सुप्रीम कोर्ट ने रेलवे में कुछ कर्मचारियों की फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नियुक्ति को लेकर गुरुवार (1 अगस्त, 2024) को सुनवाई की. कोर्ट ने आश्चर्य जताते हुए पूछा कि दस्तावेजों की उचित जांच और सत्यापन के बिना किसी को सरकारी नौकरी पर कैसे नियुक्त किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा कि भारत के सबसे बड़े एंप्लॉयर में शामिल रेलवे में ऐसे मामलों की जांच होनी चाहिए.


जस्टिस जे के माहेश्वरी और जस्टिस संजय करोल की पीठ पूर्व रेलवे में कंपेश्नेट अपॉइंमेंट के आधार पर नियुक्त कुछ कर्मचारियों की सेवा समाप्ति से संबंधित मामले पर सुनवाई कर रही थी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उन्हें बर्खास्त कर दिया गया है क्योंकि उनकी नियुक्ति जाली और फर्जी दस्तावेजों पर आधारित पाई गई. पीठ ने अपने फैसले में कहा, 'इस मामले के तथ्यों को देखते हुए, हम अपीलकर्ता-नियोक्ता की कार्रवाइयों पर आश्चर्य व्यक्त करते हैं, जिन्हें प्रतिवादी-कर्मचारियों को संदिग्ध दस्तावेजों के आधार पर नियुक्त किया था और बाद में जाली, मनगढ़ंत और फर्जी पाया गया.'


रेलवे देश का सबसे बड़ा एंप्लॉयर, बोला सुप्रीम कोर्ट
बेंच ने कहा, 'दस्तावेजों की उचित जांच और सत्यापन के बिना किसी को सरकारी नौकरी पर कैसे नियुक्त किया जा सकता है? रेलवे को देश के सबसे बड़े एंप्लॉयर में से एक माना जाता है और इस तरह की घटनाओं पर रोक लगाई जानी चाहिए.' कलकत्ता हाईकोर्ट ने अगस्त 2012 में इस मामले में फैसला सुनाया था, जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी. इन कर्मचारियों ने बर्खास्तगी आदेश के खिलाफ केंद्रीय न्यायाधिकरण का दरवाजा खटखटाया था. न्यायाधिकरण ने उनके आवेदनों को खारिज कर दिया था जिसके बाद उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया था.


पिता की नौकरी से संबंध में दिए फर्जी डॉक्यूमेंट, सुप्रीम कोर्ट ने कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि रेलवे ने इन कर्मचारियों को कारण बताओ नोटिस जारी करके पूछा था कि कंपेनसेशन के आधार पर उनकी नियुक्ति क्यों समाप्त नहीं की जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने अपने पिता की नौकरी के संबंध में फेक डॉक्यूमेंट के आधार पर नौकरी ली है. कोर्ट ने कहा कि उनके जवाब मिलने के बाद, प्राधिकार ने यह देखते हुए उनकी सेवाएं खत्म कर दीं कि उनकी नियुक्तियां जाली और फर्जी दस्तावेजों के आधार पर की गई थीं.


बेंच ने कहा कि इस तरह की नौकरियां परिवार के किसी सदस्य को तब दी जाती हैं, जब कमाने वाले सदस्य की अचानक मृत्यु हो जाए. तब सहारा देने और परिवार के दर्द को कम करने के लिए नौकरी दी जाती है. बेंच ने कहा कि न्यायाधिकरण और प्राधिकार ने स्पष्ट रूप से पाया है कि कर्मचारियों ने अपने दावे को साबित करने के लिए कोई वैध दस्तावेज प्रस्तुत नहीं किए, जबकि फर्जी और जाली डॉक्यूमेंट्स का इस्तेमाल किया.


फर्जी दस्तावेजों पर नौकरी पाने वालों के खिलाफ एफआईआर भी हुई थी दर्ज, बेंच ने कहा
कोर्ट ने कहा कि इन कर्मचारियों ने हर चरण में अपनी कथित अनुचित और अवैध नियुक्तियों के निर्णय प्रक्रिया में सक्रिय रूप से भाग लिया था. कोर्ट ने कहा कि जब यह पता चला कि उन्होंन फर्जी दस्तावेजों के आधार पर नौकरी हासिल की थीं तो दिसंबर 2005 में उनके खिलाफ एक प्राथमिकी भी दर्ज की गई थी. कोर्ट ने कहा कि अगर घर का मुख्य कमाने वाला चला जाए तो परिवार को सहारा देने के लिए नौकरी दी जाती है इसलिए जब ऐसे आधार पर नियुक्ति चाहने वाले व्यक्ति अपनी पात्रता को गलत तरीके से साबित करने का प्रयास करते हैं, जैसा कि इस मामले में किया गया है, तो ऐसे पदों को बनाए रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती है.


अपील स्वीकार करते हुए पीठ ने हाईकोर्ट के फैसले को खारिज कर दिया और न्यायाधिकरण द्वारा पारित आदेश को बहाल किया. पीठ ने कहा, 'प्रतिवादी-कर्मचारियों को अपीलकर्ता-एंप्लॉयर द्वारा सेवा से बर्खास्त करना सही था.' साथ ही बेंच ने स्पष्ट किया कि कोर्ट की टिप्पणियां सिर्फ सेवा से बर्खास्तगी के संबंध में थीं और संबंधित अदालत में उनके खिलाफ लंबित आपराधिक कार्यवाही पर इसका कोई असर नहीं होगा.


यह भी पढ़ें:-
Derek O’Brien on Modi Cabinet: 'पीएम मोदी के 10 में से 7 मंत्री RSS से...', TMC नेता ने कर दिया चौंकाने वाला दावा