Supreme Court on Kanwar Yatra: उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकार को सोमवार (22 जुलाई) को सु्प्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा. अदालत ने कांवड़ यात्रा मार्ग पर स्थित दुकानों के मालिकों को नेमप्लेट लगाने के लिए दिए गए दोनों राज्यों की सरकार के निर्देश पर अंतरिम रोक लगा दी. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के इन निर्देशों के खिलाफ दायर याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड एवं मध्य प्रदेश सरकारों को नोटिस भी जारी किया. 


दरअसल, तृणमूल कांग्रेस की सांसद महुआ मोइत्रा समेत कई याचिकाकर्ताओं ने नेमप्लेट के लगाने के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था. मोइत्रा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने जस्टिस ऋषिकेश रॉय और जस्टिस एस वी एन भट्टी की पीठ के समक्ष दलीलें रखीं. आदेश को विभाजनकारी और संविधान में दिए गए अधिकारों के खिलाफ बताया गया है. सुनवाई के दौरान अदालत में आर्टिकल 15 (1) और आर्टिकल 17 का भी जिक्र हुआ. 


देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन: सुप्रीम कोर्ट


लाइव लॉ के मुताबिक, सुनवाई के दौरान जस्टिस रॉय ने कहा, सभी दुकान मालिकों को अपने नाम और पते के साथ ही अपने कर्मचारियों के नाम वाली नेमप्लेट लगाने के लिए मजबूर करने से शायद ही आदेश का मकसद पूरा हो. यह देश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र का उल्लंघन करता है. इससे संविधान के आर्टिकल 15(1) और 17 के तहत दिए गए अधिकारों का उल्लंघन भी होता है. ऐसे में आइए जानते हैं कि ये दोनों आर्टिकल किस बारे में हैं और इसमें क्या कहा गया है. 


क्या है आर्टिकल 15(1)? 


संविधान का आर्टिकल 15 धर्म, नस्ल, जाति, लिंग या जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव से रोक लगाता है. आर्टिकल 15 में चार प्रमुख बिंदु हैं, जिसमें से एक आर्टिकल (15)(1) है. इसमें कहा गया है, "राज्य किसी भी नागरिक के खिलाफ धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, जन्मस्थान या इनमें से किसी के आधार पर भेदभाव नहीं करेगा." सुनवाई के दौरान जस्टिस रॉय ने इसका ही जिक्र किया था. 


क्या है आर्टिकल 17? 


संविधान का आर्टिकल 17 'अस्पृश्यता के उन्मूलन' की बात करता है. अगर आसान भाषा में कहें तो ये आर्टिकल देश से छुआछूत को खत्म करता है. आर्टिकल 17 में कहा गया है, "छुआछूत को खत्म कर दिया गया है और किसी भी रूप में ऐसा करने पर पाबंदी है. छुआछूत करना कानून के अनुसार दंडनीय अपराध है." आर्टिकल 17 समानता के अधिकार का एक बहुत जरूरी हिस्सा है. इससे न सिर्फ समानता बल्कि सामाजिक न्याय भी मिलता है. 


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