तमिलनाडु की 'मुफ्त वाली राजनीति' राज्य पर पड़ रही भारी, लगातार बढ़ता गया है कर्ज
पूर्व मुख्यमंत्री कामराज से लेकर एमजी रामचंद्रन, करुणानिधि से लेकर जे जयललिता तक सभी ने जनता का वोट अपनी झोली में करने के लिए मुफ्त वाले एलान किए. राज्य की मौजूदा राजनीति पर भी इसका असर जारी है, राजनीतिक दलों के घोषणापत्र इस बात की तस्दीक करते हैं.
चेन्नई: तमिलनाडु की राजनीति में मुफ्त कल्चर 60 के दशक से ही रहा है. कांग्रेस के मुख्यमंत्री कामराज ने 1960 में मुफ्त शिक्षा और मिड डे मील दिया वहां से फिर यह मुफ़्त कल्चर नया मोड़ लेता रहा. या ये कहें कि कामराज द्वारा मुफ्त शिक्षा और मिड डे मील को बाकि नेता दूसरे चरम पर ले गए. अन्नादुरई ने 1967 में 1 रुपए में 4.5 किलो चावल दिया. एमजी रामचंद्रन ने 70 के दशक में मद्रास जल संकट के दौरान फ्री प्लास्टिक कैन मुफ़्त दिए. 1996 के बाद अब यह और ज्यादा चरम पर पहुंचा. कॉम्पिटिटिव पॉपुलिज्म यानी पार्टियों के बीच लोकलुभावन प्रतिस्पर्धा बढ़ती ही गई.
मुफ्त-मुफ्त-मुफ्त वाली राजनीति के बीच नकदी की खुराक देकर भी वक्त वक्त पर वोट मांगे जाते रहे हैं. 2006 के बाद फ्रीबी राजनीति मानो एआईएडीएमके और डीएमके के बीच में एक प्रतिस्पर्धा बन गई. तब करुणानिधि ने लोगों को मुफ़्त कलर टीवी और मुफ़्त सिलिंडर बांटे, जिसके बाद से अब तक फ्री राजनीति चरम पर है. 2006 के घोषणापत्र में करुणानिधि की पार्टी डीएमके ने मुफ्त कलर टीवी, किसानों को बिजली और कर्ज माफी की घोषणा की थी. यहां तक कि दो रुपए प्रति किलो चावल और जिनके पास जमीन नहीं उन्हें दो एकड़ जमीन, फ्री गैस, 300 रुपए बेरोजगारी भत्ता घोषित हुआ था. इसके बलबूते डीएमके ने अल्पमत की सरकार बनाई और अपने वादों को पूरा करने के लिए करदाताओं का पैसा और कर्ज लेकर राजस्व का बड़ा हिस्सा इस पर खर्च किया.
इसके बाद प्रतिस्पर्धा बढ़ी और जे जयललिता ने 2011 में इस फ्रिबी कल्चर को और आगे बढ़ाते हुए और करुणानिधि के कलर टीवी को टक्कर देने के लिए फ्री मिक्सर ग्राइंडर और 11-12वीं और कॉलेज के छात्रों के लिए फ्री लैपटॉप की घोषणा की. गरीब मछुआरों को 4000 रुपए का वादा किया गया. 2016 के चुनाव में महिलाओं के लिए फ्रीबी में काफी चीजे जोड़ी गईं. इसका नतीजा यह हुआ कि 2011 में और 2016 में जयललिता ने बड़ी जीत हासिल की. यहां तक कि इसका फायदा के जयललिता को 2014 के लोकसभा चुनाव में भी हुआ था. इन वादों में शादी के लिए 4 ग्राम सोना और 50000 रुपया शामिल था. गर्भवती महिलाओं को 12000 रुपए, मुफ्त स्कूल यूनिफॉर्म, मुफ्त जूते, 20 किलो चावल और 20 लीटर पानी इत्यादि शामिल किया गया था. यहां तक कि महिलाओं को सब्सिडाइज्ड स्कूटर भी दिए गए.
जयललिता यहीं नहीं रुकीं. गरीब लोगों के लिए फ्री खाना. अम्मा कैंटीन बनाया गया. सब्सिडाइज्ड सॉल्ट, सब्सिडाइज्ड मिनरल वाटर, सब्सिडाइज्ड मेडिसिन और सब्सिडाइज्ड सीमेंट जैसी कई लोकलुभावन घोषणाएं कर उसे लागू भी किया गया. नतीजा यह हुआ कि यह स्कीम इतनी ज्यादा प्रसिद्ध हुई कि दूसरे राज्यों में भी इन तमाम स्कीम्स को लागू किया गया. चुनाव में जे जयललिता को इसका फायदा भी काफी हुआ. 2014 के लोकसभा चुनाव में डीएमके का सूपड़ा साफ कर दिया.
फ्री कल्चर की प्रतिस्पर्धा इतनी ज्यादा बढ़ गई है कि अब हर पार्टी फ़्रीबी के भरोसे बैठी दिखाई दे रही है. इस बार के चुनाव में एआईएडीएमके मुफ्त वॉशिंग मशीन, डाटा कनेक्शन, मुफ्त केबल कनेक्शन, मुफ्त सिलेंडर, मुफ्त सोलर स्टोव जैसी घोषणा की है. भला प्रतिस्पर्धा में डीएमके पीछे क्यों रहती? डीएमके ने भी अपने 2016 असेंबली इलेक्शन के वादों को दोहराया है. इसमें फ्री टेबलेट, फ्री इंटरनेट, सरकारी जॉब और फ्यूल दाम को कम करना इत्यादि शामिल है. तमिलनाडु के फ्री-फ्री-फ्री कल्चर में नुकसान राज्य का ही हो रहा है. जे जयललिता के कार्यकाल में जीएसडीपी ऋण लगातार बढ़ा है. जो ऋण 2011 में 16.92 फीसदी था वो 2016 तक 20.17 फीसदी हो गया.
2006 में जब करुणिनिधि सत्ता में आए थे तब राज्य का ऋण 57 हजार 457 करोड़ रुपये था. उनके कार्यकाल में यह ऋण बढ़कर एक लाख एक हजार 349 करोड़ हो गया. फिर 2011 में जयललिता सत्ता में आई. तब पांच साल के उनके कार्यकाल में ऋण बढ़कर 1 लाख 81 हजार 36 करोड़ पहुंच गया. जयललिता दोबारा 2016 में सत्ता में आई तब से 2017 में उनके निधन के बाद अब एडप्पाडी के पलनिस्वामी सरकार चला रहे हैं, अब तक यह ऋण 2011 से इन 10 सालों में 5 गुना बढ़कर 4 लाख 82 हजार 502 करोड़ हो चुका है. माना जा रहा है कि 2022 तक यह ऋण 5 लाख को पर कर 5 लाख 70 हजार 189.29 रुपये हो जायेगा. हालिया जीएसडीपी कर्ज भी 21.83 फीसदी ऊपर जा चुका है. यानी साफ है कि जो 'फ्री-फ्री-फ्री' की राजनीति तमिलनाडु में एक प्रतिस्पर्धा के तौर पर चल रही है उससे दरअसल नुकसान राज्य का ही हो रहा है. क्योंकि फिसकल फैक्टर के हिसाब से राज्य का की पीछे जा रहा है.