया. पहले की मिसालों पर भरोसा करते हुए बेंच ने कहा कि इसमें कोई संदेह नहीं है कि वक्फ संपत्ति प्रतिकूल कब्जे से टाइटल (अधिकार) के अधिग्रहण का विषय हो सकती है. वहीं, मुतवल्ली वक्फ संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे से अधिकार हासिल नहीं कर सकता है जो कि एक सुलझा हुआ पहलू है.
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