Tamil Nadu CM letter to PM Modi on Hindi: तमिलनाडु के मुख्यमंत्री (Tamil Nadu CM) एमके स्टालिन (MK Stalin) ने संसदीय राजभाषा समिति ((Parliamentary Committee on Official Language) की ओर से राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) को सौंपी गई रिपोर्ट को लेकर हिंदी भाषा (Hindi Language) पर आपत्ति जताते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को एक पत्र लिखा है. उन्होंने अपने पत्र की कॉपी को ट्वीट भी किया है. उन्होंने ट्वीट में यहा तक लिखा कि ऐसे प्रयास केंद्र और राज्य के संबंधों की भावना को खतरे में डालते हैं. उन्होंने कहा कि 8वीं अनुसूची में सभी भाषाओं को राजभाषा बनाएं.


तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने कहा, ''मैं माननीय प्रधानमंत्री से अपील करता हूं कि हर संभव तरीके से हिंदी थोपने के केंद्र सरकार के आक्रामक प्रयासों के बाद गैर-हिंदी भाषी राज्यों में उचित आशंका और असंतोष का जायजा लें. ये हमारे संविधान के संघीय सिद्धांतों के खिलाफ हैं.''


स्टालिन ने क्या लिखा पत्र में
 
तमिलनाडु के सीएम स्टालिन ने पीएम को भेजे अपने पत्र में लिखा है, ''हिंदी थोपने के हाल के प्रयास अव्यावहारिक और चरित्र में विभाजनकारी हैं जो कई मायनों में गैर-हिंदी भाषी लोगों को बेहद नुकसानदेह स्थिति में डालते हैं. यह केवल तमिलनाडु ही नहीं, बल्कि मातृभाषा का सम्मान और कद्र करने वाले किसी भी राज्य को स्वीकार्य नहीं होगा. 


केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता वाली राजभाषा समिति ने पिछले महीने 9 सितंबर को रिपोर्ट का 11वां वॉल्यूम राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को सौंपा था. शाह और समिति के अन्य सदस्यों की ओर से राष्ट्रपति मुर्मू को सौंपी गई रिपोर्ट का कंटेंट सार्वजनिक नहीं है लेकिन तमिलनाडु और केरल के मुख्यमंत्रियों ने इसे लेकर आपत्ति जताई है.


पीएम मोदी से तमिलनाडु के सीएम का आग्रह


स्टालिन ने पत्र में लिखा कि केंद्र सरकार की कोशिश तमिल समेत सभी भाषाओं के बढ़ावा देने की होनी चाहिए. उन्होंने लिखा कि वैज्ञानिक विकास और तकनीकी सुविधाओं को ध्यान में रखते हुए सभी भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए और सभी भाषाओं के बोलने वालों के लिए बराबर शिक्षा और रोजगार के संबंध में प्रगति के रास्ते खुले रखना चाहिए. 8वीं अनुसूची में तमिल समेत सभी भाषाओं को शामिल करने के लिए केंद्र सरकार का दृष्टिकोण होना चाहिए.


स्टालिन ने लिखा, ''मेरा आग्रह है कि रिपोर्ट में सिफारिश किए गए विभिन्न तरीकों से हिंदी थोपने के प्रयासों को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए और भारत की एकता की गौरवमयी लौ हमेशा के लिए ऊंची रखी जानी चाहिए.





वहीं, दक्षिण भारतीय राज्यों के मुख्यमंत्रियों की ओर से आपत्ति उठाए जाने के बाद समिति ने कह चुकी है राष्ट्रपति को सौंपी गई रिपोर्ट गोपनीय है. समिति ने कहा था कि मीडिया रिपोर्ट्स में भ्रामक जानकारियां फैलाई जा रही है.


क्या है संसदीय राजभाषा समिति?


राजभाषा पर संसद की समिति का गठन 1976 में राजभाषा अधिनियम 1963 की धारा 4 के तहत किया गया था. अधिनियम की धारा 4 कहती है, ''राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से संसद के किसी भी सदन में इस आशय का प्रस्ताव पेश किए जाने और दोनों सदनों से इसे पारित किए जाने पर राजभाषा संबंधी एक समिति गठित की जाएगी.''


समिति की अध्यक्षता केंद्रीय गृह मंत्री करते हैं और 1963 के अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार इसमें 30 सदस्य हैं, जिनमें 20 लोकसभा सांसद और 10 राज्यसभा सांसद शामिल हैं. समिति का कार्य आधिकारिक कामों के लिए हिंदी के प्रयोग में हुई प्रगति की समीक्षा करना और सरकारी संचार में हिंदी के इस्तेमाल को बढ़ाने के लिए सिफारिशें करना है. समिति में बीजेपी का सबसे बड़ा प्रतिनिधित्व है. ज्यादातर सदस्य सत्तारूढ़ दल के हैं. इसके अलावा, समिति में कांग्रेस, बीजू जनता दल, जेडीयू, शिवसेना, लोक जनशक्ति पार्टी, आम आदमी पार्टी और तेलुगू देशम पार्टी के सांसद शामिल हैं.


समिति ने क्या सिफारिश की?


गृह मंत्री अमित शाह और समिति के अन्य सदस्यों की ओर से 9 सितंबर को राष्ट्रपति मुर्मू को सौंपी गई रिपोर्ट की सामग्री सार्वजनिक नहीं है लेकिन समिति के करीबी सूत्रों ने कहा कि इसमें लगभग 100 सिफारिशें की गई हैं, जिसमें हिंदी भाषी राज्यों के आईआईटी, आईआईएम और केंद्रीय विश्वविद्यालयों में हिंदी को शिक्षा का माध्यम बनाने की सिफारिश की गई है.


बता दें कि केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार (16 अक्टूबर) को मध्य प्रदेश के भोपाल में एमबीबीएस कोर्स का हिंदी वर्जन लॉन्च किया. इस प्रकार मध्य प्रदेश हिंदी में एमबीबीएस का पाठ्यक्रम शुरू करने वाला पहला राज्य बन गया है. शुरुआत में हिंदी में अध्ययन के लिए तीन विषयों का चयन किया गया है, जिनमें एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और बायोकैमिस्ट्री शामिल हैं.


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