नई दिल्लीः सुप्रीम कोर्ट अनिवार्य धार्मिक परंपराओं और महिला अधिकारों में संतुलन के मसले पर सुनवाई करेगा. कोर्ट ने कहा है कि जिस तरह केरल के सबरीमाला मंदिर में युवा महिलाओं के जाने पर रोक का मसला है, उसी तरह के मसले दूसरे धर्मों में भी हैं. इनसे जुड़ी याचिकाएं लंबित हैं. इसलिए, इन मामलों से जुड़े वकील एक साथ बैठकर विस्तृत सुनवाई के मुद्दे तय करें.
पिछले साल 14 नवंबर को सबरीमाला मंदिर मामले में दाखिल पुनर्विचार याचिकाओं की सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पहले यह तय करना जरूरी है कि लोगों के व्यक्तिगत अधिकार और धर्म की अनिवार्य कही जाने वाली परंपराओं के बीच में कोर्ट किस हद तक दखल दे सकता है. कोर्ट ने माना था कि सवाल सिर्फ सबरीमाला मंदिर में हर उम्र की महिलाओं के जाने या न जाने तक सीमित नहीं है. उसके सामने मस्जिद में मुस्लिम महिलाओं के जाने, दाऊदी बोहरा समुदाय में महिलाओं का खतना, गैर पारसी से शादी करने वाली पारसी लड़कियों के अधिकारों समेत कई मामले लंबित हैं. सब में बुनियादी सवाल एक ही है. ऐसे में यह जरूरी है कि इस सवाल पर एक साथ सुनवाई हो.
अनुच्छेद 14 में हर नागरिक की समानता की बात
दरअसल, संविधान का अनुच्छेद 14 जहां कानून की नजर में हर नागरिक की समानता की बात करता है. यह लिखता है कि देश में किसी के साथ भी धर्म, जाति, भाषा या लिंग के आधार पर भेदभाव नहीं होगा. वहीं अनुच्छेद 25 और 26 में लोगों को धार्मिक परंपराओं के पालन का अधिकार दिया गया है. अलग-अलग धर्मों में कई ऐसी परंपराएं हैं, जिनमें महिलाओं के साथ भेदभाव होता है. सुप्रीम कोर्ट की कोशिश इन दोनों अधिकारों में संतुलन बनाने की है. कोर्ट चाहता है कि यह तय हो जाए कि भविष्य में इस तरह की स्थिति आने पर अदालत उसमें किस हद तक दखल दे सकती है.
सबरीमाला मंदिर मामले में फैसला देने वाली 5 जजों की बेंच ने यह सभी सवाल बड़ी बेंच के पास भेज दिए थे. उसी फैसले के आधार पर आज चीफ जस्टिस एस ए बोबड़े की अध्यक्षता में 9 जजों की बेंच बैठी. बेंच ने कार्रवाई की शुरुआत में ही यह साफ कर दिया कि वह सबरीमाला मसले या किसी भी एक मसले पर सुनवाई नहीं कर रही है. बल्कि जो बड़े सवाल 5 जजों की बेंच की तरफ से उसे सौंपे गए थे, विचार उन पर किया जाएगा. अलग-अलग मुद्दों पर बाद में सुनवाई हो सकती है.
वरिष्ठ वकीलों ने दी अगल-अलग राय
कोर्ट में मौजूद वरिष्ठ वकील राजीव धवन, इंदिरा जयसिंह, अभिषेक मनु सिंघवी के साथ ही सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुनवाई को लेकर अलग-अलग सुझाव दिए. इस पर बेंच ने कहा, “हम चाहते हैं कि आप और मसले से जुड़े सभी वकील साथ से बैठें और सुनवाई के सवालों पर बात करें. आप लोग यह भी तय करें कि कौन सा वकील किस विषय पर कोर्ट में में दलील रखेगा, ताकि बातों का दोहराव न हो और इस अहम मसले पर अदालत जल्दी निष्कर्ष पर पहुंच सकें. सुप्रीम कोर्ट ने 17 जनवरी को मामले से जुड़े सभी वकीलों की बैठक बुलाने के लिए कहा है. यह बैठक कोर्ट के सेक्रेटरी जनरल बुलाएंगे. इस आदेश के बाद कोर्ट ने 3 हफ्ते के लिए सुनवाई टाल दी.
कई मामलों पर सुनवाई से इंकार
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पूछा कि कोर्ट के सामने मुस्लिम समाज में पुरुषों के बहुविवाह और निकाह हलाला जैसी प्रथाओं पर भी सुनवाई लंबित है. क्या कोर्ट इन पर भी इसी मामले में सुनवाई करेगा. कोर्ट ने इससे मना करते हुए कहा कि यह अलग से सुनवाई के विषय हैं. यहां धार्मिक परंपराओं और महिलाओं के अधिकारों में संतुलन के विस्तृत सवाल पर सुनवाई होनी है. वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने जैन समाज में प्रचलित संथारा प्रथा के बारे में सवाल किया. इस प्रथा में लोग स्वेच्छा से खाना-पीना छोड़कर जान देते हैं. कोर्ट ने इस पर भी सुनवाई से मना किया. बेंच की तरफ से साफ किया कि सुनवाई के सवाल सिर्फ उन्हीं मामलों के आधार पर तय किए जाएंगे जिनका ज़िक्र 14 नवंबर के फैसले में है.
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