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रजनीकांत को अवॉर्ड मिलने से बदलेगी दक्षिण भारत की राजनीति?

तमिलनाडु विधानसभा चुनाव में जारी गहमा-गहमी के बीच रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित करने का फैसला लिया गया है.

नई दिल्ली: दक्षिणी फिल्मों के सुपर स्टार बनने से लेकर बॉलीवुड में अपनी अलग पहचान बनाने वाले रजनीकांत को दादा साहेब फाल्के अवॉर्ड देकर केंद्र सरकार ने एक साथ कई निशाने साधने की कोशिश की है. तमिलनाडु के विधानसभा चुनाव से ऐन पहले फ़िल्म जगत के इस सर्वोच्च सम्मान के एलान को लेकर तमाम सवाल उठ रहे हैं और जाहिर है कि विपक्षी दल भी इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ मुद्दा बनाएंगे.

लेकिन सरकार का अपना तर्क है जो थोड़ा वाजिब भी लगता है. शायद इसीलिए आज इस अवॉर्ड का एलान करते वक़्त सूचना-प्रसारण मंत्री प्रकाश जावडेकर को ये कहना पड़ा कि कोरोना महामारी के बीच अगर हम इसका एलान करते तो सब हाथ धोकर हमारे पीछे पड़ जाते कि सरकार को कोरोना से ज्यादा चिंता इस अवॉर्ड को देने की है. हालांकि यह अवॉर्ड साल 2019 के लिए उन्हें दिया जाएगा. जावड़ेकर ने अपने ट्वीट में इसकी घोषणा करते हुए रजनीकांत को भारतीय सिनेमा इतिहास के सबसे महान अभिनेताओं में से एक बताया है.

वैसे साल 2018 में यह पुरस्कार सदी के महानायक अमिताभ बच्चन और साल 2017 में भूतपूर्व बीजेपी नेता और अभिनेता विनोद खन्ना को दिया गया था. लेकिन सियासी गलियारों में एक सवाल तैर रहा है कि रजनीकांत को सक्रिय राजनीति में आने से रोकने की भूमिका क्या चार महीने पहले ही तैयार हो गई थी? इसकी वजह भी है कि पिछले साल ही रजनीकांत ने अपनी एक पार्टी बनाई थी, तब सभी को ये लगा था कि वह तमिलनाडु के चुनाव-मैदान में भी उतरेगी.

दक्षिण से लेकर उत्तर भारत में ये चर्चा जोरों पर थी कि उम्र के 71वें साल में आ चुके रजनीकांत अब चुनावी जंग में भी अपनी किस्मत आजमाएंगे. लेकिन बीते साल दिसंबर में उन्होंने अचानक एलान कर दिया कि वे चुनावी राजनीति से बाहर रहेंगे. उनके फैन्स के साथ ही दक्षिण भारत के राजनीतिक पंडित भी इस एलान से हैरान रह गए थे कि आखिर रजनीकांत के इस फैसले को क्या समझा जाए.

हालांकि ये तो रजनीकांत ही जानते होंगे कि उन्होंने राजनीति में आते-आते अपने कदम क्यों रोक लिए लेकिन उनके अभिनय को भला कौन भुला सकता है. अपनी एक्टिंग के दम पर सिनेमा के जरिये लोगों के दिल में आज भी उन्होंने अलग ही जगह बनाई हुई है. उनके सिगरेट को फ्लिप करने का अंदाज, सिक्का उछालने का तरीका और चश्मा पहनने का तरीका बहुत से लोग कॉपी करने की कोशिश करते हैं. देश ही नहीं विदेशों में भी रजनीकांत के स्टाइल की कॉपी की गई.

वैसे रजनीकांत का असली नाम शिवाजी है. उनका जन्म 12 दिसंबर 1950 को बेंगलुरू में एक मराठी परिवार में हुआ था. रजनीकांत ने अपनी मेहनत और कड़े संघर्ष की बदौलत टॉलीवुड में ही नहीं बॉलीवुड में भी काफी नाम कमाया.

साउथ में तो रजनीकांत को थलाइवा और भगवान कहा जाता है. रजनीकांत ने 25 साल की उम्र में अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की. उनकी पहली तमिल फिल्म ‘अपूर्वा रागनगाल’ थी. इस फिल्म में उनके साथ कमल हासन और श्रीविद्या भी थीं.

1975 से 1977 के बीच उन्होंने ज्यादातर फिल्मों में कमल हासन के साथ विलेन की भूमिका ही की. लीड रोल में उनकी पहली तमिल फिल्म 1978 में ‘भैरवी’ आई. ये फिल्म काफी हिट रही और तबसे ही रजनीकांत स्टार बन गए.

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