Supreme Court on Vacation: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (22 मई) को अपने शेड्यूल और काम के घंटों को लेकर हो रही आलोचना पर बात की और केंद्र सरकार को ही निशाने पर लिया. अदालत ने कहा कि सरकार में जो लोग न्यायपालिका की क्षमता और छुट्टियों पर सवाल उठाते हैं, उन्हें पहले ये सुनिश्चित करना चाहिए कि वे केंद्र की अपील को समय पर दायर करें. इन दिनों सुप्रीम कोर्ट में जजों की होने वाली छुट्टी को लेकर काफी ज्यादा चर्चा हो रही है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस दीपांकर दत्ता और सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, "ये दुर्भाग्यपूर्ण बात है कि जजों की इतनी कोशिशों के बावजूद कहा जाता है कि हम कुछ घंटे काम करते हैं और लंबी छुट्टियों पर जाते हैं. हमारे बारे में हाल ही में एक आर्टिकल लिखा गया था. हम यहां क्या कर रहे हैं, छुट्टियों के दौरान भी आधी रात को पसीना बहा रहे हैं." दरअसल, 20 मई से सुप्रीम कोर्ट में गर्मी की छुट्टियां शुरू हुई हैं, जो 8 जुलाई तक चलेंगी.
निर्धारित समय में याचिका दायर नहीं होने का उठा मुद्दा
जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की आलोचना करने वालों में से कुछ लोग शासन में हैं. इस वजह से अदालत उम्मीद करती है कि केंद्र कम से कम एक केस में तो निर्धारित समय के भीतर अपनी याचिका दायर करेगा. पीठ ने कहा, "कानून के तहत निर्धारित सीमा अवधि के भीतर एक मामला हमारे पास आने दें. शायद ही कोई मामला हो जो निर्धारित समय के भीतर दायर किया गया हो. अधिकारी कभी भी निर्धारित समय 60 या 90 दिन के भीतर नहीं आते."
पीठ ने आगे कहा, "इस अदालत में सभी याचिकाओं को देरी की माफी के साथ आवेदन किया जाता है. इसलिए न्यायपालिका की आलोचना करने वालों को इस पर पहले ध्यान देना चाहिए." वहीं, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने इस तरह की आलोचना को गलत बताया. उन्होंने कहा कि कुछ लोग शायद ये नहीं जानते हैं कि जज दो शिफ्ट में काम करते हैं. एक अदालत में और दूसरा अपने ऑफिस या घर में.
संजीव सान्याल ने उठाया था जजों की छुट्टी का मुद्दा
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की ये टिप्पणी ऐसे समय पर आई है, जब हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आर्थिक सलाहकार परिषद के सदस्य संजीव सान्याल ने एक आर्टिकल लिखा था. इसमें उन्होंने न्यायिक सुधारों की मांग करते हुए तर्क दिया था कि जज कम घंटे काम करते हैं और लंबी छुट्टियों पर जाते हैं. 12 मई को एक पॉडकास्ट में भी उन्होंने यही बात दोहराते हुए कहा था, "हमें न्याय व्यवस्था बदलना होगा. इस तारीख पे तारीख सिस्टम के बारे में सोचें. यह क्या है?"
यह भी पढ़ें: सुप्रीम कोर्ट भी कंफ्यूज! 9 जजों की संविधान पीठ के पास 20 साल से पेंडिंग हैं दो मामले