नई दिल्ली: हिन्दुस्तान सिर्फ एक नाम भर नहीं बल्कि यह गंगा-जमुनी तहज़ीब की वह जगह है जहां कैनवस पर एक मुस्लिम आर्टिस्ट मंदिर का खूबसूरत रूप उतार सकता है तो वहीं एक हिन्दू धर्म से संबंध रखने वाला व्यक्ति मस्जिद की तस्वीर बना सकता है. यह देश हमेशा से तमाम मज़हब के लोगों की आमद और अक़ीदत करते आई है. यहां की मिट्टी में हमेशा कौमी एकता की खुशबू रही है. यहां की संस्कृति सिखाती है कि हर इंसान के दिल में दूसरे धर्म के लिये बेइंतिहा प्यार हो. होली-दीपावली और राम बारात की खुशियां मनाने में मुसलमान आगे रहते हैं तो ईद के आयोजन में हिंदू.  ईद-उल-फितर पर फिजा में भाईचारे का रंग घुल जाता है तो वहीं नवरात्री में भी मोहब्बत और एकता का वह रंग देखने को मिलता है जो इस देश की असली पहचान है.


जिस देश के राष्ट्रीय झंडे में तीन रंग है और हर रंग की कहानी अलग होते हुए भी देश की एकता, अखंडता और विकास की बात करता है. बदकिस्तमी देखिए, उस देश में रंग पर मजहब ने अपना कब्जा जमा लिया है. भगवा हिंदुओं का तो हरा मुसलमानों का रंग हो चला है. मुल्क में नफरत की फिजा ऐसी फैली कि अब गंगा-जमुनी तहजीब में रचे बसे रंग के त्योहार पर भी अब मजहबी जुनूनियों का अपना फलसफा है.


रंगों का त्यौहार होली पूरे देश में बड़े धूम-धाम से मनाया जाता है. यह त्योहार ईमान का त्योहार है. इंसान का त्योहार है, गीता और कुरान के तालीम का त्योहार है.लेकिन मजहबी तकरीर करने वालों ने रंगों के इस त्योहार को भी दैर-ओ-हरम में बांट दिया. ताजा विवाद सर्फ एक्सल के एक एड से जुड़ा है. रंगों के मज़हबी होने को लेकर चर्चा करें इससे पहले आइए जान लेते हैं कि आखिर विवाद क्यों हो रहा है.


क्यों हो रहा है विवाद


दरअसल, सर्फ एक्सल ने होली पर भाईचारे का संदेश देने की कोशिश करते हुए एक विज्ञापन बनाया. इस विज्ञापन की जहां एक तरफ लोगों ने तारीफ की तो वहीं कई लोगों ने इसका विरोध करना शुरू कर दिया. विरोध भी इस स्तर का है कि लोग #bycottSurfExcel हैशटैग के साथ ट्वीट कर रहे हैं.







वासन बाला नामक एक शख़्स ने ट्विटर पर लिखा है कि वे इस विज्ञापन को बनाने वाली टीम का हिस्सा हैं और उन्हें इतना बेहतरीन विज्ञापन बनाने पर गर्व है.


क्या है एड में


दरअसल सर्फ एक्सल ने 'रंग लाए संग' कैंपेन के जरिए होली पर हिंदू-मुस्लिम सद्भाव का संदेश देने की कोशिश की थी. करीब एक मिनट के इस ऐड में दिखाया गया है कि सफेद टी-शर्ट पहने एक हिंदू लड़की पूरी गली में साइकिल लेकर घूमती है और बालकनी और छतों से रंग फेंक रहे सभी बच्चों के रंग अपने ऊपर डलवाकर खत्म करा देती है.


यहां देखिए सर्फ एक्सल का वीडियो


रंग खत्म हो जाने के बाद वह अपने मुस्लिम दोस्त के घर के बाहर जाकर कहती है कि 'बाहर आजा सब खत्म हो गया.' बच्चा घर से सफेद कुर्ता-पजामा और टोपी पहने निकलता है. बच्ची उसे साइकिल पर बैठाकर मस्जिद के दरवाजे पर छोड़ती है. आखिरी में उसके सीढ़ी चढ़ते वक्त बच्चा कहता है नमाज़ पढ़ के आता हूं. वह कहती है, बाद में रंग पड़ेगा. इस पर उसका मुस्लिम दोस्त धीमे से मुस्कुरा देता है. विज्ञापन अंत में कहा जाता है 'अपनेपन के रंग से औरों को रंगने में दाग लग जाएं तो दाग अच्छे हैं.'


रंगों का कोई मजहब नहीं होता


सर्फ एक्सल की परंपरागत टैगलाइन 'दाग अच्छे हैं' में ही कुछ लोग दाग ढूंढने लगे. उनका कहना है कि क्यों हमेशा विज्ञापन में हिन्दुओं को टारगेट किया जाता है. मुसलमानों को रंग से क्या परेशानी है. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या होली जैसे त्योहार का किसी मजहब से या किसी रंग का किसी घर्म से कोई संबंध है. जवाब है नहीं. क्योंकि होली लंबे वक्त से न सिर्फ हिन्दू बल्कि मुसलमान भी मनाते आए हैं..


मुगल काल में बड़े धूम-धाम से मनाई जाती थी होली


मुग़ल होली को ईद-ए-गुलाबी या आब-ए-पालशी कहते थे और बड़ी ही धूमधाम से उसे मनाते थे. आईन-ए-अकबरी में अकबर के समय होली मनाने का जिक्र है. इसमें लिखा है कि होली का त्योहार अकबर के जमाने में बड़ी धूम धाम से मनाया जाता था. होली की तैयारी अकबर के महल में महीनों पहले शुरू हो जाती थी. अकबर की तरह ही जहांगीर, शाहजहां, हुमायू और बहादुर शाह जफर के शासन में भी होली मनाई जाती रही है. मुगलों के जमाने में तो होली इस तरह मनाई जाती थी कि मुल्ला नसीर फिराक अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'लाल किले की एक झलक' में लिखते हैं कि होली के मुगलिया रंगों की रंगीनी के समां का चित्रण शब्दों में नहीं उतारा जा सकता.


लाल किले के किला-ए-मुअल्ला में मुहम्मद शाह रंगीला के समय का एक चित्र भी आपने कई बार देखा होगा जिसमें बेगमात को मुहम्मद शाह सम्राट पर पिचकारी छोड़ते दिखाया गया है.


इसके अलावा शाह आलम सानी जो शहंशाह होने के साथ-साथ उच्च कोटि के कवि भी थे, उन्होंने तो होली का का चित्रण अपनी सुंदर कविताओं में किया है, जैसे


'नैनन निहारियां, क्यारियां लगें अति प्यारियां
सौ लेकर पिचकारियां और गांवें गीत गोरियां!'


शायरों ने रंग और होली को लेकर क्या कहा है

खड़ी बोली के पहले कवि अमीर खुसरो ने हालात-ए-कन्हैया एवं किशना नामक हिंदवी में एक दीवान लिखा था. इसमें उनके होली के गीत भी हैं, जिनमें वह अपने पीर हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया के साथ होली खेल रहे हैं. वह कहते हैं,


गंज शकर के लाल निज़ामुद्दीन चिश्त नगर में फाग रचायो
ख्वाजा मुईनुद्दीन, ख्वाजा कुतबुद्दीन प्रेम के रंग में मोहे रंग डारो
सीस मुकुट हाथन पिचकारी, मोरे अंगना होरी खेलन आयो
अपने रंगीले पे हूं मतवारी, जिनने मोहे लाल गुलाल लगायो
धन-धन भाग वाके मोरी सजनी, जिनोने ऐसो सुंदर प्रीतम पायो


इसके अलावा प्रसिद्ध सूफी कवि बुल्लेशाह ने भी होली का जिक्र किया है


होरी खेलूंगी कहकर बिस्मिल्लाह,
नाम नबी की रतन चढ़ी, बूंद पड़ी इल्लल्लाह


कृष्ण भक्त कवि रसखान भी होली का वर्णन अपनी कविताओ में करते हैं. वह लिखते हैं


फागुन लाग्यौ सखि जब तें तब तें ब्रजमंडल में धूम मच्यौ है
नारि नवेली बचै नाहिं एक बिसेख मरै सब प्रेम अच्यौ है


मशहूर शायर नज़ीर अकबराबादी की ग्रंथावली में होली से संबंधित 21 रचनाएं हैं. एक उदाहरण पेश है


जब फागुन रंग झमकते हों
तब देख बहारें होली की
और ढफ के शोर खड़कते हों
तब देख बहारें होली की
परियों के रंग दमकते हों
तब देख बहारें होली की
खम शीश-ए-जाम छलकते हों
तब देख बहारें होली की


खुदा-ए-सुखन मीर तकी मीर की लखनऊ से बेज़ारी के चर्चे सबने सुन रखे हैं लेकिन इस शहर की होली के वो भी दीवाने थे. मीर जब दिल्ली से लखनऊ आए और उन्होंने तत्कालीन नवाब आसफ़ुद्दौला को रंगों में सराबोर होली खेलते देखा और पूरी मस्नवी नवाब आसफ़ुद्दौला की होली पर लिख डाली.


होली खेलें आसफ़ुद्दौला वज़ीर,
रंग सौबत से अजब हैं खुर्दोपीर
दस्ता-दस्ता रंग में भीगे जवां
जैसे गुलदस्ता थे जूओं पर रवां
कुमकुमे जो मारते भरकर गुलाल
जिसके लगता आन कर फिर मेंहदी लाल

जोश मलीहाबादी की शायरी भी होली के रंगों से शराबोर है


गोकुल बन में बरसा रंग
बाजा हर घर में मिरदंग
खुद से खुला हर इक जूड़ा
हर इक गोपी मुस्काई
हिरदै में बदरी छाई


कुल मिलाकर हमे इस बात को समझना होगा कि हर रंग का अपना महत्व है. 7 रंग जब साथ होते हैं तभी इंद्रधनुष खूबसूरत दिखता है. किसी मजहब में किसी रंग का अपना महत्व हो सकता है लेकिन इन रंगों से ही जिंदगी खुशगवार है.लेकिन जब सर्फ एक्सल जैसे विज्ञापन पर विवाद होता है तो किसी शायर का वह शेर याद आ ही जाता है कि


रंगों पर भी लिख दिया जाति धर्म का नाम
केसरिया हिन्दू हुआ, हरा हुआ इस्लाम


रंगों को मजहबों में बांटने वालों से पूछना चाहिए कि अलग-अलग मजहब के लोगों के शरीर में बह रहे लहू का रंग क्या है? क्या लाल रंग का सूरज सिर्फ हिन्दुओं को रौशनी देता है? क्या काली स्याह रात में सफेद चांद सिर्फ मुसलमानों को अपनी शीतलता देता है.? नहीं, होली सबका त्योहार है. रंगों के इस त्योहार में सदियों की एकता छिपी है. इस बार भी होली इसी तरह होगी. गंगा-जमुनी तहजीब के इस त्योहार को आप सभी उसी तरह मनाइए जैसे अब तक मनाते रहें हैं क्योंकि मोहर्रम भी सबका है और होली भी.


पुरानी होली का थोड़ा-बहुत गुलाल रखा है
आपसी मोहब्बत को हमने अबतक संभाल रखा है


यहां देखिए सर्फ एक्सल का वह वीडियो जिसे लेकर विवाद हुआ है