Supreme Court Hearing: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (26 जुलाई) को हिंदुओं से जुड़ा एक अहम सवाल लिया. क्या शून्य विवाह (कानून के तहत गैरकानूनी) या अमान्य विवाह से पैदा हुआ बच्चा माता-पिता की संपत्ति का हकदार होगा या हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family) से संबंधित संपत्तियों पर उसका सहदायिक अधिकार होगा?


बता दें कि सहदायिक शब्द का इस्तेमाल हिंदू उत्तराधिकार कानून में उस व्यक्ति के संबंध में किया जाता है जो हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) में जन्म लेने के कारण पैतृक संपत्ति पर कानूनी अधिकार प्राप्त करता है.


टीओआई की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ वकील इस आम सहमति की बढ़ रहे थे कि हिंदू विवाह अधिनियम 1956 की धारा 16 (3) के तहत शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुआ बच्चा वैध पति-पत्नी से पैदा हुए बच्चों के साथ माता-पिता की संपत्ति से बराबर का हिस्सा पाने का हकदार होगा. कुछ अन्य लोगों ने यह संदेह जताया कि क्या उस संपत्ति में माता-पिता की स्वयं अर्जित की हुई संपत्ति या विरासत में मिली पैतृक संपत्ति शामिल होगी?


हिंदू विवाह अधिनियम 1956 की धारा 16 (3) ऐसे बच्चों के बारे में क्या कहती है?


तर्कों के माध्यम से एक नाजायज बच्चे के संपत्ति के अधिकार का स्पष्टीकरण समझा गया. धारा 16(3) की ओर से दिया गया एकमात्र स्पष्टीकरण यह है कि ऐसे बच्चे का हिंदू अविभाजित परिवार के अन्य सदस्यों की संपत्तियों पर कोई अधिकार नहीं होगा.


कुछ वकीलों ने इसे हिंदू अविभाजित परिवार के तहत आने वाली संपत्तियों पर नाजायज बच्चे के अधिकार पर रोक के रूप में समझाया, जहां अविभाजित परिवार के भीतर वैध विवाह से पैदा हुआ हर एक बच्चा संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति में जन्म लेते ही हिस्सेदारी का हकदार होता है.


दिनभर की गहन बहस के बाद भी जब प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने फैसला सुरक्षित रखने का इरादा किया तो कई वकीलों ने इस मुद्दे पर अपनी दलीलें रखने की इच्छा जताई. इस पर कोर्ट को अगले दिन सुनवाई निर्धारित करने के लिए मजबूर होना पड़ा.


2005 में कर्नाटक के एक ट्रायल कोर्ट के फैसले से उठा था मुद्दा


इस मुद्दे के उठने पीछे की वजह कर्नाटक के एक ट्रायल कोर्ट का 2005 में सुनाया गया वो फैसला था जिसमें कहा गया था कि अवैध विवाह से पैदा हुए बच्चों का माता-पिता की पैतृक संपत्तियों पर कोई सहदायिक अधिकार नहीं है.


एक जिला जज ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को पलट दिया था. हालांकि, कर्नाटक हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया था कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16 (3) यह स्पष्ट करती है कि नाजायज बच्चों को केवल अपने माता-पिता की संपत्ति का अधिकार है, किसी और का नहीं.


हाई कोर्ट के फैसले में यह भी कहा गया था कि माता-पिता का निधन हो जाने पर हिंदू अविभाजित परिवार या पैतृक संपत्ति का बंटवारा हो जाता है तो नाजायज बच्चे को अपने माता-पिता को मिलने वाली संपत्ति के हिस्से में हिस्सा मिल सकता है लेकिन उसके लिए एक कैविएट (चेतावनी) होनी चाहिए कि ऐसा अधिकार तभी मिलेगा जब ऐसे माता-पिता की मृत्यु बिना वसीयत के हुई हो.


कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में दी गई थी चुनौती


कर्नाटक हाई कोर्ट के फैसले को जब सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई तो दो न्यायाधीशों की बेंच ने 31 मार्च 2011 को इसे तीन जस्टिस की बेंच के पास भेज दिया और सवाल तय किया कि क्या नाजायज बच्चे सहदायिक संपत्ति में हिस्सेदारी के हकदार हैं या क्या हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 16(3) के तहत उनका हिस्सा केवल उनके माता-पिता की स्वयं अर्जित की हुई संपत्ति तक ही सीमित है?


2011 में सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा था


2011 में बेंच ने कहा था कि अदालत को यह याद रखना चाहिए कि माता-पिता के बीच संबंध को कानून की ओर से मंजूरी नहीं दी जा सकती है लेकिन ऐसे रिश्ते में बच्चे के जन्म को माता-पिता के संबंध से स्वतंत्र रूप से देखा जाना चाहिए. ऐसे रिश्ते में जन्मा बच्चा उन सभी अधिकारों का हकदार होता है जो वैध विवाह से पैदा हुए अन्य बच्चों को मिलते हैं. यह धारा 16(3) में संशोधन का सार है.


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