नई दिल्ली: सुशांत सिंह राजपूत मौत मामले की जांच पर सुप्रीम कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रख लिया है. सुप्रीम कोर्ट में आज हुई बहस के दौरान महाराष्ट्र सरकार और रिया चक्रवर्ती ने सीबीआई की तरफ से दर्ज की गई एफआईआर को मुंबई पुलिस को सौंपने की मांग की. इसका बिहार सरकार और सुशांत के पिता के वकील ने पुरजोर विरोध किया.


रिया ने दाखिल की थी याचिका
14 जून को मुंबई के अपने फ्लैट में मृत मिले अभिनेता सुशांत सिंह का मामला सुप्रीम कोर्ट लेकर उनकी गर्लफ्रेंड अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती आई थीं. रिया ने अपने खिलाफ पटना में दर्ज हुई एफआईआर को मुंबई ट्रांसफर करने की मांग करते हुए याचिका दाखिल की थी. सुशांत के पिता की तरफ से दर्ज एफआईआर में रिया के ऊपर सुशांत को परेशान करने, उसके करोड़ों रुपए रुपयों का गबन करने और आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप लगाया गया था. सुप्रीम कोर्ट में मामले की सुनवाई से पहले ही बिहार सरकार ने केस सीबीआई को सौंपने की सिफारिश कर दी. इसे केंद्र सरकार ने मान लिया.


खुद को राजनीति का शिकार बताया
आज सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ऋषिकेश रॉय की सिंगल बेंच के सामने रिया के वकील श्याम दीवान ने कहा, “पटना में एफआईआर दर्ज होना कानूनन गलत था. बिहार सरकार की सिफारिश पर जांच सीबीआई को दे दिया जाना भी गलत है. रिया के वकील ने यह भी कहा कि मीडिया रिपोर्ट्स के हिसाब से बिहार के मुख्यमंत्री के दबाव में पटना पुलिस ने एफआईआर दर्ज की. रिया राजनीतिक खींचतान का शिकार हो रही हैं. मीडिया भी उसके खिलाफ ट्रायल चलाकर दोषी साबित करने पर आमादा है.


CBI जांच की मांग से पीछे हटी रिया
इस पर जज ने सवाल किया, “आपने अपनी याचिका में खुद ही जांच सीबीआई को सौंपने की मांग की थी. क्या ऐसा नहीं है?” रिया के वकील का जवाब था, “हां, हमने यह मांग की थी. लेकिन जिस तरह से बिहार सरकार के कहने पर सीबीआई ने तुरंत जांच शुरू कर दी, उससे इस जांच की निष्पक्षता शक के दायरे में लग रही है. अब हमारी यह मांग है कि पहले केस मुंबई पुलिस को ट्रांसफर हो. उसके बाद परिस्थितियों के हिसाब से आगे फैसला लिया जाए."


‘मुंबई पुलिस पर राजनीतिक दबाव है’
बिहार सरकार की तरफ से पेश हुए वरिष्ठ वकील मनिंदर सिंह ने मामले में सीएम का नाम घसीटे जाने पर कड़ा एतराज जताया. उन्होंने कहा, “राजनीतिक दबाव बिहार में नहीं, महाराष्ट्र में है. तभी मुंबई पुलिस जांच का सिर्फ दिखावा कर रही है." सिंह ने कहा, “25 जून को सुशांत की अंतिम पोस्टमार्टम रिपोर्ट आ गई थी. उस दिन कानूनन एफआईआर दर्ज हो जानी चाहिए. लेकिन उसके बाद भी मुंबई पुलिस बड़े-बड़े लोगों को बुलाकर बयान ही दर्ज करती रही. सुप्रीम कोर्ट के पुराने फैसलों के हिसाब से देखें तो 25 जून के बाद मुंबई में कोई मामला ही नहीं बचता है. उस दिन या तो केस बंद कर दिया जाना चाहिए था या एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी. मामले में इकलौती एफआईआर बिहार में दर्ज हुई. ऐसा करने का पटना पुलिस को पूरा अधिकार था. सुशांत के पिता यह बता रहे थे कि उनके बेटे के पैसों का गबन हुआ है. उसे आत्महत्या के लिए मजबूर किया गया है. तभी केस दर्ज किया गया."


महाराष्ट्र ने दिया संघीय ढांचे का हवाला
महाराष्ट्र सरकार की तरफ से वरिष्ठ वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने दलीलें रखीं. सिंघवी ने देश के संघीय ढांचे का हवाला दिया. उन्होंने कहा, "कोर्ट इस तरह का उदाहरण स्थापित न होने दे कि एक राज्य में हुई घटना की एफआईआर किसी दूसरे राज्य में दर्ज करा दी जाए, क्योंकि शिकायतकर्ता इसमें सुविधा महसूस करता है. इस मामले में हर कोई वकील और जज बन गया है. कोई इसे हत्या कह रहा है, कोई आत्महत्या. लेकिन पूरे मामले में असल में अपराधिक न्याय प्रक्रिया की हत्या हो रही है. मीडिया के चीखने चिल्लाने वाले एंकर घटना को कितना भी सनसनीखेज बनाकर पेश करें. लेकिन इससे कोर्ट को फर्क नहीं पड़ना चाहिए."


उद्धव के बेटे का भी कोर्ट में उल्लेख
बहुत देर से अपनी बारी का इंतजार कर रहे सुशांत के पिता के वकील विकास सिंह ने मामले में राजनीति है के आरोप पर सबसे पहले टिप्पणी की. उन्होंने कहा, “दूसरा पक्ष मीडिया रिपोर्ट के आधार पर बहुत कुछ बोल रहा है. लेकिन मीडिया में तो महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के बेटे के भी घटना में शामिल होने को लेकर बहुत कुछ कहा गया है. मैं ऐसी बातों पर कोई दलील नहीं रखूंगा." विकास सिंह ने मुंबई पुलिस की तरफ से की गई जांच पर सवाल उठाते हुए कहा कि मामले की सच्चाई सामने आने के लिए सीबीआई जांच जरूरी है. सीबीआई को जांच सौंपने के लिए जिस प्रक्रिया का इस्तेमाल किया गया है, उसमें भी कानूनी तौर पर कुछ गलत नहीं है."


‘गले पर बेल्ट के निशान’
सुशांत के पिता के वकील ने कहा, “बात सिर्फ आत्महत्या की नहीं है. मामले में कई और पहलुओं की जांच करने की जरूरत है, जिनकी मुंबई पुलिस ने पूरी तरह से उपेक्षा कर दी है. सुशांत के शरीर को पंखे से लटका हुआ किसी ने नहीं देखा. उसके गले पर जिस तरह का निशान था वह बेल्ट से बना हुआ लग रहा था. क्या एक पिता को अपने बेटे की मौत के बारे में सच्चाई जानने का अधिकार नहीं है?” अपनी दलीलों के अंत में विकास सिंह ने महाराष्ट्र में सत्ताधारी शिवसेना पर बिहार के लोगों के प्रति दुर्भावना रखने का भी आरोप लगा दिया. उन्होंने कहा कि बिहारियों को परेशान करने का शिवसेना का पुराना इतिहास रहा है.


कोर्ट ने आदेश सुरक्षित रखा
मामले में बार-बार राजनीतिक टीका टिप्पणी को देखते हुए जस्टिस ऋषिकेश राय ने कहा, “यहां सभी वकील बहुत वरिष्ठ हैं. उन्हें सिर्फ कानूनी पहलुओं पर ही बहस करनी चाहिए. केंद्र की तरफ से पेश सॉलीसीटर जनरल तुषार मेहता ने भी जांच सीबीआई को सौंपे जाने की प्रक्रिया को पूरी तरह से सही बताया. उन्होंने कहा कि मुंबई पुलिस की जांच किसी भी दिशा में जाती हुई नहीं लग रही थी. दो राज्यों के विवाद के बीच जांच केंद्रीय एजेंसी का करना ही बेहतर है.


करीब 3 घंटे तक चली बहस के बाद कोर्ट ने मामले में आदेश सुरक्षित रख लिया. बेंच ने कहा है कि सभी पक्षों के वकील अगर चाहे तो गुरुवार, 13 अगस्त को अपनी दलीलों पर संक्षिप्त नोट कोर्ट में जमा करवा सकते हैं. वकील विकास सिंह ने मुंबई में क्वारंटीन के नियम बदले जाने पर सवाल उठाते हुए कहा, “सीबीआई के अधिकारियों को मुंबई जाकर जांच से रोकने के लिए नियम बदल दिए गए हैं. कोर्ट इस मसले पर कोई अंतरिम आदेश दे." लेकिन कोर्ट ने कोई अंतरिम आदेश देने से मना कर दिया.


ये भी पढ़ें:

Coronavirus Vaccine: रूस ने तैयार की कोरोना वैक्सीन, राष्ट्रपति पुतिन की बेटी को दिया गया टीका

सुशांत सिंह राजपूत मामला: सूरज पंचोली बोले- इल्जाम लगाने वाले सबूत नहीं पेश कर सकते, तो गंभीर नतीजे भुगतने होंगे