नई दिल्लीः भीख मांगने को दंडनीय अपराध घोषित करने वाले कानूनों की वैधता पर सुप्रीम कोर्ट ने 3 हफ्ते में जवाब मांगा है. याचिकाकर्ता ने कहा है कि इस तरह के कानून जीवन के अधिकार का हनन करने वाले हैं. 10 फरवरी को कोर्ट ने मामले में 5 राज्यों- पंजाब, महाराष्ट्र, हरियाणा, गुजरात और बिहार को नोटिस जारी किया था. राज्यों की तरफ से जवाब न आने के चलते जस्टिस अशोक भूषण और आर सुभाष रेड्डी की बेंच ने आज सुनवाई टाल दी.


याचिकाकर्ता विशाल पाठक ने पंजाब प्रिवेंशन ऑफ बेगरी एक्ट, 1971, बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट, 1959 समेत 5 राज्यों में इस मसले पर बनाए गए कानून की धाराओं को चुनौती दी है. इन कानूनों में भीख मांगते हुए पहली बार पकड़े जाने पर 3 साल तक की सज़ा का प्रावधान है. दोबारा पकड़े जाने पर सज़ा बढ़ सकती है.


याचिका में कहा गया है कि यह कानून समाज के सबसे निर्धन और कमज़ोर लोगों के शोषण का हथियार बने हुए हैं. पुलिस इसके जरिए इन लोगों को डराती-धमकाती है, परेशान करती है. कानून में भिखारियों को सज़ा देने की बजाय उनके पुनर्वास का भी प्रावधान है. लेकिन सज़ा के डर से भिखारी उनके लिए बने बेगर होम में जाने को तैयार नहीं होते.


सम्मान से जीवन के मौलिक अधिकार का हवाला देते हुए याचिका में कहा गया है कि सरकार की विफलता का परिणाम बेघर मजबूर लोगों को नहीं भोगना चाहिए. कई हाई कोर्ट अपने यहां लागू कानून की ऐसी धाराओं को असंवैधानिक करार देकर रद्द कर चुके हैं. बाकी राज्यों के कानूनों को भी रद्द कर दिया जाना चाहिए.


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