नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में आज तीन तलाक पर सुनवाई होगी. मुस्लिम महिलाओं के भविष्य से जुड़े सबसे बड़े मुकदमे पर पांच जजों की संविधान पीठ सुनवाई करेगी. तीन तलाक का समर्थन करने वाले सभी लोगों की निगाहें आज सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं. आज से इस मामले की सुप्रीम कोर्ट में रोज सुनवाई होगी.
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चीफ जस्टिस जेएस खेहर करेंगे बेंच की अध्यक्षता
मसले की गंभीरता को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसकी सुनवाई पांच जजों की संविधान पीठ से कराने का फैसला लिया है. इसकी अध्यक्षता खुद चीफ जस्टिस जे एस खेहर करेंगे. बेंच गर्मी की छुट्टी में विशेष रूप से इस सुनवाई के लिए बैठ रही है.
दिलचस्प ये है कि इस बेंच में अलग-अलग धर्मों से जुड़े जजों को रखा गया है. जैसे सिख, ईसाई, पारसी, हिंदू और मुस्लिम जज इस संविधान पीठ का हिस्सा हैं.
पर्सनल लॉ के तीन प्रावधानों पर होनी है सुनवाई
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पर्सनल लॉ के तीन प्रावधानों तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक, निकाह हलाला और मर्दों को चार शादी की इजाज़त पर सुनवाई होनी है. इसमें से बड़ा मामला है तलाक-ए-बिद्दत यानी तीन तलाक का. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मुताबिक, मर्दों को तीन बार तलाक बोलकर शादी तोड़ने का अधिकार है. हालांकि कई मुस्लिम जानकार इससे इत्तेफाक नहीं रखते.
तीन तलाक का मसला इसलिए गंभीर हो गया है क्योंकि फोन पर, व्हाट्स अप पर या चिट्ठी से तीन तलाक भेजने के किस्से सामने आ रहे हैं. पाकिस्तान और बांग्लादेश जैसे मुस्लिम देशों में भी ये परंपरा बंद हो चुकी है, लेकिन भारत में अब भी जारी है.
निकाह हलाला पर भी होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट में इस पर भी सुनवाई होगी कि तलाक के बाद अगर पति पत्नी को लगता है कि उनसे गलती हुई और वो दोबारा शादी करना चाहते हैं तो उसकी क्या व्यवस्था हो. अभी मुस्लिम महिलाएं ऐसी स्थिति में सीधे दोबारा निकाह नहीं कर सकतीं, उन्हें पहले किसी और मर्द से शादी करनी होती है. संबंध भी बनाने होते हैं. फिर नए पति से तलाक लेकर पहले पति से शादी की जा सकती है.
मर्दों को चार शादी की इजाज़त पर भी सुनवाई
मुस्लिम मर्दों को एक साथ चार पत्नियों को रखने की इजाज़त भी कोर्ट की समीक्षा के दायरे में है. हालांकि, कुरान में मर्दों को एक पत्नी के रहते दूसरी शादी की इजाज़त दी गई है, लेकिन इसके लिए तमाम शर्तें लगाई गई हैं. लेकिन इन शर्तों का पालन नहीं होता.
मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता के हनन पर ध्यान
सुप्रीम कोर्ट मुस्लिम पर्सनल लॉ के इन्हीं प्रावधानों की समीक्षा करेगा. ये देखेगा कि ये मुस्लिम महिलाओं को मर्दों के मुकाबले गैर बराबरी की स्थिति में तो नहीं रखते? क्या इन प्रावधानों को निरस्त करने या इनमें सुधार की ज़रूरत है? हालांकि ऐसा करते वक्त सुप्रीम कोर्ट को ये भी देखना होगा कि उसके फैसले से मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वतंत्रता का हनन न हो.