विरुधुनगर: तमिलनाडु के शिवकाशी के पुधूपट्टी गांव में अर्जुन नदी के तट पर एक 1200 साल पुराना मंदिर मिला है. जो पूरी तरह से चूना पत्थर का बना हुआ है. तीन चैंबर वाले इस मंदिर को पहाड़ों को काटकर बनाया गया है. स्थानीय निवासियों को कुछ दिन पहले ही ये चूना पत्थरों से बड़ा अनोखा ढांचा दिखाई दिया.
मंदिर में नहीं है किसी देवी-देवता की मूर्ति
पुरातत्वविदों ने इस संरचना को रॉक-कट मंदिर बताया है. मंदिर के तीन कक्षों - गर्भगृह (गर्भगृह, अर्धमंडपम, और महा मंडपम) की पहचान की गई है. हालांकि तीनों कक्षों में किसी देवी-देवता की मूर्ति नहीं मिली है. 20 फीट लंबा चूना पत्थर का टीला शायद इसका प्रवेश द्वार रहा होगा. दीवारों पर और छत में सीमेंट के निशान हैं.
चूना पत्थर वाली इस संरचना क अंदर कई जगहों पर चूना पत्थर टूटकर गिर रहे हैं. महा मंडपम की छत में एक बड़ा छेद भी मिला है. पुरातत्वविदों का मानना है कि ये लगभग 100 साल पहले भक्तों द्वारा की गई मरम्मत का हिस्सा हो सकते हैं.
राज्य पुरातत्व विभाग के सेवानिवृत्त सहायक निदेशक डॉ सी संथालिंगम ने कहा, “मंदिर तीन पहलुओं में अद्वितीय है.''
पहला: यह एक संधारा-प्रकार का मंदिर है. भारत में संधारा-प्रकार के रॉक-कट मंदिर की इससे पहले कोई पहचान नहीं की गई है. इन मंदिरों में मंदिर के चारों ओर परिक्रमा मार्ग (प्रदक्षिणापाठ) है.
दूसरा: मंदिर में दो परिधि वाले मार्ग हैं, यह अपने आप में दुर्लभ है. जहां एक मार्ग अर्धमंडपम से दक्षिणावर्त दिशा में आगे बढ़ता है, वहीं दूसरा महामंडपम के पास है.
तीसरा: मंदिर को पूरी तरह से चूना पत्थर से तराशा गया है. उन्होंने कहा कि पत्थर को इसकी विशेषताओं के कारण एक अवर प्रकार माना जाता है.यही कारण है कि मंदिर में कोई कलात्मक डिजाइन, मूर्तिकला या नक्काशी नहीं है. गर्भगृह में एक पत्थर की नाग प्रतिमा है. सथालिंगम ने कहा कि स्थानिय लोगों ने पूजा पाठ करने के लिए इसे एक सदी पहले वहां रखा होगा.
'पांडियन युग' से मिलता जुलता है मंदिर
सथालिंगम ने कहा कि ये मंदिर प्रारंभिक-पांडियन युग का है, लगभग 8वीं शताब्दी ई.पू. उन्होंने कहा कि यह तिरुचेंदुर में वल्ली गुफा मंदिर की तरह दिखता है, जो बलुआ पत्थर से बना हुआ है.
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