Maratha Reservation Curative Petition: सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर उसके 5 मई 2021 के फैसले के खिलाफ दायर की गई महाराष्ट्र सरकार की क्यूरेटिव पिटीशन पर सुनवाई की तारीख 24 जनवरी तय की है. सुप्रीम कोर्ट ने मराठा आरक्षण कानून को असंवैधानिक ठहराया था.


रिव्यू पिटीशन (समीक्षा याचिका) के खारिज हो जाने या समाप्त हो जाने के बाद भी क्यूरेटिव पिटीशन (उपचारात्मक याचिका) लोगों या पक्षों के पास मामले में आखिरी मौका के रूप में होती है.


23 जून 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज की थी समीक्षा याचिका


5 मई 2021 को सुप्रीम कोर्ट ने कॉलेजों, उच्च शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में मराठा समुदाय के लिए आरक्षण को रद्द कर दिया था, यह देखते हुए कि मराठा-आरक्षण प्रदान करते समय 50 फीसदी आरक्षण का उल्लंघन करने का कोई वैध आधार नहीं था.


सुप्रीम कोर्ट के 2021 के फैसले को चुनौती देते हुए महाराष्ट्र सरकार ने समीक्षा याचिका दायर की थी, जिसे 23 जून 2021 को खारिज कर दिया गया था. इसके बाद महाराष्ट्र सरकार ने क्यूरेटिव पिटीशन फाइल की थी.


केवल केंद्र को एसईबीसी को केंद्रीय सूची में शामिल करने का अधिकार


न्यूज एजेंसी एएनआई के मुताबिक, समीक्षा याचिका को खारिज करते हुए बहुमत के नजरिए से यह माना गया था कि केवल केंद्र को आरक्षण लाभ का दावा करने के लिए सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) की पहचान करने और उन्हें केंद्रीय सूची में शामिल करने का अधिकार है.


सुप्रीम कोर्ट ने अपने 1992 के इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार करने से भी इनकार कर दिया था, जिसमें आरक्षण की अधिकतम सीमा 50 फीसदी तय की गई थी.


बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को SC ने कर दिया था रद्द


सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस एनजी गायकवाड़ आयोग के निष्कर्षों को रद्द कर दिया था, जिसके कारण मराठा कोटा कानून लागू हुआ था और बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को रद्द कर दिया था, जिसने एसईबीसी अधिनियम 2018 के लिए महाराष्ट्र राज्य आरक्षण को मान्य किया था.


हाई कोर्ट ने जून 2019 में गायकवाड़ आयोग की ओर से सिफारिश की गई मराठों के लिए आरक्षण की मात्रा को 16 प्रतिशत से घटाकर शिक्षा में 12 प्रतिशत और रोजगार में 13 प्रतिशत कर दिया था.


शीर्ष अदालत ने कहा था कि हाई कोर्ट की ओर से दिया गया आरक्षण का कम प्रतिशत भी अधिकार से बाहर है. शीर्ष अदालत ने कहा था कि मराठा समुदाय के लिए अलग आरक्षण अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और 21 (कानून की उचित प्रक्रिया) का उल्लंघन है.


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