Supreme Court On EVM-VVPAT Case: लोकसभा चुनाव की वोटिंग के बीच इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVM) और वीवीपैट को लेकर सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उससे ईवीएम पर सवाल उठने भले ही कम हों न हों, लेकिन एक बात तो तय है कि अब भारत में चुनाव का वर्तमान और भविष्य तो ईवीएम ही है, जिसपर सवाल उठाने से पहले कई बार सोचना पड़ेगा. ऐसा इसलिए क्योंकि अपने आदेश में सुप्रीम कोर्ट के दो जजों की बेंच ने जो फैसला दिया है, वो हर चुनाव में इस्तेमाल हो रहे ईवीएम की जरूरत पर एक मुहर की तरह है, जिसका फिलहाल कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है.


हमेशा उठे हैं ईवीएम पर सवाल


भारत में जब से ईवीएम का इस्तेमाल होना शुरू हुआ है, तब से उस पर सवालिया निशान भी लगते रहे हैं. जब केंद्र की सत्ता में कांग्रेस थी, तो बीजेपी सवाल उठाती थी और अब जब पिछले 10 साल से बीजेपी केंद्र की सत्ता में है तो कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल ईवीएम पर सवाल उठाते हैं.


ईवीएम को लेकर समय-समय पर याचिकाएं दाखिल होती रही हैं. कभी कहा जाता है कि ईवीएम से छेड़छाड़ हो सकती है तो कभी कहा जाता है कि ईवीएम को हटाकर बैलेट पेपर से चुनाव करवाया जाए. कभी कहा जाता है कि ईवीएम के साथ जो वीवीपैट होता है यानी कि आपने जो वोट दिया है, वो किसको गया है उसकी पर्ची का ईवीएम में दर्ज वोटों के साथ मिलान किया जाए. जितने लोग उतने तर्क और उनकी ही अलग-अलग याचिकाओं पर हर बार कोर्ट में सुनवाई होती है और हर बार फैसला ईवीएम के पक्ष में ही आता है.


ईवीएम की ईमानदारी पर लगी मुहर


अब तो सुप्रीम कोर्ट के दो जजों जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच ने ईवीएम पर जो फैसला दिया है, उसने ईवीएम की ईमानदारी पर मुहर लगा दी है. पूरा फैसला क्या है, उससे पहले ये जानना जरूरी है कि आखिर इस बार मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा क्यों था.


इस बार सुप्रीम कोर्ट के सामने मुख्य रूप से दो अपील की गई थी. पहली तो ये कि पूरा चुनाव ही ईवीएम से न करवाकर बैलेट पेपर से करवाया जाए. दूसरी याचिका एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स यानी कि एडीआर की ओर से दाखिल की गई थी. इसमें कहा गया था कि ईवीएम के वोट और वीवीपैट की पर्चियों का 100 फीसदी मिलान किया जाए, क्योंकि अभी तक किसी भी एक निर्वाचन क्षेत्र में पांच ईवीएम के वोटों का ही वीवीपैट पर्चियों से मिलान होता है.


सुप्रीम कोर्टने ने फैसले में क्या कहा?


ऐसे में सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता की बेंच में लंबी बहस हुई. 24 अप्रैल 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया और 26 अप्रैल को अदालत का आखिरी फैसला आया है, जिसने ईवीएम पर मुहर लगा दी. अपने फैसले में जस्टिस संजीव खन्ना और जस्टिस दीपांकर दत्ता ने कहा-



  • चुनाव ईवीएम से ही होंगे, बैलेट पेपर से चुनाव नहीं होंगे.

  • नतीजे में जो उम्मीदवार दूसरे या तीसरे नंबर पर है और अगर उसे लगता है कि गड़बड़ी हुई है तो वो रिजल्ट घोषित होने के 7 दिनों के अंदर जांच की मांग कर सकता है.

  • जांच इंजीनियरों की एक टीम करेगी. इस जांच का खर्च उम्मीदवार को उठाना होगा. कोई भी गड़बड़ी साबित होने की स्थिति में खर्च किया गया पैसा वापस किया जाएगा.

  • वोटिंग के बाद ईवीएम को सील किया जाएगा और इसे 45 दिनों तक सुरक्षित रखा जाएगा.


इन बड़े बिंदुओं के अलावा सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को कुछ सुझाव भी दिए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से कहा है-



  • इलेक्ट्रॉनिक मशीन के वोट और वीवीपैट की पेपर स्लिप की गिनती का जो सुझाव है, वो अमल में लाया जा सकता है या नहीं, इसकी तहकीकात कीजिए.

  • आयोग को ये भी देखना चाहिए कि क्या चुनाव निशान के अलावा हर पार्टी के लिए अलग से कोई बारकोड भी हो सकता है या नहीं.


2011 के फैसले के बाद वीवीपैट की शुरुआत हुई


ईवीएम पर सुप्रीम कोर्ट के आए ताजातरीन फैसले का पूरा मजमून बस यही है. पहली बार जो बड़ा फैसला आया था, वो आया था 2011 में जिसमें सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही चुनाव आयोग ने वीवीपैट का इस्तेमाल शुरू किया था. उससे पहले सिर्फ और सिर्फ ईवीएम ही थी, जिसमें एक बार आपने बटन दबा दिया तो वोटिंग हो गई. फिर आप उसे देख नहीं सकते, लेकिन वीवीपैट के आने के बाद ये हुआ कि वोटर ये देख सकता है कि उसका वोट किसे गया है.


अब ईवीएम का बटन दबाने के बाद वीवीपैट से एक पर्ची निकलती है, जो सात सेकेंड तक बाहर रहती है और जिसे वोटर देख सकता है. 7 सेकेंड के बाद पर्ची वापस मशीन में चली जाती है, तो ये सिस्टम भी सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर ही लागू हुआ, जिसे 2014 के लोकसभा चुनाव में पहली बार इस्तेमाल किया गया.


इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में चुनाव के दौरान फैसला दिया कि एक निर्वाचन क्षेत्र में पांच ईवीएम के वोटों का वीवीपैट पर्चियों से मिलान किया जाएगा और अब 2024 के चुनाव में सुप्रीम कोर्ट ने ईवीएम को लेकर हर तरह के सवालों की गुंजाइश को खत्म कर दिया है. हालांकि बहुत कम उम्मीद है कि ईवीएम पर सवाल और ईवीएम का बवाल कभी खत्म भी हो पाएगा. 


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