उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है. सरकारी खर्चे पर अपनी और अपनी पार्टी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां लगवाने के मामले में मायावती के खिलाफ लंबित याचिका की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने बंद कर दी है. सुप्रीम कोर्ट ने इसे पुराना मामला बताते हुए कहा कि अब अगर मूर्तियों को हटाने के लिए कहा गया तो इससे भी सरकार का ही खर्च बढ़ेगा.

 

यह याचिका मायावती के मुख्यमंत्री रहते 2009 में रविकांत नाम के वकील और सामाजिक कार्यकर्ता ने दाखिल की थी. याचिका में लखनऊ, नोएडा समेत राज्य के कई जिलों में बन रहे अलग-अलग स्मारकों पर सवाल उठाया गया था. इन स्मारकों में बहुजन आंदोलन से जुड़े महापुरुषों के साथ मुख्यमंत्री मायावती की मूर्तियां लगवाई जा रही थीं. इसके अलावा बीएसपी के चुनाव चिन्ह हाथी की मूर्तियां भी बड़े पैमाने पर लग रही थीं.

 

याचिकाकर्ता ने तब इन स्मारकों में सरकारी खजाने से 2600 करोड़ रुपए लगाए जाने का आरोप लगाया था. यह पैसे मायावती और बहुजन समाज पार्टी से वसूले जाने की मांग की थी. जवाब में यूपी सरकार ने दलील दी थी कि स्मारकों को राज्य कैबिनेट ने मंजूरी दी है. हाथियों की मूर्तियां बीएसपी के चुनाव चिन्ह जैसी नहीं हैं.

 

शुरुआती सुनवाइयों में सुप्रीम कोर्ट ने सरकारी खर्चे से सीएम की मूर्तियां लगाने के लिए यूपी सरकार को कड़ी फटकार लगाई थी. 2019 में भी तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली बेंच ने भी सख्त टिप्पणी करते हुए कहा था, 'पहली नजर में यही लगता है कि मायावती को इन मूर्तियों पर हुआ खर्च वापस लौटाना चाहिए.'

 

लंबे अरसे बाद बुधवार, 15 जनवरी, को यह मामला सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बी वी नागरत्ना और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की बेंच के सामने लगा. बेंच ने इसे पुराना मामला बताते हुए खत्म कर देने की मंशा जताई. याचिकाकर्ता रविकांत के लिए पेश वकील अशोक कुमार सिंह ने कहा कि इस मामले में सरकारी पैसे का दुरूपयोग हुआ है. इस पर बेंच ने कहा कि अब अगर यह मूर्तियां हटाने के लिए कहा जाएगा, तो उससे भी सरकार का ही खर्च बढ़ेगा. चुनाव आयोग ने निर्देश जारी किए हैं कि सरकारी खर्चे से कोई भी पार्टी अपना महिमामंडन नहीं कर सकती. ऐसे में भविष्य में देश में कहीं भी इस तरह का दुरुपयोग होने की आशंका नहीं है. अब इस मामले को और चलाने की बजाय इसका निपटारा कर देना चाहिए.