वेतन और पेंशन को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने आज एक अहम आदेश दिया जिसका दूरगामी परिणाम हो सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने माना है कि वेतन और पेंशन पाना एक कर्मचारी का कानूनी अधिकार है. अगर इनके भुगतान में देरी हुई हो तो सरकार को इसके लिए उचित ब्याज देना चाहिए.


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और एम आर शाह की बेंच ने इस मसले पर आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट की तरफ से दिए गए फैसले को बरकरार रखा है. हाई कोर्ट ने एक रिटायर्ड ज़िला जज की जनहित याचिका को सुनते हुए राज्य सरकार के कर्मचारियों को मार्च-अप्रैल 2020 का वेतन देने में हुई देरी के लिए 12 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से ब्याज देने को कहा था. मार्च 2020 का पेंशन देने में हुई देरी के लिए भी इसी दर से ब्याज देने के लिए हाई कोर्ट ने कहा था.


इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची आंध्र प्रदेश सरकार ने कहा था कि उसने बकाया वेतन और पेंशन का भुगतान दो किस्तों में कर दिया है. लेकिन इसके साथ 12 प्रतिशत ब्याज जोड़े जाने का आदेश सही नहीं है इसे हटाया जाना चाहिए. राज्य सरकार ने यह भी कहा कि वेतन और पेंशन के भुगतान में हुई देरी के पीछे उसकी कोई गलत मंशा नहीं थी. कोरोना के दौरान आई आर्थिक दिक्कत के चलते इनका भुगतान नहीं हो पाया था. इसके लिए राज्य सरकार को दंडित नहीं किया जा सकता.


सुप्रीम कोर्ट ने इस दलील से असहमति जताते हुए कहा है कि वेतन और पेंशन कर्मचारियों को उनकी सेवा के बदले दिए जाते हैं. इसे पाना उनका अधिकार है. अगर इस अधिकार का हनन हुआ हो तो देर से किए गए भुगतान पर ब्याज लगाना अनुचित नहीं कहा जा सकता. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने 12 प्रतिशत ब्याज को अधिक मानते हुए उसे घटाने का निर्देश दिया है. कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार 6 प्रतिशत के हिसाब से ब्याज का भुगतान करे. यह भुगतान अभी से 1 महीने के भीतर कर दिया जाए.


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