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एडल्ट्री कानून: जस्टिस बोले- महिला शादीशुदा जिंदगी में परेशान हो तो किसी से संबंध बना सकती है, खास बातें

एडल्ट्री कानून को सुप्रीम कोर्ट ने असंवैधानिक करार दिया है. फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चन्द्रचूड़ ने कहा कि महिला को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है. समाज की गुड वाइफ की अवधारणा गलत है. अगर महिला शादीशुदा जिंदगी में परेशान हो तो किसी से संबंध बना सकती है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने व्यभिचार (एडल्ट्री) को अपराध करार देने वाली आईपीसी की धारा 497 को असंवैधानिक करार देते हुए आज रद्द कर दी है. यानि अब पुरुषों को दूसरी विवाहित महिला से सहमति से संबंध बनाने पर जेल नहीं जाना होगा. अब तक एडल्ट्री कानून के तहत प्रावधान था कि अगर शादीशुदा महिला किसी दूसरे शादीशुदा पुरुष के साथ संबंध बनाती है तो पुरुष को ही दोषी ठहराया जाता था  महिला को नहीं.

10 खास बातें 1. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए. एम. खानविलकर, जस्टिस आर. एफ. नरीमन, जस्टिस डी. वाई. चन्द्रचूड़ और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा की पीठ ने आज कहा कि व्यभिचार के संबंध में भारतीय दंड संहिता की धारा 497 असंवैधानिक है.

2. चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि हमारे समाज में "यत्र नार्यस्तु पूज्यंते, रमयंते तत्र देवता" की धारणा है. पत्नी पति की संपत्ति नहीं. न सिर्फ IPC 497 बल्कि पति के रिश्तेदारों को भी शिकायत का हक देने वाला CrPC 198 (2) गलत है.

3. चीफ जस्टिस ने कहा कि धारा 497 जिस प्रकार महिलाओं के साथ व्यवहार करता है, यह स्पष्ट रूप से मनमाना है. उन्होंने कहा कि ऐसा कोई सामाजिक लाइसेंस नहीं हो सकता है जो घर को बर्बाद करे लेकिन व्यभिचार आपराधिक कृत्य नहीं होना चाहिए.

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4. उन्होंने कहा, संभव है कि व्यभिचार खराब शादी का कारण नहीं हो, बल्कि संभव है कि शादी में असंतोष होने का नतीजा हो. जस्टिस मिश्रा ने कहा कि महिला के साथ असमान व्यवहार संविधान के कोप को आमंत्रित करता है. उन्होंने कहा कि समानता संविधान का शासकीय मानदंड है. संविधान पीठ ने कहा कि संविधान की खूबसूरती यह है कि उसमें ‘‘मैं, मेरा और तुम’’ शामिल हैं.

5. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि महिलाओं के साथ असमानता पूर्ण व्यवहार करने वाला कोई भी प्रावधान संवैधानिक नहीं है और अब यह कहने का वक्त आ गया है कि ‘पति महिला का स्वामी नहीं है.’

6. जस्टिस रोहिंगटन ने कहा, ''समानता का अधिकार अहम है. कानून महिला से भेदभाव नहीं कर सकता. ये जरूरी नहीं कि हमेशा पुरुष ही ऐसे रिश्तों की तरफ महिला को खींचे अब वक्त बदल चुका है. सिर्फ पुरुष को सज़ा देना गलत.''

7. जस्टिस चन्द्रचूड़ ने कहा कि महिला को व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार है. समाज की गुड वाइफ की अवधारणा गलत है. अगर महिला शादीशुदा जिंदगी में परेशान हो तो किसी से संबंध बना सकती है.

8. जस्टिस इंदु मल्होत्रा ने कहा कि व्यभिचार नैतिक रूप से गलत है. लेकिन इसे अपराध मान कर किसी को सज़ा देना गलत है. इसमें पुलिस की कोई भूमिका नहीं हो सकती. ये सिविल मामले यानी तलाक का आधार है.

9. आपको बता दें कि करीब 150 साल पुराने कानून को केरल के जोसफ शाइन ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी. याचिकाकर्ता ने कहा कि व्यभिचार के लिए 5 साल तक की सज़ा देने वाला कानून समानता के मौलिक अधिकार का हनन है.

10. धारा 497 के मुताबिक, पति की इजाज़त के बिना उसकी पत्नी से किसी गैर मर्द का संबंध बनाना अपराध है. ये एक तरह से पत्नी को पति की संपत्ति करार देने जैसा है. ये कानून पति को पत्नी से संबंध बनाने वाले पुरुष के खिलाफ मुकदमा करने का अधिकार देता है. लेकिन अगर पति किसी पराई महिला से संबंध बनाए तो पत्नी को शिकायत का अधिकार ये कानून नहीं देता है.

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