नई दिल्ली: लॉकडाउन के दौरान मजूदरों की घर वापसी और हादसे में उनकी मौत पर सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को अपनी प्रतिक्रिया दी है. औरंगाबाद में ट्रेन से कटकर 16 मजदूरों की मौत के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लेने से मना कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर लोग ट्रैक पर सो जाएंगे तो इसमें क्या किया जा सकता है? जिन्होंने पैदल चलना शुरू कर दिया है, उन्हें कोर्ट कैसे रोक सकता है?".


सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'कोर्ट के लिए यह निगरानी करना असंभव है कि कौन ट्रैक पर चल रहा है और कौन नहीं चल रहा है.' सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि इसपर राज्य को फैसला करने देना चाहिए. कोर्ट को क्यों सुनना या फैसला करना चाहिए?


सुप्रीम कोर्ट में सरकार के वकील सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा, "सबके घर लौटने की व्यवस्था की जा रही है. लेकिन लोग सब्र से अपनी बारी की प्रतीक्षा नहीं कर रहे. हम उनके साथ जबरदस्ती नहीं कर सकते."


याचिका में क्या कहा था
वकील अलख आलोक श्रीवास्तव द्वारा दायर याचिका में आग्रह किया गया था कि अदालत केंद्र सरकार से सड़कों पर चलने वाले प्रवासी मजदूरों की पहचान करने, उन्हें भोजन और आश्रय प्रदान करने के लिए कहे. इस याचिका में वकील ने हाल ही में महाराष्ट्र के औरंगाबाद में हुई उस घटना का भी हवाला दिया, जहां रेलवे पटरियों पर सो रहे 16 मजदूर मालगाड़ी की चपेट में आ गए थे.


कोर्ट ने याचिकाकर्ता से क्या कहा
सुप्रीम कोर्ट ने वकील को फटकार लगाते हुए कहा कि उनकी याचिका पूरी तरह अखबारों की कटिंग पर आधारित थी. कोर्ट ने याचिका खारिज करते हुए कहा, "हर वकील कागज पर घटनाओं को पढ़ता है और हर विषय के बारे में जानकार हो जाता है. आपका ज्ञान पूरी तरह से अखबार की कटिंग पर आधारित है और फिर आप चाहते हैं कि यह कोर्ट तय करे. राज्य को इसपर फैसला करने दें. कोर्ट इसपर क्यों फैसला करे या सुने? हम आपको स्पेशल लॉकडाउन पास देंगे. क्या आप खुद जाकर सरकारी आदेशों को लागू करवा सकते हैं?"


बता दें, देशव्यापी लॉकडाउन की वजह मजदूरों के पास अब नौकरी और रहने के लिए ठिकाना नहीं है. इस वजह से हजारों मजदूर कई किमी दूर अपने गांवों की ओर जा रहे हैं. कोई पैदल चल दिया है, कोई साइकिल चलाकर जा रहा है तो कोई ट्रक पर बैठकर अपने गांव जा रहा है. इस दौरान कई मजदूर घर पहुंचने से पहले ही रास्ते में दुर्घटना का शिकार हो जा रहे हैं.


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