नई दिल्ली: महाराष्ट्र के मराठा आरक्षण को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ आज फैसला देगी. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान इस पहलू पर भी विचार किया था कि क्या आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत तक बनाए रखने वाले फैसले पर भी दोबारा विचार की ज़रूरत है. कोर्ट ने इस बात पर भी सुनवाई की थी कि क्या राज्य अपनी तरफ से किसी वर्ग को पिछड़ा घोषित करते हुए आरक्षण दे सकते हैं या संविधान के 102वें संशोधन के बाद यह अधिकार केंद्र को है?


कोर्ट ने सभी राज्यों को सुना


जस्टिस अशोक भूषण की अध्यक्षता में बैठी 5 जजों की पीठ ने सुनवाई के दौरान माना था कि मामले का सभी राज्यों पर असर पड़ेगा. इसलिए, कोर्ट ने सभी राज्यों को नोटिस जारी किया था. अधिकतर राज्यों ने कहा था कि आरक्षण की सीमा कोर्ट की तरफ से तय नहीं होनी चाहिए. वहीं केंद्र सरकार ने महाराष्ट्र का समर्थन करते हुए कहा था कि संविधान में हुए 102वें संशोधन से राज्य की विधायी शक्ति खत्म नहीं हो जाती. संविधान में अनुच्छेद 342A जोड़ने से अपने यहां सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े तबके की पहचान की राज्य की शक्ति नहीं छिन गई है. दरअसल, मराठा आरक्षण विरोधी कुछ वकीलों ने यह दलील दी थी कि संविधान में अनुच्छेद 342A जुड़ने के बाद राज्य को यह अधिकार ही नहीं कि वह अपनी तरफ से किसी जाति को पिछड़ा घोषित कर आरक्षण दे दें.


क्या है मुख्य मामला


2018 में महाराष्ट्र सरकार ने मराठा वर्ग को सरकारी नौकरी और उच्च शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण दिया था. इस आरक्षण के पीछे आधार बनाया गया था जस्टिस एन जी गायकवाड़ की अध्यक्षता वाले महाराष्ट्र पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्ट को. ओबीसी जातियों को दिए गए 27 प्रतिशत आरक्षण से अलग दिए गए मराठा आरक्षण से सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले का उल्लंघन हुआ जिसमें आरक्षण की सीमा अधिकतम 50 प्रतिशत ही रखने को कहा गया था.


हाई कोर्ट ने बनाए रखा मराठा आरक्षण


बॉम्बे हाई कोर्ट में इस आरक्षण को 2 मुख्य आधारों पर चुनौती दी गई. पहला- इसके पीछे कोई उचित आधार नहीं है. इसे सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए दिया गया है. दूसरा- यह कुल आरक्षण 50 प्रतिशत तक रखने के लिए 1992 में दिए गए सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा साहनी बनाम भारत सरकार फैसले का उल्लंघन करता है. जून 2019 में हाई कोर्ट ने इस आरक्षण के पक्ष में फैसला दिया. हाई कोर्ट ने माना कि असाधारण स्थितियों में किसी वर्ग को आरक्षण दिया जा सकता है. हालांकि, आरक्षण को घटा कर नौकरी में 13 प्रतिशत और उच्च शिक्षा में 12 प्रतिशत कर दिया गया.


सुनवाई के मुख्य बिंदु


हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ आरक्षण विरोधी सुप्रीम कोर्ट पहुंचे. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने मराठा आरक्षण पर अंतरिम रोक लगा दी. संविधान पीठ के फैसले से तय होगा कि यह रोक हटेगी या नहीं. विस्तृत सुनवाई में 5 जजों की बेंच ने इन बातों पर विचार किया :-


* क्या महाराष्ट्र में वाकई ऐसी कोई असाधारण स्थिति थी कि आरक्षण की तय सीमा से परे जाकर मराठा वर्ग को अलग से आरक्षण दिया जाए?


* क्या संविधान का 102वां संशोधन और अनुच्छेद 324A राज्य विधानसभा के अधिकार का हनन करते हैं? क्या यह संशोधन और अनुच्छेद वैध हैं?


* क्या 1992 में आए इंदिरा साहनी फैसले पर दोबारा विचार की ज़रूरत है? कुल आरक्षण की सीमा 50 प्रतिशत रखने वाले 9 जजों की बेंच के फैसले को दोबारा विचार के लिए बड़ी बेंच में भेजना चाहिए?