अब बहुविवाह और निकाह हलाला को अवैध करार देने की मांग पर सुनवाई करेगा सुप्रीम कोर्ट
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज कुल 4 याचिकाओं पर सुनवाई की. ये याचिकाएं दिल्ली की समीना बेगम और नफीसा खान, वकील अश्विनी उपाध्याय और हैदराबाद के मोहसिन बिन हुसैन ने दाखिल की हैं.
नई दिल्ली: तीन तलाक के बाद सुप्रीम कोर्ट अब मुस्लिम समाज मे प्रचलित निकाह हलाला और बहुविवाह पर भी सुनवाई करेगा. इनकी वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा.
अब तक कुल 4 याचिका
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने आज कुल 4 याचिकाओं पर सुनवाई की. ये याचिकाएं दिल्ली की समीना बेगम और नफीसा खान, वकील अश्विनी उपाध्याय और हैदराबाद के मोहसिन बिन हुसैन ने दाखिल की हैं. इन याचिकाओं में 4 तरह की प्रथाओं को अवैध करार देने की मांग की गई है.
1. बहुविवाह - पुरुषों को एक बार में 4 तक शादी करने की इजाज़त.
2. निकाह हलाला-तलाकशुदा मुस्लिम महिला को अपने पति से दोबारा शादी करने के लिए पहले किसी और पुरुष से शादी करनी पड़ती है, शारीरिक संबंध बनाने पड़ते हैं. फिर नए पति से तलाक लेने के बाद पहले पति से शादी हो सकती है.
3. निकाह ए मुताह-शिया मुसलमानों के एक वर्ग में प्रचलित कांट्रेक्ट मैरिज. इसमें एक तय समय के लिए ही शादी होती है. इसके बाद महिला और उसके बच्चों का जीवन-यापन उसके पति की ज़िम्मेदारी नहीं रह जाती.
4. निकाह ए मिस्यार-सुन्नी मुसलमानों के एक हिस्से में मान्य कांट्रेक्ट मैरिज. काफी हद तक निकाह ए मुताह से मिलता-जुलता है.
संविधान के खिलाफ बताया
याचिकाओं में संविधान के अनुच्छेद 14,15 और 21 का हवाला दिया गया है. अनुच्छेद 14 और 15 हर नागरिक को समानता का अधिकार देते है. यानी जाति धर्म, भाषा या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता. जबकि, अनुच्छेद 21 हर नागरिक को सम्मान के साथ जीने का हक देता है.
याचिकाकर्ताओं के मुताबिक हलाला और बहुविवाह जैसे प्रावधान मुस्लिम महिलाओं के साथ भेदभाव करते हैं. उन्हें संविधान से मिले मौलिक अधिकारों से वंचित करते हैं. इसलिए उन्हें बराबरी और सम्मान दिलाने के लिए सुप्रीम कोर्ट 1937 के मुस्लिम पर्सनल लॉ एप्लीकेशन एक्ट के सेक्शन 2 को असंवैधानिक करार दे. इसी सेक्शन में इन प्रावधानों का ज़िक्र है.
संविधान पीठ में होगी सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने पहले तीन तलाक, बहुविवाह और हलाला की सुनवाई संविधान पीठ में एक साथ करने का आदेश दिया था. लेकिन पिछले साल जब 5 जजों की संविधान पीठ बैठी, तो उसने सिर्फ 3 तलाक पर सुनवाई की. संविधान पीठ ने आदेश में दर्ज किया कि बाकी दो विषयों पर अलग से सुनवाई होगी.
आज चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने पुराने आदेश को देखते हुए याचिकाओं को सुनवाई के लिए मंज़ूर कर लिया. अब मामले की विस्तृत सुनवाई के लिए संविधान पीठ का गठन होगा. इसमें कुछ महीनों का वक्त लग सकता है.
तलाक ए बिद्दत रद्द कर चुका है कोर्ट
पिछले साल 22 अगस्त को पांच जजों की बेंच ने एक साथ तीन बार तलाक बोल कर शादी खत्म करने के चलन को असंवैधानिक करार दिया. तलाक ए बिद्दत के नाम से पहचानी जाने वाली इस व्यवस्था को सुन्नी मुसलमानों का एक बड़ा वर्ग मान्यता देता था. इसके तहत पति जब चाहे पत्नी तीन बार तलाक कर उससे रिश्ता खत्म कर सकता था. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के मद्देनज़र याचिकर्ताओं काफी उम्मीदें हैं. उन्हें लगता है कि महिलाओं से भेदभाव करने वाली दूसरी व्यवस्थाओं को भी कोर्ट गैरकानूनी करार देगा.