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बेल में हंगामा करने पर किसी सांसद को किया जा सकता है सस्पेंड, संसद में निलंबन का नियम क्या है?

हाल ही में संजय सिंह को पूरे मॉनसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया गया. उनके निलंबन के विरोध में जमकर हंगामा भी हुआ. इस रिपोर्ट में जानते हैं कि आखिर सांसदों को निलंबित क्यों किया जाता है.

आम आदमी पार्टी के सांसद संजय सिंह को 24 जुलाई 2023 को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने संसद के पूरे मॉनसून सत्र से निलंबित कर दिया, जिसका मतलब है कि संजय सिंह इस मॉनसून सत्र में राज्यसभा की कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकेंगे. उनके निलंबन के विरोध में जमकर हंगामा भी हुआ. पिछले सोमवार यानी 24 जुलाई की रात विपक्ष के सांसदों ने संसद भवन परिसर में धरना-प्रदर्शन भी किया. 

ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर संसद में बार-बार ऐसे हालात क्यों पैदा हो रहे हैं. संसद में सांसदों के निलंबन का नियम क्या है और इस पर बार बार सवाल क्यों उठते आए हैं? 

पहले जानते हैं क्यों किया गया है संजय सिंह को पूरे सत्र से बाहर 

सोमवार यानी 24 जुलाई को सदन में विपक्ष मणिपुर की घटना पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान की मांग कर रहे थे. जिसपर सभापति जगदीप धनखड़ ने कहा कि इस मामले पर प्रश्न काल में चर्चा की जाएगी.

हालांकि प्रश्न काल के दौरान संजय सिंह सभापति की कुर्सी के पास तक आ गए और जोर-जोर से सभापति के आसन की तरफ हाथ कर कुछ बोलने लगे. सभापति ने संजय सिंह को वापस बैठने को कहा, लेकिन वह माने ही नहीं. 

पीयूष गोयल का प्रस्ताव और वोटिंग

संजय के हंगामे को देखते हुए सभापति ने उनके निलंबन का प्रस्ताव लाने के लिए कहा. इसके बाद सदन के नेता पीयूष गोयल ने कहा कि संजय सिंह की ये हरकत ठीक नहीं है और ऐसा करना सदन के नियमों के खिलाफ है.

गोयल ने सभापति से आग्रह करते हुए कहा कि वो संजय सिंह के खिलाफ कार्रवाई करें. उन्होंने कहा कि सरकार संजय सिंह को निलंबित करने के लिए प्रस्ताव ला रही है कि उन्हें पूरे मॉनसून सत्र के लिए निलंबित कर दिया जाए.

इसके जवाब में सभापति ने कहा कि आप प्रस्ताव लाएं. प्रस्ताव लाए जाने के बाद सभापति ने सासंद संजय सिंह को आसन के खिलाफ लगातार नियमों का उल्लंघन करने के कारण मॉनसून सत्र पूरी अवधि के लिए सस्पेंड कर दिया. 

सांसदों को निलंबित क्यों किया जाता है

भारत में सांसदों का निलंबन संसदीय कार्यवाही के दौरान व्यवस्था और मर्यादा बनाए रखने के लिए उठाया गया एक अनुशासनात्मक कदम माना गया है. 

लोकसभा में किसी भी सदस्य को निलंबित करने के क्या है नियम?

प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के तहत नियम संख्या 373 में कहा गया है कि सत्र के दौरान अगर सभापति को लगता है कि कोई सांसद जान बूझकर कार्यवाही में बाधा डाल रहे हैं या उनका आचरण घोर अव्यवस्थित पाया जाता है तो ऐसी स्थिति में सभापीठ उस सदस्य को निलंबित कर सकते हैं.

सभापति किसी भी सांसद को एक दिन से लेकर पूरे सत्र तक के लिए भी निलंबित कर सकते हैं. हालांकि किसी सदस्य को एक सत्र से ज्यादा निलंबित नहीं किया जा सकता. सभापति द्वारा निलंबित किए जाने के तुरंत बाद उस सदस्य या सांसद को सदन से बाहर जाना होता है.

सदन में अध्यक्ष ज्यादा अड़ियल सदस्यों से निपटने के लिए नियम 374 और 374A का सहारा लेते हैं.

नियम 374 कहता है

प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियमों के नियम संख्या 374 के मुताबिक, लोकसभा स्पीकर संसद की गरिमा में बाधा डालने वाले सदस्य के नाम का ऐलान कर सकते हैं, जिन्होंने आसन की मर्यादा भंग की हो या सत्र के नियमों का उल्लंघन किया हो. 

जब लोकसभा अध्यक्ष ऐसे सांसद या सांसदों के नाम का एलान करते हैं, तो वह सदन के पटल पर एक प्रस्ताव रखते हैं. इस प्रस्‍ताव में उन सदस्य या सदस्यों का नाम लिखा होता है जो हंगामा मचाने में शामिल थे.

प्रस्ताव में उन सदस्यों के निलंबन की बात कही जाती है. इस प्रस्ताव में सदस्यों के नाम के अलावा निलंबन के समय का भी जिक्र होता है. 

निलंबन का समय अधिकतम सत्र की समाप्ति तक की हो सकता है. हालांकि सदन चाहे तो वह इस प्रस्ताव को किसी भी वक्त रद्द कर सकता है. इस नियम के तहत निलंबित सदस्‍य को निलंबन तक की अवधि में किसी प्रकार से भी सदन की कार्यवाही में  शामिल होने का अधिकार नहीं रहता.

नियम 374 A कहता है

नियम 374ए के तहत अगर सदन में कोई भी सदस्य अगर अध्यक्ष के आसन के पास आकर, नारे लगाकर या किसी अन्य तरीके से सभा की कार्यवाही में भंग करने या कार्यवाही में बाधा डालने की कोशिश करता है, तो ऐसी स्थिति में अगर स्पीकर चाहे तो वह सदस्य सभा की सेवा से लगातार पांच बैठकों के लि‍ए या सत्र की शेष अवधि के लि‍ए तुरंत निलंबित हो जाता है. इस नियम का इस्तेमाल पहली बार लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने 2013 में किया था.

राज्यसभा में निलंबित करने के क्या हैं नियम 

राज्यसभा में निलंबन से संबंधित नियम 256 में दिए गए हैं. यह नियम कहीं न कहीं लोकसभा से मिलते जुलते ही हैं. नियम 256 के अनुसार राज्यसभा के सभापति किसी भी सदस्य को जानबूझकर नारे लगाने, तख्तियां दिखाने या अमर्यादित आचरण करने की कोशिश करने पर सदन की सेवा से निलंबित करने का प्रस्ताव पारित कर सकता है, जो शेष सत्र से अधिक नहीं होगा.

सांसदों को कौन कर सकता है निलंबित?

किसी भी सांसद या सांसदों को निलंबित करने से पहले अध्यक्ष या सभापति इस बात से संतुष्ट होने चाहिए कि संबंधित सदस्य के आचरण के कारण ही उन्हें तत्काल निलंबित किया जा रहा है.

किसी भी सांसद को कितने दिनों तक निलंबित किया जाएगा इसका फैसला अपराध की गंभीरता और सदन के कामकाज पर इसके प्रभाव को ध्यान में रखते हुए लिया जाता है.

क्यों निलंबन के बाद विपक्ष करते हैं हंगामा 

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक नीरजा चौधरी कहती हैं, '' हंगामे की राजनीति हमारे देश में कोई नई नहीं है. संसद के सदनों में दशकों से यह समस्या रही है. स्पीकर चाहते रहे हैं कि सदन ठीक ढंग से चले लेकिन वे कड़े कदम उठाने से बचते रहे हैं. हंगामे की सज़ा के तौर पर निलंबन हुआ है. लेकिन इस तरह की समस्या को खत्म करने के लिए कोई बहुत कड़ा कदम अभी तक नहीं उठाया गया है. ''

नीरजा चौधरी कहती हैं, '' सरकार और विपक्ष के संसद में मिलकर कामकाज नहीं करने की सबसे बड़ी वजह है एक दूसरे पर विश्वास नहीं होना. सरकार और विपक्ष के बीच एक बड़ी खाई है और इस खाई को कम करने और भरोसे की कमी को पाटने की दिशा में होने वाले प्रयास दिख नहीं रहे हैं. हां ये कहना गलत नहीं होगा कि पीएम मोदी चाहते हैं कि संसद में विचार-विमर्श हो. सरकार की आलोचना हो. विपक्ष आइडिया दे. लेकिन विपक्ष और सरकार के बीच भरोसे की कमी बनी हुई है. ''

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