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'मैडम आपके मुवक्किल का भी वही मामला है, सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा', अरुण गवली की समय से पहले रिहाई पर बोला सुप्रीम कोर्ट

अरुण गवली की समय से पहले रिहाई के लिए बॉम्बे हाईकोर्ट ने 5 अप्रैल को अपने आदेश में कहा था कि गवली की रिहाई के लिए दाखिल याचिका पर राज्य की अथॉरिटी विचार करे.

सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (31 जुलाई, 2024) को अपना फैसला बरकरार रखते हुए अरुण गवली की समय से पहले रिहाई पर रोक लगा दी है. गैंगस्टर से नेता बने अरुण गवली मर्डर केस में उम्रकैद की सजा काट रहे हैं. 3 जून को अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट ने अरुण गवली की समय से पहले रिहाई पर रोक लगा दी थी. कोर्ट ने बुधवार को मामले में फैसला सुनाते हुए बॉलीवुड फिल्म शोले के फेमस डायलॉग का भी जिक्र किया.

जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपांकर दत्ता सुनवाई कर रहे थे. बेंच ने फेमस डायलॉग का जिक्र करते हुए कहा, ' सो जा बेटा, नहीं तो गब्बर आ जाएगा.' बेंच ने कहा, 'हम कोई अंतरिम राहत देने के पक्ष में नहीं हैं. हमारी ओर से दिए गए अंतरिम रोक संबंधी आदेश की पुष्टि की जाती है. अपील की सुनवाई 20 नवंबर को होगी.' शुरुआत में महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश सीनियर एडवोकेट राजा ठाकरे ने दलील दी कि अरुण गवली के खिलाफ हत्या के लगभग 10 मामलों सहित 46 से अधिक मामले दर्ज हैं. सुप्रीम कोर्ट ने वकील से पूछा कि क्या गवली ने पिछले पांच से आठ वर्षों में कुछ किया है. राजा ठाकरे ने जवाब दिया कि अरुण गवली17 साल से अधिक समय से सलाखों के पीछे है.

हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए राजा ठाकरे ने कहा कि महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण अधिनियम (मकोका) के तहत दोषियों को सजा में छूट के लिए कम से कम 40 साल की सजा काटनी होती है. यह 2015 की नीति के अनुसार है. अरुण गवली की ओर से सीनियर एडवोकेट नित्या रामकृष्णन ने कहा कि मामले में अन्य सह-आरोपियों को जमानत दे दी गई है और बॉम्बे हाईकोर्ट की ओर से समयपूर्व रिहाई देने का निर्णय सही था.

उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने अपनी सजा माफी नीति (2015 में) बदलाव किया है. उन्होंने कहा कि क्योंकि गवली को 2009 में दोषी ठहराया गया था, इसलिए 2006 की नीति लागू होगी. यह नीति उम्र और शारीरिक दुर्बलता के आधार पर छूट की अनुमति देती है. इस पर पीठ ने अरुण गवली की वकील से कहा, 'लेकिन मैडम आपको पता होना चाहिए कि हर कोई अरुण गवली नहीं होता है. शोले फिल्म में एक मशहूर डायलॉग है, जिसमें कहा जाता है कि सो जा बेटा नहीं तो गब्बर आ जाएगा, ऐसा ही कुछ मामला यहां भी है.'

अरुण गवली की स्वास्थ्य स्थिति के बारे में विस्तार से बताते हुए रामकृष्णन ने अदालत को बताया कि वह दिल और फेफड़ों की बीमारियों से जूझ रहा है. इस पर महाराष्ट्र सरकार के वकील ने कहा कि ऐसा 40 सालों तक लगातार धूम्रपान करने के कारण हुआ है. रामकृष्णन ने जवाब दिया, 'तो क्या हुआ, आप इस वजह से उसे अंदर नहीं रख सकते. उस पर धूम्रपान का कोई मुकदमा नहीं चल रहा है. सलाहकार बोर्ड ने प्रमाणित किया है कि वह अपनी उम्र के हिसाब से कमजोर है, इसलिए 2006 की नीति लागू होगी क्योंकि उस समय उसे दोषी ठहराया गया था. वर्ष 2015 की बाद की नीति लागू नहीं हो सकती.'

अरुण गवली की समय से पहले रिहाई का मामला बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच के सामने आया था. तब हाईकोर्ट ने 5 अप्रैल को अपने आदेश में कहा था कि गवली की रिहाई के लिए दाखिल याचिका पर राज्य की अथॉरिटी विचार करे. साल 2006 की रिमिशन पॉलिसी के तहत गवली की याचिका पर हाईकोर्ट ने विचार करने को कहा था. 

हाईकोर्ट की नागपुर पीठ ने गवली की याचिका स्वीकार कर ली थी, जिसमें उसने 10 जनवरी, 2006 की सजा माफी नीति के आधार पर राज्य सरकार को समय से पहले रिहाई के लिए निर्देश देने का अनुरोध किया था जो 31 अगस्त, 2012 को उसकी दोषसिद्धि की तारीख तक लागू थी. अरुण गवली मुंबई में शिवसेना के पार्षद कमलाकर जामसांडेकर की 2007 में हत्या के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहा है. उसने 2006 की सजा माफी नीति की सभी शर्तों का पालन करने का दावा किया.

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