नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वह जनहित के मामलों में दिए जा सकने वाले आदेशों की सीमा तय करने पर विचार करेगा. कोर्ट ने यूपी सरकार की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह बात कही. यूपी सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट का वह आदेश सुप्रीम कोर्ट में रखा था, जिसमें 1 महीने के भीतर राज्य के सभी 97 हजार गांवों में 2-2 ICU सुविधायुक्त एंबुलेंस तैनात करने के लिए कहा गया था. सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की उस टिप्पणी पर भी सवाल उठाए जिसमें यूपी की स्वास्थ्य व्यवस्था को 'राम भरोसे' कहा गया था.
इससे पहले 21 मई को सुप्रीम कोर्ट ने सभी हाईकोर्ट को सलाह दी थी कि वह ऐसे आदेश न दें जिनका पालन असंभव हो. उस दिन सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी, जिसमें 1 महीने के भीतर उत्तर प्रदेश के सभी गांवों के लिए 2-2 एंबुलेंस देने के लिए कहा गया था. हाईकोर्ट ने उस आदेश में सभी नर्सिंग होम में ऑक्सीजन बेड की सुविधा देने और मध्यम स्तर के नर्सिंग होम में ऑक्सीजन प्लांट लगाने के लिए भी कहा था.
"बिना व्यवहारिक स्थिति को समझे आदेश नहीं दिए जा सकते"
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस विनीत सरन और दिनेश माहेश्वरी की बेंच ने आज कहा कि वह जनहित को लेकर हाईकोर्ट के जजों की चिंता की सराहना करते हैं. लेकिन यह देखना जरूरी है कि कोर्ट कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र में किस हद तक दखल दे सकता है. किसी विपत्ति के समय सरकार बहुत सारे पहलुओं पर विचार कर निर्णय लेती है. सरकार के पास विशेषज्ञों की सहायता होती है, जिसके आधार पर वह काम करती है. बिना व्यवहारिक स्थिति को समझे आदेश नहीं दिए जा सकते. जस्टिस सरन ने कहा, "एक मामले में हाईकोर्ट ने सरकार से यह कह दिया कि वह निजी कंपनी से कोविड वैक्सीन का फॉर्मूला लेकर उसे दूसरी कंपनियों को दे. क्या यह व्यवहारिक है? संविधान में व्यवस्था के हर अंग के लिए शक्तियों का बंटवारा किया गया है. उस पर ध्यान देने की जरूरत है."
सुप्रीम कोर्ट ने आज सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता और मामले में एमिकस क्यूरी बनाए गए वरिष्ठ वकील निधेश गुप्ता से कहा कि वह 21 मई के बाद आए हाईकोर्ट के आदेशों की जानकारी उसे दें. इसके बाद मामले पर आगे विचार होगा. 10 अगस्त को मामले की अगली सुनवाई होगी.
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