राजद्रोह के मामले में लगने वाली आईपीसी की धारा 124A की वैधता पर सुनवाई को सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया है. मणिपुर के पत्रकार किशोरचन्द्र वांगखेमचा और छत्तीसगढ़ के पत्रकार कन्हैयालाल शुक्ला की याचिका पर आज कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया.


दोनों का कहना था कि उन पर अपने राज्य की सरकार और केंद्र सरकार की आलोचना के लिए राजद्रोह का मुकदमा दर्ज किया गया. ब्रिटिश काल के इस कानून को बनाए रखना गलत है. यह संविधान के अनुच्छेद 19 के तहत हर नागरिक को हासिल अभिव्यक्ति के मौलिक अधिकार का हनन करता है.


सरकारों पर कानून का दुरुपयोग राजनीतिक रूप से नापसंद लोगों के खिलाफ करने का आरोप


सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस यु यु ललित, इंदिरा बनर्जी और के एम जोसफ ने थोड़ी देर की बहस के बाद याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया. याचिकाकर्ता की तरफ से वरिष्ठ वकील कोलिन गोंजाल्विस ने दलील दी कि सभी सरकारें इस कानून का दुरुपयोग राजनीतिक रूप से नापसंद लोगों के खिलाफ कर रही हैं. गोंजाल्विस ने कहा कि 1962 के केदारनाथ सिंह बनाम बिहार सरकार मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून को वैध ठहराया था. लेकिन तब और अब की स्थिति में बहुत अंतर है.


वकील ने कहा कि 1962 के फैसले में भी सुप्रीम कोर्ट ने इस कानून के दुरुपयोग की बात स्वीकार की थी. लेकिन कानून को बनाए रखने का आदेश दिया था. अब उस फैसले पर दोबारा विचार की ज़रूरत है. आज अगर किसी के कुछ कहने या लिखने से वाकई अशांति या हिंसक विद्रोह फैलने की आशंका हो तो उसके खिलाफ पब्लिक सेफ्टी एक्ट या नेशनल सिक्युरिटी एक्ट लगाया जा सकता है.


मामले की अगली सुनवाई 12 जुलाई को


अपराध ज़्यादा गंभीर होने पर UAPA (गैरकानूनी गतिविधि निषेध अधिनियम) भी लगाया जा सकता है. आज के समय में आईपीसी की धारा 124A की मौजूदगी सिर्फ नागरिकों के दमन का साधन है. सरकार और पुलिस तंत्र इसे जिन मामलों में लगाते हैं, उनमें से ज़्यादातर में आरोपी बरी हो जाते हैं. इसके तहत मुकदमा सिर्फ सत्ताधारी पार्टी से अलग सोच रखने वालों को परेशान करने के लिए होता है.


दोनों पत्रकारों के वकील की बातों को सुनने के बाद जजों ने मामले में नोटिस जारी कर दिया. कोर्ट ने यह निर्देश भी दिया है कि एटॉर्नी जनरल को भी नोटिस दिया जाए ताकि वह इस मसले पर कोर्ट की सहायता कर सकें. मामले की अगली सुनवाई 12 जुलाई को होगी.


इसी साल 9 फरवरी को आईपीसी की धारा 124A के खिलाफ एक याचिका सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी. यह याचिका तीन वकीलों आदित्य रंजन, वरुण ठाकुर और वी एलनचेरियन की थी. कोर्ट ने उनकी याचिका को इस आधार पर सुनने से मना कर दिया था कि उनमें से कोई भी व्यक्ति मामले में प्रभावित पक्ष नहीं है. अब 2 ऐसे याचिकाकर्ता सामने आए हैं, जो इस कानून से प्रभावित हैं. ऐसे में कोर्ट ने याचिका सुनवाई के लिए स्वीकार कर ली है.


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