(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
अग्निवेश: बिजनेस मैनेजमेंट पढ़ने वाला संन्यासी, जिसने मजदूरों के लिए मंत्री पद को ठोकर मार दी
स्वामी अग्निवेश का 11 सितंबर को निधन हो गया. उन्हें लिवर सिरोसिस की बीमारी थी. डॉक्टरों की तमाम कोशिशों के बावजूद उन्हें बचाया नहीं जा सका और दिल्ली के आईबीएलएस अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली.
नई दिल्ली: बात 1939 की है. तब भारत आजाद नहीं हुआ था और आंध्र प्रदेश मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा हुआ करता था. काराकुलम में एक सनातनी ब्राह्मण परिवार के घर बेटे का जन्म हुआ. माता-पिता ने नाम रखा वेपा श्याम राव. वही वेपा श्याम राव, जिन्हें दुनिया अब स्वामी अग्निवेश के नाम से जानती है. वेपा श्याम राव ने बचपन में ही अपने पिता को खो दिया था और फिर उनका पालन-पोषण किया उनके नाना ने, जो तब छत्तीसगढ़ के शक्ति रियासत के दीवान थे. वेपा श्याम राव ने कानून की पढ़ाई की, मैनेजमेंट की पढ़ाई की और फिर कोलकाता के सेंट जेवियर कॉलेज में लेक्चरर बन गए. कानून की ट्रेनिंग उन्होंने ली सव्यसाची मुखर्जी से जो बाद में देश के मुख्य न्यायाधीश बने.
वेपा श्याम कैसे बने स्वामी अग्निवेश लेकिन ये वेपा श्याम राव का शुरुआती परिचय है. असली परिचय तब शुरू होता है जब वेपा श्याम राव बन गए स्वामी अग्निवेश. ये बात है 1970 की. उन्होंने संन्यास ग्रहण कर लिया और शरीर पर भगवा धारण कर लिया. आर्य समाज के सिद्धांतों को आधार बनाकर एक नई पार्टी बनाई आर्य सभा. बंधुआ मजदूरी के खिलाफ काम करना शुरू किया. सियासत भी चलती रही और सोशल एक्टिविजम भी. 1977 में अग्निवेश हरियाणा से विधायक बने और फिर 1979 में कैबिनेट मंत्री. उन्हें हरियाणा सरकार में शिक्षा मंत्री बनाया गया था. लेकिन कुछ ही दिनों के बाद मजदूरों पर हरियाणा सरकार ने लाठीचार्ज करवा दिया और स्वामी अग्निवेश ने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया. मंत्री पद छोड़ने के बाद उन्हीं की सरकार में उन्हें दो बार गिरफ्तार किया गया. कुल करीब 14 महीने तक जेल में भी रहे. लेकिन सिद्धातों से समझौता नहीं किया.
जब अग्निवेश को राष्ट्रीय स्तर पर मिली पहचान.. 1981 में स्वामी अग्निवेश ने बीएलएलएफ नाम से एक एनजीओ बनाया. इसका पूरा नाम है बॉन्डेड लेबर लिब्रेशन फ्रंट. हिंदी में कहते हैं बंधुआ मुक्ति मोर्चा. इस एनजीओ के जरिए उन्होंने पूरे देश में बंधुआ मजदूरों की मुक्ति के लिए आंदोलन शुरू किया. लेकिन स्वामी अग्निवेश को राष्ट्रीय स्तर पर पहचान तब मिली, जब 6 अप्रैल, 2010 को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में नक्सलियों ने सीआरपीएफ के 76 जवानों को शहीद कर दिया था. इसके बाद शांति की कोशिश के लिए स्वामी अग्निवेश ने रायपुर से दंतेवाड़ा के बीच पैदल यात्रा की. इसको देखते हुए मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए 1 सरकार में गृह मंत्री पी चिदंबरम की ओर से उन्हें माओवादियों से बातचीत के लिए वार्ताकार नियुक्त किया गया. पूरे देश की निगाहें स्वामी अग्निवेश पर थीं.
महात्मा गांधी, काल मार्क्स और वैदिक धर्म इन तीनों को अपना आधार मानने वाले स्वामी अग्निवेश को 31 मई को माओवादियों के प्रवक्ता चेरुकुरी राजकुमार आजाद का पत्र मिला, जिसमें माओवादी बातचीत को तैयार थे. अभी बातचीत हो पाती, उससे पहले ही चेरुकुरी राजकुमार आजाद को पुलिस ने आंध्र प्रदेश में एक मुठभेड़ में मार गिराया. स्वामी अग्निवेश को इस वजह से धक्का लगा और वो मामले को लेकर सरकार के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक चले गए. वहां मुठभेड़ को सही पाया गया.
अन्ना का आंदोलन हिस्सा बने स्वामी अग्निवेश ने कश्मीर में भी अलगाववादियों से बातचीत की कोशिश की थी लेकिन वो भी नाकाम रही थी. 2011 में जब पूरे देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ अन्ना का आंदोलन शुरू हुआ तो स्वामी अग्निवेश भी इस आंदोलन का हिस्सा बन गए. लेकिन बाद में स्वामी अग्निवेश और टीम अन्ना के बीच मतभेद हो गए और फिर स्वामी अग्निवेश ने खुद को इस आंदोलन से अलग कर लिया. उस दौरान स्वामी अग्निवेश का एक वीडियो भी सामने आया था, जिसमें वो कथित तौर पर टीम अन्ना के खिलाफ सरकार से बात कर रहे थे. तब ये भी कहा गया था कि टीम अन्ना ने ही अपने आंदोलन से स्वामी अग्निवेश को बाहर का रास्ता दिखा दिया है.
अग्निवेश पर हिंदू धर्म के विरोधी होने का आरोप इसके बाद से ही स्वामी अग्निवेश धीरे-धीरे भारतीय राजनीति में अपनी प्रासंगिकता खोते गए. साल 2018 में जब वो झारखंड के लिट्टीपाड़ा में दामिन महोत्सव में शामिल होने के लिए जा रहे थे तो कुछ लोगों ने अग्निवेश की बुरी तरह से पिटाई कर दी थी. इसके पीछे वजह ये बताई गई कि अग्निवेश हिंदू धर्म के विरोधी हैं और वो क्रिश्चियन मिशनरीज को सपोर्ट कर रहे हैं. कुछ ही दिनों के बाद दिल्ली में भी उनपर हमला हुआ था. हालांकि हिंदू धर्म का विरोधी होने के आरोप स्वामी अग्निवेश पर कोई पहली बार नहीं लगे थे. साल 2005 में स्वामी अग्निवेश ने कहा था कि पुरी जगन्नाथ मंदिर के द्वार गैर हिंदुओं के लिए भी खोल दिए जाने चाहिए. तब उनका खूब विरोध हुआ था. साल 2011 में भी स्वामी अग्निवेश ने अमरनाथ यात्रा पर कहा था कि वहां का शिवलिंग बर्फ का एक टुकड़ा मात्र है. तब अखिल भारतीय हिंदू महासभा ने स्वामी अग्निवेश का सिर कलम करने के लिए 20 लाख रुपये का इनाम भी घोषित किया था. मामला सुप्रीम कोर्ट में भी पहुंचा था, जहां कोर्ट ने स्वामी अग्निवेश को दूसरों की भावनाओं को भड़काने के लिए माफी मांगने का आदेश दिया था.
अपनी बातों से विवादों में रहने वाले और अपने संवादों से शांति की कोशिश करने वाले स्वामी अग्निवेश बिग बॉस में भी जा चुके हैं. 2010 में वो चार दिनों के लिए 8 से 11 नवंबर तक बिग बॉस में रहे थे. अब वो नहीं हैं. अब है तो सिर्फ उनका काम, जिसमें उन्होंने बच्चों से लेकर मजदूरों तक के लिए और कन्या भ्रूण हत्या से लेकर महिलाओं की मुक्ति के लिए कई आंदोलन चलाए और इसके लिए उन्हें हमेशा याद किया जाएगा.
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