नई दिल्ली: उज्जैन के महाकाल मंदिर में श्रद्धालु अब एक तय मात्रा में ही जल और पंचामृत चढ़ा सकेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने आज इस बारे में मंदिर कमिटी के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी. जस्टिस अरुण मिश्रा और यूयू ललित ने साफ किया कि कोर्ट का इरादा धार्मिक गतिविधियों में दखल का नहीं है. उसने सिर्फ शिवलिंग के संरक्षण पर सुनवाई की है. कोर्ट ने कहा-"हम सभी पक्षों की तरफ से इस मसले पर किए गए प्रयासों की सराहना करते हैं. हम चाहते हैं कि मीडिया भी हमारे आदेश को सही सन्दर्भ में रिपोर्ट करे."

मंदिर कमिटी के जिस प्रस्ताव को कोर्ट ने मंज़ूरी दी है, उसके मुताबिक :-

* मंदिर में हर श्रद्धालु को सिर्फ आधा लीटर जल चढ़ाने दिया जाएगा
* शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए RO पानी का इस्तेमाल होगा.
* हर श्रद्धालु को सवा लीटर तक पंचामृत चढ़ाने दिया जाएगा.
* भस्म आरती के समय शिवलिंग को सूखे सूती कपड़े से ढंका जाएगा.
* हर शाम 5 बजे जलाभिषेक खत्म होने के बाद गर्भगृह और शिवलिंग को सुखाया जाएगा.
* शिवलिंग पर चीनी का पाउडर लगाने पर रोक लगेगी. इसके बदले खंडसारी का इस्तेमाल होगा.
* गर्भगृह को सूखा रखने और शिवलिंग तक हवा आने देने के बंदोबस्त किए जाएंगे.
* मंदिर में सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट बनाया जाएगा.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा है कि वो अगले साल जनवरी में स्थिति की फिर से समीक्षा करेगा. आज का आदेश उज्जैन की सामाजिक कार्यकर्ता सारिका गुरु की याचिका पर आया है. सारिका ने शिवलिंग को पहुंच रहे नुकसान पर चिंता जताते हुए याचिका दाखिल की थी. उन्होंने ये मांग भी की थी कि ओंकारेश्वर, भीमाशंकर जैसे ज्योतिर्लिंगों की तरह महाकाल में भी श्रद्धालुओं को गर्भगृह तक जाने से रोका जाए.

पिछले साल कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए एक विशेषज्ञ कमिटी का गठन किया था. आर्कियोलॉजिकल सर्वे और जियोलॉजिकल सर्वे के विशेषज्ञों ने कोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में ये माना कि शिवलिंग और मंदिर परिसर अपने मूल स्वरूप में नहीं है. कमिटी ने गर्भगृह में श्रद्धालुओं की संख्या सीमित करने, जल और दूध से बने पंचामृत की मात्रा कम करने जैसी कई सिफारिशें की थी.

विशेषज्ञ टीम की सिफारिशों पर जवाब देते हुए मंदिर प्रबंधन ने अपनी तरफ से कुछ उपाय सुझाए थे. मंदिर कमिटी ने कहा था कि वो व्यवहारिक रूप से संभव उपाय अपनाना चाहती है. आज कोर्ट ने मंदिर कमिटी के प्रस्ताव को मंज़ूरी दे दी