नई दिल्लीः बिहार के बालिका आश्रय गृह में बच्चियों के बलात्कार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने आज संज्ञान लिया. कोर्ट ने कहा कि पहले से परेशान बच्चियों के तमाम सरकारी अफसर और मीडिया इंटरव्यू ले रहे हैं. ये भी एक किस्म का उत्पीड़न है. कोर्ट ने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से कहा है कि वो बच्चियों का न तो इंटरव्यू लें, न तस्वीर दिखाएं. कोर्ट ने साफ किया कि तस्वीर धुंधली या अस्पष्ट बना कर भी नहीं दिखाई जा सकती.


जस्टिस मदन बी लोकुर और दीपक गुप्ता की बेंच बच्चों के कल्याण से जुड़े एक मामले की सुनवाई के लिए बैठी थी. तभी जस्टिस लोकुर ने कहा कि पटना से किसी व्यक्ति ने सुप्रीम कोर्ट को चिट्ठी भेज कर मामले की जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि मुजफ्फरपुर की ये घटना स्तब्ध कर देने वाली है. लेकिन उसके बाद भी बच्चियों के प्रति ज़िम्मेदार लोगों का रवैया हैरान करने वाला है.


कोर्ट ने कहा, "तमाम सरकारी विभाग हैं, उनके अफसर हैं. सबको घटना की पड़ताल करनी है. हर कोई अलग-अलग से जा रहा है. बच्चियों से बात कर रहा है. साथ मे टीवी चैनलों के कैमरे ले जा रहा है. मीडिया के लोग अलग से भी वहां जा रहे हैं. ये बेहद गैरजिम्मेदाराना है."


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कोर्ट ने आदेश दिया कि अब से कोई भी चैनल बच्चियों के इंटरव्यू, वीडियो या तस्वीर न दिखाए. कोर्ट ने बिहार सरकार, केंद्रीय महिला और बाल कल्याण मंत्रालय, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (NCPCR) और टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंस (TISS) को नोटिस जारी किया. कोर्ट ये जानना चाहता है कि भविष्य में ऐसी घटनाओं की कैसे रोकथाम हो सकती है. साथ ही, उत्पीड़न का शिकार हुई मुजफ्फरपुर की बच्चियों और ऐसी ही दूसरी बच्चियों को राहत देने के लिए किस तरह के कदम उठाए जा सकते हैं.


कोर्ट की कार्रवाई से स्पष्ट है कि उसका मामले की सीबीआई जांच में दखल नहीं देने का इरादा नहीं है. उसका ध्यान मसले से जुड़े सामाजिक पहलुओं, खास तौर से बच्चियों के संरक्षण पर है. मामले की अगली सुनवाई 7 अगस्त को होगी.


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