नई दिल्ली: नेता को गिरफ्तारी से बचाने के लिए हॉस्पिटल में भर्ती करने वाले 2 डॉक्टरों का आज सुप्रीम कोर्ट ने 'इलाज' कर दिया. कोर्ट ने दोनों पर 70-70 लाख रुपए का जुर्माना लगाया है. इन्हें दिसंबर में ही कोर्ट की अवमानना का दोषी करार दिया गया था. सज़ा आज मिली.
मामला हरियाणा के गुरुग्राम का है. यहां के एक निजी हस्पताल के डॉक्टरों ने एक ऐसे नेता को भर्ती किया जिसे जेल भेजने का आदेश खुद सुप्रीम कोर्ट ने दिया था. इतना ही नहीं उसे 527 दिन तक बेवजह हॉस्पिटल में रखा गया. इसकी आड़ लेकर वो गिरफ्तारी से बचा रहा.
क्या है पूरा मामला :-
24 अक्टूबर 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व विधायक बलबीर उर्फ़ बाली पहलवान की ज़मानत रद्द की और सरेंडर करने को कहा. बाली पर एक व्यापारी के अपहरण और हत्या का मुकदमा लंबित था.
मेहम से आईएनएलडी विधायक रह चुका बाली अपने रसूख का फायदा उठाते हुए 'प्रिवाट हॉस्पिटल' में भर्ती हो गया. बाली के सरेंडर न करने पर निचली अदालत ने 5 बार गैर ज़मानती वारंट जारी किए. लेकिन उनकी तामील नहीं हुई.
2015 में पीड़ित परिवार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया. पूरे घटनाक्रम की जानकारी दी. सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद 1 मई 2015 को बाली को हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया गया.
कोर्ट ने सीबीआई से मामले पर रिपोर्ट देने को कहा. सीबीआई ने बताया कि बाली को बिना किसी बीमारी के भर्ती किया गया था. उसे 527 दिन तक हॉस्पिटल में रखने की कोई वजह नहीं थी.
हॉस्पिटल में रहने के दौरान एक बार भी पूर्व एमएलए की कोई मेडिकल जांच तक नहीं की गयी. वो तमाम लोगों से मिलता था. उसे अपनी मर्ज़ी से कहीं भी आने-जाने की छूट मिली हुई थी.
सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में इसके लिए सीधे-सीधे 'प्रिवाट हॉस्पिटल' के सीनियर डॉक्टरों मुनीश प्रभाकर और के एस सचदेव को ज़िम्मेदार बताया. इस रिपोर्ट के मद्देनजर दिसंबर में तत्कालीन चीफ जस्टिस टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बेंच ने दोनों को अदालती काम में रोड़ा अटका कर कोर्ट की अवमानना करने का दोषी करार दिया था. आज जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली बेंच ने सज़ा का ऐलान किया.
क्या थी डॉक्टरों की दलील:
डॉक्टरों ने दलील दी कि उन्हें बाली के मुकदमे और कोर्ट के आदेश की जानकारी नहीं थी. हालांकि, वो इस बात का कोई संतोषजनक जवाब नहीं दे पाए कि बिना बीमारी के नेताजी की डेढ़ साल तक खातिरदारी क्यों की गई. हॉस्पिटल में प्रशासनिक पद पर होने के बावजूद उन्हें नेता के खिलाफ निचली अदालत से बार-बार जारी हो रहे वारंट की जानकारी कैसे नहीं लगी?