Sedition Law Hearing: राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट मंगलवार को सुनवाई करने वाली है. पिछले साल मई में जब इस कानून को लेकर सुनवाई हुई, तो अदालत ने केंद्र सरकार को कानून की समीक्षा करने के लिए समय दिया था. उस समय शीर्ष अदालत ने ये भी कहा था कि फिलहाल आईपीसी की धारा 124A के तहत नए मुकदमे दर्ज नहीं किए जाएं. जो मुकदमे पेंडिंग पड़े हैं, उनमें भी अदालती कार्यवाही को रोक दिया जाए.
सुप्रीम कोर्ट में दायर की गई याचिका में राजद्रोह कानून के प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. ये याचिकाएं सुनवाई के लिए एक मई को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष आई थीं. केंद्र सरकार ने अदालत को बताया था कि दंडात्मक प्रावधान की समीक्षा पर परामर्श लेने के अंतिम चरण पर काम हो रहा है. इसके बाद शीर्ष अदालत ने सुनवाई टाल दी थी. अंग्रेजों के जमाने के राजद्रोह कानून को लेकर लंबे समय से विवाद है. इस कानून के गलत इस्तेमाल के आरोप भी लगते रहे हैं.
CJI की पीठ करेगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर 12 सितंबर के लिए अपलोड की गई वाद सूची के मुताबिक, आईपीसी की धारा 124ए (राजद्रोह) की वैधता को चुनौती देने वाली याचिका पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला तथा जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई करने वाली है. अदालत ने एक मई को इन याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की इन दलीलों पर गौर किया था कि सरकार ने आईपीसी की धारा 124ए की पुन: पड़ताल की प्रक्रिया प्रारंभ कर दी है.
सरकार ने की राजद्रोह कानून खत्म करने की बात
केंद्र सरकार ने इस साल 11 अगस्त को एक बड़ा कदम उठाया. सरकार की तरफ से ब्रिटिश कालीन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी), दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) और भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने के लिए लोकसभा में तीन नये विधेयक पेश किए गए. सरकार ने कहा कि अब राजद्रोह कानून को पूरी तरह खत्म किया जा रहा है.
राजद्रोह कानून के तहत अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. इसे देश की आजादी से 57 साल पहले और आईपीसी के अस्तित्व में आने के लगभग 30 साल बाद 1890 में लाया गया था.
यह भी पढ़ें: राजद्रोह कानून बनाम धारा 150...क्या नई बोतल में पुरानी शराब है? पढ़िए पूरी हकीकत