सबरीमाला और राफेल समेत राहुल गांधी के खिलाफ अवमानना मामले पर भी सुप्रीम कोर्ट कल सुनाएगा फैसला
सुप्रीम कोर्ट कल राफेल और सबरीमाला दोनों ही विवादित मसले पर फैसला सुनाएगा. इसी मामले में गलतबयानी के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अवमानना का नोटिस भी जारी हुआ था.
नई दिल्ली: कल एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट में आम दिनों से अलग अधिक गहमागहमी रहने वाली है. सुप्रीम कोर्ट की दो अलग-अलग संविधान पीठ राफेल और सबरीमाला मामले पर फैसला सुनाएगी. राफेल और सबरीमाला दोनों ही मामले में सुनवाई करने वाली पीठ के अध्यक्ष चीफ जस्टिस रंजन गोगोई हैं. गोगोई 17 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं.
राफेल मामला शीर्ष अदालत राफेल मामले में पूर्व केंद्रीय मंत्री - यशवंत सिन्हा और अरुण शौरी और कार्यकर्ता-वकील प्रशांत भूषण समेत कुछ अन्य की याचिकाओं पर फैसला सुनाएगी जिनमें पिछले साल के 14 दिसंबर के उस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की गयी है जिसमें फ्रांस की कंपनी ‘दसॉल्ट’ से 36 लड़ाकू विमान खरीदने के केंद्र के राफेल सौदे को क्लीन चिट दी गई थी.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई, जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस के. एम. जोसफ की पीठ ने राजनीतिक रूप से संवेदनशील इस मामले पर 10 मई को सुनवाई पूरी की थी. पीठ ने कहा था कि इस पर फैसला बाद में सुनाया जायेगा. इसी मामले में गलतबयानी के लिए कांग्रेस नेता राहुल गांधी को अवमानना का नोटिस भी जारी हुआ था. उस पर भी फैसला आएगा.
राफेल विमान सौदे को लेकर दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं पर SC कल फैसला देगा। SC ने विमान सौदे की जांच करवाने की मांग ठुकरा दी थी। यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, प्रशांत भूषण ने फैसले में बदलाव की मांग की है। इसी मामले में गलतबयानी के लिए राहुल गांधी को अवमानना का नोटिस भी जारी हुआ था pic.twitter.com/UewcoL1D56
— Nipun Sehgal (@Sehgal_Nipun) November 13, 2019
बता दें कि 14 दिसम्बर 2018 को शीर्ष अदालत ने 58,000 करोड़ के इस समझौते में कथित अनियमितताओं के खिलाफ जांच का मांग कर रही याचिकाओं को खारिज कर दिया था. सुनवाई पूरी करते हुये शीर्ष अदालत ने सौदे के संबंध में विभिन्न मुद्दों पर केंद्र से ‘‘संप्रभु गारंटी से छूट और समझौते में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण उपबंध का ना होने’’ आदि पर सवाल किए थे.
चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पीठ ने ललिता कुमारी मामले में एक फैसले का उल्लेख किया जिसमें कहा था कि संज्ञेय अपराध होने का खुलासा होने पर प्राथमिकी आवश्यक है. ‘‘ पीठ ने कहा था कि सवाल यह है कि आप ललिता कुमारी फैसले का पालन करने के लिए बाध्य हैं या नहीं.’’
अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल ने पीठ से कहा था कि प्रथम दृष्टया एक मामला होना चाहिए, अन्यथा वे (एजेंसियां) आगे नहीं बढ़ सकतीं. सूचना में संज्ञेय अपराध का खुलासा होना चाहिए. जस्टिस जोसेफ ने पहले के सौदे का हवाला दिया था और केंद्र से पूछा था कि राफेल पर फ्रांसीसी प्रशासन के साथ अंतर-सरकारी समझौते में प्रौद्योगिकी हस्तांतरण का उपबंध क्यों नहीं है.
विधि अधिकारी ने कहा, ‘‘अदालत इस तरह के तकनीकी पहलुओं पर फैसला नहीं कर सकती है.’’ समझौते में संप्रभु गारंटी की छूट आदि से जुड़े सवाल पर वेणुगोपाल ने कहा था कि यह ‘‘अभूतपूर्व कवायद’’ नहीं है और रूस तथा अमेरिका के साथ ऐसे समझौतों का उल्लेख किया, जिसमें ऐसी छूट दी गई.
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उन्होंने कहा, ‘‘यह राष्ट्रीय सुरक्षा का सवाल है. दुनिया की कोई अन्य अदालत इस तरह के तर्कों पर रक्षा सौदे की जांच नहीं करेगी.’’ पूर्व मंत्रियों और अधिवक्ता भूषण ने केन्द्र के जवाब के प्रत्युत्तर में यह हलफनामा दाखिल किया है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अपने हलफनामे में कहा कि दिसम्बर, 2018 के फैसले में शीर्ष अदालत के स्पष्ट निष्कर्ष में ऐसी कोई त्रुटि नहीं है जिसके लिये इस पर पुनर्विचार किया जाये.
सबरीमाला मामला केरल में स्थित सबरीमला मंदिर में सभी आयु वर्ग की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति दी गई है. इसी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार के लिये कई याचिका दाखिल की गई है. कल इन्हीं याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट फैसला सुनाने वाला है. चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ 28 सितंबर, 2018 के फैसले के पश्चात हुये हिंसक विरोध के बाद 56 पुनर्विचार याचिकाओं सहित कुल 65 याचिकाओं पर फैसला सुनायेगी.
संविधान पीठ ने इन याचिकाओं पर इस साल छह फरवरी को सुनवाई पूरी की थी और कहा था कि इन पर फैसला बाद में सुनाया जाएगा. इन याचिकाओं पर सुनवाई करने वाली संविधान पीठ के सदस्यों में जस्टिस आर एफ नरिमन, जस्टिस ए एम खानविलकर, जस्टिस धनन्जय वाई चन्द्रचूड़़ और जस्टिस इन्दु मल्होत्रा शामिल हैं.
केरल के सबरीमला मंदिर में महिलाओं के जाने पर फैसला कल। SC ने पिछले साल हर उम्र की महिला को वहां जाने की इजाज़त दी थी। इसके खिलाफ दायर याचिकाओं में कहा गया है कि मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा नैसिक ब्रह्मचारी माने जाते हैं। 10 से 50 की उम्र की महिलाओं को इसलिए रोका जाता है pic.twitter.com/FctdsGv7K3
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सबरीमला मंदिर में 10 से 50 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रवेश वर्जित होने संबंधी व्यवस्था को असंवैधानिक और लैंगिक तौर पर पक्षपातपूर्ण करार देते हुए 28 सितंबर, 2018 को तत्कालीन चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 4:1 के बहुमत से फैसला सुनाया था. इस पीठ की एक मात्र महिला सदस्य न्यायमूर्ति इन्दु मल्होत्रा ने अल्पमत का फैसला सुनाया था.
केरल में इस फैसले को लेकर बड़े पैमाने पर हिंसक विरोध होने के बाद दायर याचिकाओं पर संविधान पीठ ने खुली अदालत में सुनवाई की थी. याचिका दायर करने वालों में नायर सर्विस सोसायटी, मंदिर के तांत्री, त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड और राज्य सरकार भी शामिल थीं. याचिकाओं में कहा गया है कि मंदिर में विराजमान भगवान अयप्पा नैसिक ब्रह्मचारी माने जाते हैं. 10 से 50 की उम्र की महिलाओं को इसलिए रोका जाता है.
सबरीमला मंदिर की व्यवस्था देखने वाले त्रावणकोर देवस्वोम बोर्ड ने अपने रूख से पलटते हुये मंदिर में सभी उम्र की महिलाओं को प्रवेश की अनुमति देने की न्यायालय की व्यवस्था का समर्थन किया था. बोर्ड ने केरल सरकार के साथ मिलकर संविधान पीठ के इस फैसले पर पुनर्विचार का विरोध किया था.
बोर्ड ने बाद में सफाई दी थी कि उसके दृष्टिकोण में बदलाव किसी राजनीतिक दबाव की वजह से नहीं आया है. कुछ दक्षिणपंथी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि बोर्ड ने केरल में सत्तारूढ़ वाममोर्चा सरकार के दबाव में न्यायालय में अपना रूख बदला है. इस मसले पर केरल सरकार ने भी पुनर्विचार याचिकाओं को अस्वीकार करने का अनुरोध किया है. केरल सरकार ने महिलाओं के प्रवेश के मामले में विरोधाभासी रूख अपनाया था.