नई दिल्ली: भारत में निर्वासित बांग्लादेश की मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने मृत्यु के बाद शरीर को दफनाने की बजाय उसे दान करने का फैसला किया है. उन्होंने कहा कि वह वैज्ञानिक रिसर्च और शिक्षण से जुड़े कार्यों के लिए शरीर को एम्स को दान कर रही हैं. उन्होंने ट्विटर पर दान प्रक्रिया से जुड़े एक स्लिप साझा करते हुए ट्विटर पर लिखा, ''मैं मृत्यु के बाद अपना शरीर एम्स को वैज्ञानिक रिसर्च और शिक्षण से जुड़े कार्यों के लिए दान कर रही हूं.''
55 वर्षीय तस्लीमा नसरीन साल 1994 में बांग्लादेश छोड़ने के बाद से ही भारत में रह रही हैं. कट्टरपंथियों से अपनी जान को खतरे के मद्देनजर उन्होंने बांग्लादेश छोड़ा. नसरीन ने भारत की स्थायी नागरिकता के लिए भी आवेदन दे रखा है, लेकिन गृह मंत्रालय द्वारा अभी उसपर कोई निर्णय नहीं लिया गया है. लेखिका ने सांस्कृतिक और भाषाई समानता का हवाला देते हुए भारत में खासकर पश्चिम बंगाल में रहने की इच्छा जताई है. मुस्लिमों के एक धड़े द्वारा सडकों पर विरोध-प्रदर्शन के कारण साल 2007 में उन्हें कोलकाता छोड़ने को मजबूर होना पड़ा था.
आपको बता दें की भारत में शरीर दान के लिए एनाटॉमी एक्ट 1984 है. इसके तहत कोई भी व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार शरीर दान कर सकता है. मृत शरीद का इस्तेमाल साइंस, हेल्थ, रिसर्च के क्षेत्र में किया जाता है. मेडिकल रिसर्च के लिए कम्युनिस्ट लीडर ज्योति बसु और जनसंघ नेता नानाजी देशमुख ने भी शरीर दान कर दिया था.
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