सोशल मीडिया से भड़काऊ पोस्ट हटाने की व्यवस्था बनाने पर SC का नोटिस, फेसबुक-ट्विटर की जवाबदेही तय करने की भी मांग
याचिका में ऐसी कई हिंसक घटनाओं का हवाला दिया गया है, जिनके फैलने में झूठी जानकारी देने वाले सोशल मीडिया पोस्ट की बड़ी भूमिका रही है. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने धार्मिक मामलों और देवी-देवताओं पर सोशल मीडिया में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को भी कोर्ट के सामने रखा.
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नई दिल्ली: सोशल मीडिया से आपत्तिजनक और भड़काऊ सामग्री हटाने की व्यवस्था बनाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी किया है. याचिका में इस तरह की सामग्री के लिए फेसबुक, ट्विटर की भी जवाबदेही तय करने की मांग की गई है. विनीत जिंदल नाम के वकील की तरफ से दखिल इस याचिका को कोर्ट ने इसी विषय पर लंबित दूसरी याचिका के साथ जोड़ दिया है. उस याचिका पर पिछले साल 13 अक्टूबर को नोटिस जारी हुआ था.
याचिका में ऐसी कई हिंसक घटनाओं का हवाला दिया गया है, जिनके फैलने में झूठी जानकारी देने वाले सोशल मीडिया पोस्ट की बड़ी भूमिका रही है. इसके अलावा याचिकाकर्ता ने धार्मिक मामलों और देवी-देवताओं पर सोशल मीडिया में की गई आपत्तिजनक टिप्पणियों को भी कोर्ट के सामने रखा. उनका कहना था कि इस समय देश में न तो ऐसे पोस्ट को तुरंत हटाने की कोई व्यवस्था है, न ही फेसबुक और ट्विटर जैसे प्लेटफॉर्म की कोई ज़िम्मेदारी तय की गई है. संक्षिप्त सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता वाली बेंच ने याचिका पर नोटिस जारी कर दिया.
कोर्ट ने कहा है कि इस याचिका की सुनवाई कानून के 2 छात्रों की तरफ से पिछले साल दाखिल की गई याचिका के साथ होगी. स्कंद वाजपेयी और और अभ्युदय मिश्रा की इस याचिका में सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पर लगाम की व्यवस्था बनाने के अलावा फ़र्ज़ी प्रोफाइल पर रोक, आयु के आधार पर सोशल मीडिया में पहुंच, प्लेटफॉर्म की जवाबदेही तय करने जैसी मांग की गई थी.
पुणे के एक लॉ कॉलेज के छात्रों की याचिका में सोशल मीडिया को लेकर सरकारी नियम स्पष्ट न होने का मसला उठाया गया था. बताया गया था कि इसका लाभ उठाकर तमाम अवैध और अनैतिक गतिविधियां सोशल मीडिया पर चल रही हैं. मामले में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स की जवाबदेही भी तय नहीं की गई है.
याचिकाकर्ताओं का कहना था कि बिना वेरिफिकेशन की व्यवस्था के प्रोफाइल बनाने की छूट ने फ़र्ज़ी और गुमनाम प्रोफाइल को बढ़ावा दिया है. लोग कई बार किसी दूसरे व्यक्ति के नाम से भी प्रोफाइल बना लेते हैं. कई तरह का अवैध व्यापार भी सोशल मीडिया के ज़रिए चलाया जा रहा है. इसलिए, दूसरे के नाम या तस्वीर के साथ प्रोफाइल बनाने को कानूनन अपराध घोषित किया जाए. प्रोफाइल वेरिफिकेशन की व्यवस्था बनाई जाए. साथ ही, आपत्तिजनक सामग्री को हटाने और दोबारा अपलोड होने से रोकने की व्यवस्था बने.
अब इसी से मिलती दूसरी याचिका पर भी नोटिस जारी कर कोर्ट ने यह साफ कर दिया है कि सोशल मीडिया के गलत इस्तेमाल को लेकर कोर्ट गंभीर है. इन याचिकाओं पर सरकार के जवाब से स्पष्ट हो सकेगा कि भड़काऊ और आपत्तिजनक पोस्ट पर नियंत्रण के लिए भविष्य में क्या व्यवस्था बनेगी. मामले पर मार्च में अगली सुनवाई की उम्मीद है.
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