Hindi Controversy: तमिलनाडु में हिंदी पर मचे घमासान के बीच सीएम स्टालिन ने बड़ा कदम उठाया है. राज्य सरकार ने हिंदी में रुपया का चिह्न '₹' हटा दिया है. बताया जा रहा है कि हिंदी के अक्षर की जगह इसे तमिल अक्षर से बदल दिया गया है. ये फैसला ऐसे समय में लिया गया, जब स्टालिन चेन्नई से लेकर दिल्ली तक राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू करके हिंदी थोपने का आरोप लगा रहे हैं. 


तमिलनाडु सरकार ने 2025-26 के लिए बजट के लिए जो प्रचार सामग्री तैयार की, उसमें 'रुपये' का चिह्न तमिल अक्षर से बदल दिया गया. इसे शुक्रवार को सुबह विधानसभा में पेश किया जाएगा. हालांकि इसको लेकर आधिकारिक तौर पर कुछ नहीं बताया गया है. एनडीटीवी से बात करते हुए बीजेपी प्रवक्ता नारायण तिरुपति ने कहा कि रुपये का सिंबल तो पूरे देश के लिए एक है. उन्होंने कहा कि स्टालिन के इस कदम से लग रहा है मानो वो कहना चाहते हैं कि 'तमिलनाडु भारत से अलग है.'


एनईपी को भगवा नीति बता चुके हैं स्टालिन


तमिलनाडु सीएम स्टालिन केंद्र सरकार की नई शिक्षा नीति को 'भगवा नीति' बता चुके हैं. उन्होंने कहा था, 'एनईपी कोई शिक्षा नीति नहीं, यह भगवा नीति है. इसका इसका उद्देश्य भारत का विकास करना नहीं, बल्कि हिंदी का विकास करना है. हम एनईपी का विरोध करते हैं क्योंकि यह शिक्षा क्षेत्र में तमिलनाडु की प्रगति को पूरी तरह से नष्ट कर देगी.'


सामाजिक न्याय को स्वीकार नहीं करती एनईपी: स्टालिन


स्टालिन का कहना है कि एनईपी आरक्षण को स्वीकार नहीं करती जो कि सामाजिक न्याय है. उनका आरोप है, 'एनईपी अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्गों को सहायता राशि देने से इनकार करती है'. बीजेपी पर निशाना साधते हुए स्टालिन ने कहा कि पिछले 10 सालों में तमिलनाडु का विकास बुरी तरह प्रभावित हुआ है.


एनईपी को लेकर क्या है ताजा विवाद? 


तमिलनाडु सरकार ने जब नई शिक्षा नीति के प्रमुख पहलुओं खासतौर पर तीन भाषा फॉर्मूले को लागू करने से इनकार कर दिया तो केंद्र सरकार ने राज्य को समग्र शिक्षा अभियान (SSA) के तहत दी जाने वाली  सहायता राशि की 573 करोड़ रुपये की पहली किस्त पर रोक लगा दी. जिसके बाद स्टालिन केंद्र पर भड़के हुए हैं. नीति से जुड़े नियमों के अनुसार, सर्व शिक्षा अभियान के लिए वित्तीय सहायता हासिल करने के लिए राज्यों का एनईपी के दिशा-निर्देशों पर अमल करना अनिवार्य है.


क्या है तीना भाषा फॉर्मूला? 


एनईपी 2020 में प्रस्तावित तीन भाषा फॉर्मूला कहता है कि छात्रों को तीन भाषाएं सीखनी चाहिए, जिनमें से कम से कम दो भारतीय मूल भाषा होनी चाहिए. यह फॉर्मूला सरकारी और प्राइवेट दोनों स्कूलों पर लागू होगा और राज्यों को बिना किसी दबाव के भाषाएं चुनने की छूट देता है. इसमें स्पष्ट लिखा हुआ है कि किसी भी राज्य पर कोई भी भाषा नहीं थोपी जाएगी. यहां तक कि छात्र खुद सीखने के लिए कोई तीन भाषा चुन सकते हैं, लेकिन इनमें से दो भाषाएं भारतीय होनी चाहिए.


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