चेन्नई: कोरोना महामारी के बीच तमिलनाडु सरकार ने सांडों को काबू में करने का परंपरागत खेल जल्लीकट्टू के आयोजन को मंजूरी दे दी है, हालांकि जल्लीकट्टू के आयोजन को कुछ शर्तों के साथ मंजूरी दी गई है.


सरकार ने इस खेल के आयोजन के लिए कुछ गाइडलाइंस जारी की हैं. इनके मुताबिक, जल्लीकट्टू में 150 से ज्याद लोग शामिल नहीं हो पाएंगे. खेल में भाग लेने वाले खिलाड़ियों को कोरोना वायरस निगेटिव होने का सर्टिफिकेट देना होगा. इसके अलावा आयोजन स्थल पर दर्शकों की कुल क्षमता का केवल 50 फीसदी लोगों को ही इकट्ठा होने की अनुमति होगी.


क्यों मनाते हैं जलीकट्टू


जलीकट्टू तमिलनाडु में एक बहुत पुरानी परंपरा है. जलीकट्टू तमिलनाडु में 15 जनवरी को नई फसल के लिए मनाए जाने वाले त्योहार पोंगल का हिस्सा है. जलीकट्टू त्योहार से पहले गांव के लोग अपने अपने बैलों की प्रैक्टिस करवाते हैं. जहां मिट्टी के ढेर पर बैल अपनी सींगो को रगड़ कर जलीकट्टू की तैयारी करता है. बैल को खूंटे से बांधकर उसे उकसाने की प्रैक्टिस करवाई जाती है, ताकि उसे गुस्सा आए और वो अपनी सींगो से वार करे.


400 साल पुरानी परंपरा है जलीकट्टू


तमिलनाडु में जलीकट्टू 400 साल पुरानी परंपरा है. जो योद्धाओं के बीच लोकप्रिय थी. प्राचीन काल में महिलाएं अपने पति को चुनने के लिए जलीकट्टू खेल का सहारा लेती थीं. जलीकट्टू खेल का आयोजन स्वंयवर की तरह होता था जो कोई भी योद्धा बैल पर काबू पाने में कामयाब होता था महिलाएं उसे अपने पति के रूप में चुनती थीं.जलीकट्टू खेल का ये नाम 'सल्ली कासू' से बना है. सल्ली का मतलब सिक्का और कासू का मतलब सींगों में बंधा हुआ.


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