दुर्घटना के शुरुआती घंटे में इलाज न मिलने से लोगों की मौत पर सुप्रीम कोर्ट गंभीर, केंद्र से 2 महीने में कैशलेस इलाज की नीति बनाने को कहा
Supreme Court on Cashless treatment: गंभीर चोट के बाद शुरुआती पहले घंटे को गोल्डन आवर यानी स्वर्णिम घंटा कहा जाता है. इस दौरान इलाज मिलने पर घायल की जान बचने की संभावना बढ़ जाती है.
Supreme Court on Cashless treatment: सड़क दुर्घटना में घायल होने वाले लोगों के तुरंत इलाज को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने एक अहम आदेश दिया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह दुर्घटना के शिकार लोगों को शुरुआती घंटे में कैशलेस इलाज उपलब्ध करवाने के लिए नीति बनाए. कोर्ट ने सरकार को ऐसा करने के लिए 14 मार्च तक का समय दिया है.
जस्टिस अभय एस ओका और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच ने कहा है कि सरकार को पहले ही काफी समय दिया जा चुका है. संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर नागरिक को हासिल जीवन का अधिकार एक अनमोल अधिकार है. उसकी रक्षा करना सरकार का कर्तव्य है. मोटर व्हीकल एक्ट की धारा 162 के तहत भी केंद्र सरकार की जिम्मेदारी है कि वह 'गोल्डन आवर' के दौरान दुर्घटना पीड़ितों को कैशलेस इलाज उपलब्ध करवाने के लिए नीति बनाए.
क्या है गोल्डन आवर?
गंभीर चोट के बाद शुरुआती पहले घंटे को गोल्डन आवर यानी स्वर्णिम घंटा कहा जाता है. इस दौरान इलाज मिलने पर घायल की जान बचने की संभावना बढ़ जाती है, लेकिन अक्सर देखा जाता है कि दुर्घटना के तुरंत बाद के समय में घायल व्यक्ति का परिवार या उसका कोई दूसरा करीबी साथ नहीं होता है. इस दौरान हॉस्पिटल भी कभी पुलिस के आने का इंतजार करता है, तो कभी पैसों के भुगतान को लेकर संदेह के चलते इलाज में टालमटोल करता है.
सुनवाई में क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान जजों ने यह नोट किया कि सरकार ने एक मोटर व्हीकल एक्सीडेंट फंड बनाया है. इसका मकसद दुर्घटना में घायल लोगों के इलाज में सहायता करना है. कई लोगों को इस फंड से मुआवजा भी मिला है, लेकिन 'गोल्डन आवर' में कैशलेस इलाज को लेकर स्पष्ट नीति न होने का खामियाजा दुर्घटना पीड़ितों को अपनी जान गंवा कर चुकाना पड़ रहा है. जजों ने कहा कि एक बार यह नीति बन गई तो लोगों के जीवन की रक्षा का रास्ता खुल सकेगा.
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