Supreme Court On Electoral Bonds: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी, 2024) को चुनावी बॉन्ड योजना को लेकर ऐतिहासिक फैसला सुनाया. कोर्ट ने योजना को निरस्त करते हुए कहा कि यह सूचना के अधिकार (RTI) और बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन करती है.
लोकसभा चुनाव से पहले आए इस फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) को छह वर्ष पुरानी योजना में दान देने वालों के नामों की जानकारी चुनाव आयोग को देने के निर्देश दिए. चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की संविधान पीठ ने अपने फैसले में कहा कि एसबीआई को राजनीतिक दलों के भुगतान कराए गए सभी चुनावी बॉन्ड का ब्योरा देना होगा.
कोर्ट ने क्या कहा?
कोर्ट ने कहा कि ब्योरे में यह भी शामिल होना चाहिए कि किस तारीख को यह बॉन्ड भुनाया गया और इसकी राशि कितनी थी कहा कि साथ ही पूरा विवरण छह मार्च तक चुनाव आयोग के समक्ष पेश किया जाना चाहिए. कोर्ट ने आगे कहा कि आयोग को एसबीआई की शेयर की गई जानकारी 13 मार्च तक अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर सार्वजनिक करनी होगी.
बेंच में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा भी शामिल थे. पीठ ने चुनावी बॉन्ड योजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर दो अलग और सर्वसम्मत फैसले दिए.
किस जज ने क्या कहा?
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत बोलने तथा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. उन्होंने फैसला सुनाते हुए कहा, ‘‘चुनावी बॉन्ड योजना और विवादित प्रावधान ऐसे हैं कि वे चुनावी बॉन्ड के माध्यम से योगदान को गुमनाम बनाते हैं. ये वोटर के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करते हैं, साथ ही अनुच्छेद 19 (1) (ए) का भी उल्लंघन करते हैं.’’
सीजेआई चंद्रचूड़ ने खुद की ओर से तथा जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की ओर से फैसला लिखा. उन्होंने कहा, ‘‘यह (बॉण्ड) योजना त्रुटिहीन नहीं है. इस योजना में पर्याप्त कमियां हैं, जो राजनीतिक दलों को उनके लिए किए गए योगदान का विवरण जानने में सक्षम बनाती हैं.
जस्टिस संजीव खन्ना ने एक अलग फैसला लिखा और सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के लिखे गए फैसले से सहमति के लिए अलग-अलग कारण दिए. उन्होंने कहा: “मैं सीजेआई के फैसले से सहमत हूं, लेकिन थोड़े बदलाव के साथ, लेकिन निष्कर्ष वो ही है.”
बेंच ने कहा कि नागरिकों की निजता के मौलिक अधिकार में राजनीतिक गोपनीयता, संबद्धता का अधिकार भी शामिल है. फैसले में जनप्रतिनिधित्व अधिनियम और आयकर कानूनों सहित विभिन्न कानूनों में किए गए संशोधनों को भी अवैध ठहराया गया.
इसमें कहा गया कि एसबीआई चुनावी बॉन्ड जारी नहीं करेगा और 12 अप्रैल 2019 से अब तक खरीदे गए चुनावी बॉन्ड के ब्योरे निर्वाचन आयोग को देगा. कोर्ट ने कहा कि साथ ही एसबीआई को उन राजनीतिक दलों के भी ब्योरे देने होंगे जिन्हें 12 अप्रैल 2019 से अब तक चुनावी बॉन्ड के जरिए धनराशि मिली है.
पीठ ने पिछले वर्ष अक्टूबर में चार याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की, जिनमें कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और गैर सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) की याचिकाएं शामिल हैं.
याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा?
जया ठाकुर ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद न्यूज एजेंसी पीटीआई से बात करते हुए कहा, ‘‘जो लोग चुनावी बॉन्ड के माध्यम से धन दान कर रहे थे वे अपने नाम का खुलासा नहीं कर रहे थे. कहीं न कहीं वे सरकार से कोई फायदा चाहते होंगे. इस फैसले से फर्क पड़ेगा. यह लोगों के हितों की रक्षा करेगा.’’
मामले में ठाकुर के वकील वरुण ठाकुर ने इस फैसले को सरकार के लिए एक झटका बताया ‘‘क्योंकि 2018 से 2024 तक जो भी लेनदेन हुआ है उसे सार्वजनिक करना होगा.’’
ठाकुर ने कहा, ‘‘जिस तरह से योजना के माध्यम से गुमनाम योगदान प्राप्त हुआ उसके लिए यह एक झटका है. अब जवाबदेही तय की जाएगी. यह लोकतंत्र के लिए एक ऐतिहासिक कदम है और आज हम कह सकते हैं कि लोकतंत्र की जीत हुई है.’’
एडीआर की ओर से पेश वकील प्रशांत भूषण ने कहा, ‘‘ सुप्रीम कोर्ट ने एसबीआई को इस बात की पूरी जानकारी देने का निर्देश दिया है कि बॉन्ड किसने खरीदे, किसने भुनाए... यह सारी जानकारी निर्वाचन आयोग को सौंपनी होगी, जिसे इसे अपनी वेबसाइट पर सार्वजनिक करना होगा ताकि लोगों को पता चले कि बॉन्ड किसने खरीदे.’’
चुनावी बॉन्ड योजना क्या है?
चुनावी बॉन्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी 2018 को अधिसूचित किया था. इसे राजनीतिक वित्तपोषण में पारदर्शिता लाने के प्रयासों के तहत राजनीतिक दलों को दिए जाने वाले दान के विकल्प के रूप में पेश किया गया था.
योजना के प्रावधानों के अनुसार, चुनावी बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई द्वारा खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से चुनावी बॉन्ड खरीद सकता है. आलोचकों का कहना था कि इससे चुनावी वित्तपोषण में पारदर्शिता समाप्त होती है और सत्तारूढ़ दल को फायदा होता है.