नई दिल्ली: तेल अक्सर अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की धार तय करता है. दुनिया के बाजार में कच्चे तेल की कीमत का तराजू न केवल मुल्कों के संबंधों का पलड़ा झुकता-उठता रहता है बल्कि कई मुल्कों के लिए नई संभावनाओं के दरवाजे भी खोलता है. मौजूदा वक्त में पेट्रोल-डीजल के ऊंचे दामों, ईरानी तेल के आयात पर चल रही अमेरिकी कैंची ने जहां भारत जैसे खरीददार के लिए परेशानी बढ़ाई है तो वहीं कई मुल्क इसमें अपने लिए अवसर भी तलाश रहे हैं.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सोमवार को तेल उत्पादक मुल्कों और तेल कंपनियों के साथ हुई बैठक में बढ़ते पेट्रोलियम उत्पाद मूल्यों को पूरी दुनिया की आर्थिक रफ्तार के लिए चुनौती बताया. साथ ही तेल व गैस खोज के नए प्रस्तावों पर तेजी से काम करने की ताकीद भी भारतीय पेट्रोलियम कंपनियों को दी. वहीं इस बीच भारत दौरे पर आए तंजानिया के विदेश मंत्री ऑगस्टीन माहिगा ने अपनी भारतीय समकक्ष सुषमा स्वराज से मुलाकात के दौरान ऊर्जा क्षेत्र में साझेदारी के लिए भारत को आगे आने का न्यौता दिया.
विदेश मंत्री सुषमा स्वराज के साथ मुलाकात के बाद एबीपी न्यूज से विशेष बातचीत में तंजानियाई विदेश मंत्री ऑगस्टीन माहिगा ने कहा कि दोनों देशों के बीच ऊर्जा सहयोग आपसी साझेदारी का अहम मोर्चा है. तंजानिया चाहता है कि उसके प्राकृतिक गैस भंडारों के दोहन में भारत सहयोग करे और आगे आए. उन्होंने बताया कि इस बारे में उन्होंने भारतीय विदेश मंत्री से वार्ता के दौरान प्रस्ताव दिया.
विदेश मंत्री माहिगा ने कहा कि गैस भंडार मिलने का मतलब है कि तंजानिया में तेल के भंडार भी हैं. इसकी खोज में अगर भारत का सहयोग मिलता है तो हम साझेदारी करना चाहेंगे. महत्वपूर्ण है कि बीते कुछ सालों में पूर्वी अफ्रीकी देश तंजानिया में प्राकृतिक गैस के नए भंडार मिले हैं. भारत के लिए बढ़त की स्थिति यह है कि तंजानियाई तेल कंपनी को खड़ा करने में उसकी अहम भूमिका है.
हालांकि बीते कुछ समय में नए प्रस्तावों के साथ भारत का दरवाजा खटखटाने वाला तंजानिया पहला देश नहीं है. दुनिया के तीसरे सबसे बड़े तेल आयातक भारत की जरूरतें जगजाहिर हैं और ईरान से उसकी तेल खरीद कम कराने को लिए अमेरिकी दबाव की बात भी किसी से छुपी नहीं है. ऐसे में ईरानी तेल में किसी तरह की कतर-ब्यौंत से पहले जहां भारत को अपनी तेल जरूरतों के इंतजाम की चिंता है वहीं पेट्रोलियम बाजार के खिलाड़ियों को नई संभावना नजर आ रही है.
लिहाजा बीते दिनों भारत आए रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच हुई सालाना शिखर वार्ता में ईरान पर लगाए जा रहे अमेरिकी प्रतिबंधों के साथ-साथ कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें भी अहम मुद्दा थी. यहां तक कि रूसी राष्ट्रपति यह सार्वजनिक बयान भी देकर गए कि यदि तेल कीमतों का बाजार नहीं संभलता तो रूस अपना तेल उत्पादन बढ़ा देगा.
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तेल आयात के लिहाज से भारत दुनिया के तीसरा सबसे बड़ा खरीददार है. भारत सालाना करीब 200 मिलियन टन कच्चे तेल का आयात करता है. यानी अपनी कुल जरूरत के 80 फीसद से ज्यादा. भारत के इस तेल आयात में सबसे बड़ी हिस्सेदारी ईराक, ईरान, साऊदी अरब, वेनेजुएला, कतर आदि की है. आंकड़े बताते हैं कि अगस्त 2018 में भारत ने सबसे ज्यादा ईराक के तेल खरीदा. लेकिन कटौती के बावजूद अब भी भारत के तेल आयात में ईरान की बड़ी हिस्सेदारी है. यूं तो भारत ईरानी कच्चे तेल की खरीद बंद करने से इनकार साफ जता चुका है. मगर इस मुद्दे को लेकर अमेरिकी दबाव का असर भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी बढ़ाएगा.
ऐसे में भारत की तरफ से ताबड़तोड़ कोशिश अपनी तेल खरीद के लिए वैकल्पिक इंतजामों को सुनिश्चित करने और नई संभावनाओं को खंगालने की हो रही है. इतना ही नहीं बीते दिनों संयुक्त अरब अमीरात की मदद से अपने रणनीतिक तेल भंडार को भरने का काम तेज कर दिया है. कर्नाटक में बन रहे इस रणनीतिक तेल भंडार के लिए अबूधाबी से अब तक 20 लाख टन से ज्यादा तेल आ चुका है.
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