सुप्रीम कोर्ट ने दी इच्छा मृत्यु की इजाजत, कहा- इंसान को सम्मान से मरने का पूरा हक
सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जस्टिस की संवैधानिक पीठ ने शर्त के साथ इच्छा मृत्यु की इजाजत दी.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने आज बड़ा फैसला सुनाते हुए इच्छा मृत्यु की इजाजत दे दी है. सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली 5 जस्टिस की संवैधानिक पीठ ने शर्त के साथ इच्छामृत्यु की इजाजत दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'लोगों के पास सम्मान से मरने का पूरा हक है.'
एनजीओ कॉमन कॉज़ ने 2005 में इस मसले पर याचिका दाखिल की थी. याचिका के मुताबिक गंभीर बीमारी से जूझ रहे लोगों को 'लिविंग विल' बनाने हक होना चाहिए. इस 'लिविंग विल' के ज़रिये एक शख्स ये कह सकेगा कि जब वो ऐसी स्थिति में पहुंच जाए जहां उसके ठीक होने की उम्मीद न हो, तब उसे जबरन लाइफ सपोर्ट पर न रखा जाए.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता के वकील प्रशांत भूषण ने साफ़ किया कि वो एक्टिव यूथनेशिया की वकालत नहीं कर रहे जिसमें लाइलाज मरीज़ को इंजेक्शन दे कर मारा जाता है. वो पैसिव यूथनेशिया की बात कर रहे हैं, जिसमें कोमा में पड़े लाइलाज मरीज़ को वेंटिलेटर जैसे लाइफ स्पोर्ट सिस्टम से निकाल कर मरने दिया जाता है.
इस पर अदालत ने सवाल किया कि आखिर ये कैसे तय होगा कि मरीज़ ठीक नहीं हो सकता? प्रशांत भूषण ने जवाब दिया कि ऐसा डॉक्टर तय कर सकते हैं. फ़िलहाल कोई कानून न होने की वजह से मरीज़ को जबरन लाइफ सपोर्ट सिस्टम पर रखा जाता है.
भूषण ने कहा कि कोमा में पहुंचा मरीज़ खुद इस स्थिति में नहीं होता कि वो अपनी इच्छा व्यक्त कर सके. इसलिए उसे पहले ही ये लिखने का अधिकार होना चाहिये कि जब उसके ठीक होने की उम्मीद खत्म हो जाए तो उसके शरीर को यातना न दी जाए.
केंद्र सरकार ने कहा कि वो लिविंग विल की मांग का सरकार समर्थन नहीं करती. ये एक तरह से आत्महत्या जैसा है. हालांकि, विशेष परिस्थितियों में पैसिव यूथनेशिया यानी कोमा में पड़े मरीज़ का लाइफ स्पोर्ट सिस्टम हटाना गलत नहीं है. लेकिन इसका फैसला मेडिकल बोर्ड को करना चाहिए. सरकार ने ये भी कहा था कि वो लाइफ सपोर्ट सिस्टम हटाने के लिए मेडिकल बोर्ड के गठन पर जल्द ही कानून बनाने का इरादा रखती है.
बता दें कि लगभग 35 साल से कोमा में पड़ी मुंबई की नर्स अरुणा शानबॉग को इच्छा मृत्यु देने से सुप्रीम कोर्ट ने साल 2011 में मना कर दिया था. उसी फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि डॉक्टरों के पैनल की सिफारिश, परिवार की सहमति और हाई कोर्ट की इजाज़त से कोमा में पहुंचे लाइलाज मरीज़ों को लाइफ सपोर्ट सिस्टम से हटाया जा सकता है.