Supreme Court: इंश्योरेंस के दावे को लेकर एक विवाद संबंधी याचिका पर फैसला देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अहम टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने कहा है कि सर्वेक्षक की रिपोर्ट खारिज करने के लिए बीमा कंपनियों को ठोस और संतोषजनक कारण बताना जरूरी है. कोर्ट ने ये भी कहा कि बीमा अनुंबध स्पष्ट न हो, तो ये बीमाधारक के पक्ष में जाना चाहिए.
जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की खंडपीठ ने कहा, हालांकि यह सच है कि सर्वेयर की रिपोर्ट अंतिम और फाइनल नहीं है और न ही इतनी पवित्र है कि इसे अलग नहीं किया जा सकता है, लेकिन बीमाकर्ता को रिपोर्ट स्वीकार न करने के लिए ठोस और संतोषजनक कारण बताना चाहिए. पीठ ने दोहराया कि यह दिखाने की जिम्मेदारी बीमा कंपनी की होती है कि मामला किस तरह के खंड के तहत कवर किया गया है.
क्या था मामला ?
पश्चिम बंगाल में एक रिसॉर्ट में 200-250 लोगों की भीड़ घुस गई थी और इसे क्षतिग्रस्त कर दिया था. रिसॉर्ट के मालिक ने होटल की इमारत के संबंध में दो बीमा पॉलिसी ले रखी थीं, जिसके आधार पर उसने क्षतिपूर्ति का दावा किया. हालांकि, बीमा कंपनी ने पुलिस की जांच रिपोर्ट के आधार पर दावा देने से इनकार कर दिया.
पुलिस की जांच में पता चला था कि दो ग्रुपों में फुटबॉल मैच ग्राउंड पर झड़प हो गई थी. इस दौरान एक ग्रुप ने गोलीबारी, बमबाजी की और इसके बाद वह भागकर रिसॉर्ट में आ गया. उनके पीछे-पीछे भीड़ भी घुसकर रिजॉर्ट में आ गई और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.
बीमा कंपनी ने दावा किया खारिज
बीमा के क्लेम की जांच करने गए सर्वेक्षक ने अपनी रिपोर्ट में 2.2 करोड़ रुपये के नुकसान का अनुमान लगाया था, लेकिन बीमा कंपनी ने यह कहकर दावा खारिज कर दिया कि बीमाधारक ने एक अपराधी और उसके साथियों को रिजॉर्ट में शरण दी, जो एक दुर्भावनापूर्ण काम था जिसके परिणामस्वरूप भीड़ ने बीमित संपत्ति को नुकसान पहुंचाया.
बीमा कंपनी मामले को ले गई सुप्रीम कोर्ट
शिकायतकर्ता ने राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग को दरवाजा खटखटाया, जहां शिकायतकर्ता के पक्ष में फैसला आया और बीमा कंपनी को ब्याज के साथ राशि अदा करने को कहा गया. इसके बाद बीमा कंपनी ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की.
शीर्ष अदालत ने मामले की सुनवाई के बाद पाया कि ऐसा कोई तथ्य सामने नहीं आया है कि रिजॉर्ट को नुकसान पहुंचाने की घटना शिकायतकर्ता के दुर्भावनापूर्ण कार्य के चलते हुई थी. शीर्ष अदालत ने ये भी कहा कि सर्वेक्षक रिपोर्ट में दावा स्वीकार्य था लेकिन बीमा कंपनी उसे खारिज करने के लिए ठोस वजह नहीं दे सकी.
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