यूपी में आपराधिक मुकदमों के रिकॉर्ड गायब होने पर सुप्रीम कोर्ट सख्त
कड़ी नाराज़गी जताते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “हर मामला गंभीर अपराध का है. हत्या, डकैती जैसे अपराध के आरोपी रिकॉर्ड के अभाव में कैसे छूट सकते हैं? ज़रूरत पड़ी तो हम सभी मामले अपने पास तलब करेंगे.”
पिछली सुनवाई में कोर्ट ने यूपी के एडवोकेट जनरल को खुद पेश होकर मामले की जानकारी देने को कहा था. आज जस्टिस अरुण मिश्रा और अमिताव राय की बेंच के सामने पेश एडवोकेट जनरल ने कहा, “ये मामले 1981 से 1991 के बीच के हैं. कुछ मुकदमे लंबित हैं, कुछ में रिकॉर्ड के अभाव में आरोपी बरी हुए हैं.
इस पर कड़ी नाराज़गी जताते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने कहा, “हर मामला गंभीर अपराध का है. हत्या, डकैती जैसे अपराध के आरोपी रिकॉर्ड के अभाव में कैसे छूट सकते हैं? ज़रूरत पड़ी तो हम सभी मामले अपने पास तलब करेंगे.”
जस्टिस मिश्रा ने कहा, "आप हमें पूरा ब्यौरा दें. कितने मामले हैं. आरोपी कौन हैं और मुकदमा किन धाराओं में हैं. हर केस का पूरा ब्यौरा चाहिए. जिस अधिकारी के पास से फाइल गायब हुई हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा. आज की तारीख में वो किसी भी पद पर हो. हम उसे सस्पेंड कर देंगे."
कोर्ट के सख्त रवैये के बीच यूपी के वकील उलझन में नज़र आए. वकीलों में इस बात को लेकर भी स्पष्टता नहीं थी कि गायब रिकॉर्ड वाले केस की संख्या 74 है या 162. हालांकि, एडवोकेट जनरल राघवेंद्र सिंह ने कहा, "मैं खुद इस मसले को देखूंगा. सरकार किसी भी ज़िम्मेदार व्यक्ति को बचाना नहीं चाहती. हम हर मामले का पूरा ब्यौरा पेश करेंगे."
कोर्ट ने यूपी सरकार को रिपोर्ट पेश करने के लिए वक्त देते हुए सुनवाई की अगली तारीख 21 अगस्त तय कर दी. आज सुप्रीम कोर्ट ने सीबीआई को भी इस मामले में पक्ष बना लिया. ऐसा कोर्ट ने इसलिए किया क्योंकि इलाहबाद हाई कोर्ट के आदेश पर सीबीआई भी इस मामले की जांच कर रही है.
इस मामले के सुप्रीम कोर्ट पहुंचने की कहानी भी काफी दिलचस्प है. पिछले साल यूपी सरकार ने हत्या के एक मामले में आरोपी के हाई कोर्ट से बरी होने को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 29 साल पुराने मामले में हाई कोर्ट ने चतुर्भुज नाम के शख्स को इसलिए बरी किया था, क्योंकि केस से जुड़ा रिकॉर्ड गायब हो चुका था और मामले की सुनवाई नहीं हो पा रही थी.
इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंची यूपी सरकार ने बिना रिकॉर्ड के ही अपील दाखिल कर दी. सुप्रीम कोर्ट ने इस पर नाराज़गी जताते हुए जब पूछताछ की तो पता चला कि इस तरह के मामले बड़ी संख्या में हैं, जिनमें रिकॉर्ड गायब हो चुके हैं.
कोर्ट सिर्फ फाइल गायब करने वाले अधिकारियों को सस्पेंड ही नहीं करना चाहता, बल्कि उन्हें जेल भी भेजना चाहता है. पिछली सुनवाई में कोर्ट ने दोषियों को जेल भेजने की बात कही थी. आज कोर्ट ने सरकार से ये भी कहा कि वो हर केस की मूल फाइल ढूंढ कर निकाले या उन्हें दोबारा तैयार करे.