नई दिल्ली: इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट की धारा 66A के आधार पर देश भर में अब तक एफआईआर दर्ज होने पर सुप्रीम कोर्ट ने हैरानी जताई है. 2015 में कोर्ट ने इस धारा को निरस्त करार दिया था. कोर्ट को एक याचिका के ज़रिए जानकारी दी गई थी कि फैसले के बाद भी देशभर में लगभग 1 हज़ार मामले इस धारा के तहत दर्ज हुए हैं. कोर्ट ने केंद्र से 2 हफ्ते में मामले पर जवाब देने के लिए कहा है.
क्या है मामला?
आईटी एक्ट में 2009 में जोड़ी गई धारा 66A के तहत पुलिस को यह अधिकार दिया गया था कि वह इंटरनेट पर लिखी गई बात के आधार पर किसी को गिरफ्तार कर सकती. देशभर में इसके दुरुपयोग को आधार बनाते हुए सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दाखिल हुईं. 24 मार्च 2015 को इन याचिकाओं को लेकर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जे चेलमेश्वर और रोहिंटन नरीमन की बेंच ने धारा 66A को अभिव्यक्ति और व्यक्तिगत स्वतंत्रता स्वतंत्रएफआईआर मेंता का हनन करार दिया. कोर्ट ने धारा को निरस्त कर दिया.
एनजीओ पीपुल्स यूनियन फिर सिविल लिबर्टी (PUCL) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर जानकारी दी थी कि देशभर में अब भी पुलिस इस धारा का इस्तेमाल कर रही है. 2015 में कोर्ट का फैसला आने के बाद भी 1307 में यह धारा जोड़ी गई है. आज यह मामला जस्टिस रोहिंटन नरीमन, के एम जोसफ और बी आर गवई की बेंच में लगा.
'परेशान करने वाली बात'
याचिकाकर्ता के लिए पेश हुए वरिष्ठ वकील संजय पारिख की बात सुनने के बाद बेंच के अध्यक्ष जस्टिस नरीमन ने कहा, "यह स्तब्ध और परेशान करने वाली बात है कि लोगों को अब भी इस धारा का सामना करना पड़ रहा है." याचिकाकर्ता के वकील ने कोर्ट को बताया कि सभी हाई कोर्ट को सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी भेजी जा चुकी है. हाई कोर्ट ने निचली अदालतों को उचित निर्देश भी जारी किए हैं. लेकिन पुलिस अभी भी यह धारा एफआईआर में जोड़ रही है.
जल्द होगा ज़रूरी बदलाव
सुनवाई के दौरान कोर्ट में मौजूद एटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने कोर्ट को बताया कि एक्ट में यह धारा अब तक लिखी हुई है. वेणुगोपाल ने कहा, "धारा अब तक एक्ट में है. बस उस पन्ने के निचले हिस्से में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ज़िक्र कर दिया गया है. धारा के निरस्त होने की जानकारी साथ में ही लिखी जानी चाहिए थी. यह गलती जल्द ही सुधार ली जाएगी." इसके बाद कोर्ट एटॉर्नी जनरल को जवाब देने के लिए समय देते हुए मामला 2 हफ्ते बाद सुनवाई के लिए लगा दिया.
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