Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (18 अक्टूबर 2024) को देश में बढ़ते बाल विवाह के मामलों से जुड़ी याचिका पर फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि पर्सनल लॉ के चलते बाल विवाह निषेध कानून का प्रभावित होना सही नहीं है. कोर्ट ने कहा है कि कम उम्र में विवाह लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित करता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमिटी के पास लंबित है. इसलिए, वह उस पर अधिक टिप्पणी नहीं कर रहा.


'राज्य सरकारों की लापरवाही'


सुप्रीम कोर्ट ने सोसाइटी फॉर इनलाइटेनमेंट एंड वॉलंटरी एक्शन नाम के एनजीओ की याचिका पर फैसला देते हुए बाल विवाह पर नियंत्रण को लेकर कई निर्देश दिए हैं. इस याचिका में कहा गया था कि बाल विवाह पर रोक के बावजूद आज भी देश में यह जारी है. हर साल 18 साल से कम उम्र की लाखों लड़कियों की शादी होती है. 10 साल से भी कम उम्र में शादी के मामले बहुत बड़ी संख्या में हैं. इसका सबसे बड़ा कारण राज्य सरकारों की लापरवाही है.


चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 3 जजों की बेंच ने इस पर आदेश देते हुए कहा है-



  • बाल विवाह रोकने से जुड़े सभी विभागों के लोगों के लिए विशेष ट्रेनिंग की जरूरत है

  • हर समुदाय के लोगों के लिए अलग तरीके अपनाए जाने चाहिए

  • सजा देने से सफलता नहीं मिलती

  • समाज की स्थिति को समझ कर रणनीति बनाएं

  • लोगों में जागरूकता फैलाने का प्रयास हो

  • बाल विवाह निषेध कानून को पर्सनल लॉ से ऊपर रखने का मसला संसदीय कमिटी के पास लंबित है. इसलिए कोर्ट उस पर टिप्पणी नहीं कर रहा

  • लेकिन यह सच है कि कम उम्र में शादी लोगों को अपने पसंद का जीवनसाथी चुनने के अधिकार से वंचित कर देती है


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