नई दिल्ली: नब कुमार सरकार, जतिन चटर्जी, ओंकारनाथ ये सब नाम एक ही व्यक्ति स्वामी असीमानंद के हैं जिन्हें मक्का मस्जिद विस्फोट मामले में आज बरी किया गया.  नाम भले ही कई हो लेकिन उनकी निष्ठा सिर्फ भगवा के प्रति है. पश्चिम बंगाल के हुगली जिले के कमारपुकर गांव में जन्मे नब कुमार सरकार साल 2010 में तब राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आए जब सीबीआई ने उन्हें हैदराबाद की मक्का मस्जिद विस्फोट में कथित भूमिका के लिए गिरफ्तार किया था. वह स्वामी असीमानंद के नाम से लोकप्रिय हैं. मक्का मस्जिद में 18 मई 2007 को शुक्रवार की नमाज के दौरान एक शक्तिशाली बम विस्फोट में नौ लोग मारे गए और 58 व्यक्ति जख्मी हुए थे.


पिछले साल अजमेर विस्फोट मामले में बरी हो चुके हैं असीमानंद


66 साल के स्वयंभू संन्यासी इसके बाद दो अन्य आतंकवादी घटनाओं में आरोपी के तौर पर नामजद हुए. उसी साल 11 अक्तूबर 2007 को अजमेर के ख्वाजा चिश्ती की दरगाह में हुए विस्फोट और 17-18 फरवरी 2007 को समझौता एक्सप्रेस विस्फोट मामले में भी उन्हें आरोपी बनाया गया. सबूतों के अभाव में आज वह दूसरी बार बरी हुए. पिछले साल मार्च में अजमेर विस्फोट मामले में राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) की विशेष अदालत ने उन्हें बरी कर दिया था. एक अधिकारी ने बताया कि असीमानंद के खिलाफ अब केवल समझौता मामले में अदालत में सुनवाई चलेगी.


तेज-तर्रार वक्ता के तौर पर मशहूर हुए असीमानंद


साधारण परिवार से आने वाले असीमानंद ने साइंस में ग्रेजुएशन 1971 में पूरा किया लेकिन वह स्कूल के दिनों से ही दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े रहे और राज्य के पुरुलिया और बांकुड़ा जिलों में वनवासी कल्याण आश्रम के लिए काम करते रहे. जांचकर्ताओं ने बताया कि आश्रम में ही नब कुमार सरकार , स्वामी असीमानंद के नाम से प्रख्यात हुए. तेज-तर्रार वक्ता जल्द ही अल्पसंख्यक विरोधी भाषणों और ईसाई मिशनिरयों खिलाफ अभियान के लिए जाने जाने लगे और देश में अलग-अलग जगहों पर उन्हें बोलने के लिए निमंत्रण मिलने लगा.


आदिवासी कल्याण संगठन 'शबरी धाम' की शुरुआत की


1990 के दशक के अंत तक वह गुजरात के डांग जिले में रहने लगे जहां उन्होंने आदिवासी कल्याण संगठन की शुरुआत की जिसका नाम 'शबरी धाम' है. साल 2010 में न्यायाधीश के सामने दर्ज कराए गए बयान के मुताबिक असीमानंद ने कहा कि वह अल्पसंख्यक विरोधी भाषणों के लिए मशहूर थे. साल 2002 में गांधीनगर के अक्षरधाम मंदिर में आतंकवादी हमले में 30 श्रद्धालुओं के मारे जाने के बाद चीजें बदल गईं और वह इन मौत का बदला लेना चाहते थे. बाद में वह अपने बयान से मुकर गए और राष्ट्रीय जांच एजेंसी ने उनके खिलाफ बयान से मुकरने के आरोप नहीं लगाए.