केदारनाथ मंदिर और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को लेकर अपने बयानों के चलते उत्तराखंड के ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती काफी चर्चाओं में हैं. एक तरफ उन्होंने केदारनाथ मंदिर में 238 किलो के सोने की लूट का दावा किया है और उसकी तर्ज पर दिल्ली में बनाए जा रहे केदारनाथ मंदिर पर भी आपत्ति जताई. वहीं, दूसरी तरफ उद्धव ठाकरे के साथ विश्वासघात होने की बात कहकर उन्होंने महाराष्ट्र की राजनीति गरमा दी है. सीएम एकनाथ शिंदे की शिवसेना ने उनके बयान की निंदा की और कहा कि स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती धार्मिक कम और राजनीतिक ज्यादा हैं.


ये पहली बार नहीं है जब उनके बयानों से सियासत गरमाई है. इससे पहले अयोध्या राम मंदिर के उद्घाटन समारोह के दौरान भी वह खूब चर्चा में रहे. उनसे जुड़ा एक और किस्सा है, जिसमें समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव को उनके शिविर जाकर उनसे माफी मांगनी पड़ गई थी.


साल 2021 में अखिलेश यादव ने हरिद्वार में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के शिविर में जाकर क्षमा मांगी थी. उस समय स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती शंकराचार्य नहीं थे, वह शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद के शिष्य थे. अखिलेश ने वाराणसी में गणेश प्रतिमा विसर्जन के दौरान छह साल पहले हुए लाठीचार्ज के लिए यह माफी मांगी थी. 


अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बताया, 'जब हमें पता चला कि अखिलेश यादव आ रहे हैं तो हम सोच रहे थे कि उनसे बात करेंगे कि ये आपने क्या किया है, लेकिन अखिलेश यादव ने शिविर में आते ही हाथ जोड़कर कहा- मैं शरणागत हूं. शरणागत शब्द से हमारे मन में विचार आया कि कोई व्यक्ति शरण में आया है तो उसको स्वीकार करना चाहिए.' स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने आगे कहा कि शास्त्रों में शरणागत को छोड़ने का नियम ही नहीं है. वहीं, अगर कोई सिर्फ क्षमा मांग लेता है तो इससे ही क्षमा हो जाती है. क्षमा मांगने पर मना करने का नियम हमारी संस्कृति में नहीं है.


शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि अखिलेश यादव को लेकर कुछ लोगों ने बताया भी कि वह अपनी गलती को लेकर पश्चाताप कर रहे थे और उन्होंने कहा कि भविष्य में ऐसी गलती नहीं होगी. शंकराचार्य ने कहा कि अगर कोई गलती करता है और पश्चाताप कर लेता है तो पश्चाताप की आग बड़ी से बड़ी गलती को गला देती है.


क्या था पूरा मामला?
यह मामला साल 2015 का है, जब उत्तर प्रदेश में सपा की सरकार थी और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री थे. उस समय वाराणसी में प्रशासन ने संतों को गंगा में गणेश प्रतिमा विसर्जन करने नहीं दिया था. इस बात से नाराज होकर संत और बुटक श्रीविद्यामठ प्रमुख स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती के साथ गंगा तट पर धरने पर बैठ गए थे. तब संतों को हटाने के लिए लाठीचार्ज किया गया और इसमें स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती और अन्य संतों को चोटें लगी थीं.


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