नई दिल्लीः धर्म, आध्यात्म, ज्ञान-विज्ञान और संस्कृति. जब इन सबका एक साथ जिक्र आता है तो सबसे पहला नाम आता है स्वामी विवेकानंद का. भारतीय इतिहास की सबसे महान हस्तियों में उनका शुमार है. अपने अल्प जीवनकाल में ही उन्होंने भारतीय संस्कृति और आध्यात्म की छाप और पहचान दुनिया के सामने पेश की थी, जिससे खास तौर पर पश्चिमी देश काफी प्रभावित हुए थे. आज ही के दिन 1902 में पश्चिम बंगाल के बेलूर मठ में उनका निधन हो गया था.


विश्व बंधुत्व का दिया संदेश


महज 39 साल का जीवन जीने वाले स्वामी विवेकानंद के जन्मदिवस (12 जनवरी) को तो देश में युवा दिवस के रूप में मनाया ही जाता है, लेकिन उनके समाधि दिवस के दिन भी उन्हें उतनी ही श्रद्धा से याद किया जाता है. उन्होंने विश्व बंधुत्व से लेकर धार्मिक कट्टरता के खिलाफ संदेश का प्रसार किया.


1893 में अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म सम्मेलन में दिया उनका भाषण आज भी किसी भारतीय के द्वारा दिए गए सबसे प्रभावी भाषणों में माना जाता है.


अपने संबोधन में स्वामी विवेकानंद ने सांप्रदायिकता, धार्मिक कट्टरता और हिंसा का जिस तरह से उल्लेख किया था वह आज सवा सौ साल के बाद भी उतने ही भयावह रूप में उपस्थित हैं. उन्होंने कहा था कि अगर यह बुराइयां न होतीं तो दुनिया आज से कहीं बेहतर जगह होती.


स्वामी विवेकानंद ने अपने गुरु रामकृष्ण परमहंस के नाम पर रामकृष्ण मिशन की शुरुआत की थी, जो आज भी देश में सक्रिय है और आध्यात्मिक प्रचार प्रसार के साथ ही सामाजिक कार्यों में लगा रहता है.


आज भी प्रेरणा देती हैं उनकी शिक्षा


स्वामी विवेकानंद की शिक्षाओं ने देश के नागरिकों को उस वक्त भी जगाने का काम किया और आज भी वो उतनी ही सार्थक और व्यावहारिक हैं. खास तौर पर युवाओं के लिए उनकी शिक्षा का पालन बेहद उपयोगी रहा है.


उन्होंने कहा था कि ‘अगर किसी दिन आपके सामने कोई समस्या न आए, तो मान लेना कि आप गलत रास्ते पर चल रहे हैं’. इसी तरह उन्होंने एक वक्त में एक ही कार्य पर ध्यान केंद्रित करने की सीख भी दी थी और कहा था कि उस काम को करते वक्त सब कुछ भूलकर पूरी आत्मा उसमें ही लगा देनी चाहिए.


उनकी सबसे प्रेरक विचारों में से एक था- ‘उठो, जागो और जब तक अपने लक्ष्य को प्राप्त न कर लो, तब तक रुकना नहीं है.’


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