वकालत के साथ-साथ टैक्सी सर्विस चलाता था वकील, सुप्रीम कोर्ट ने नहीं दी राहत, एक साल तक नहीं कर पाएंगे प्रैक्टिस
Supreme Court Taxi Case: सुप्रीम कोर्ट ने उस व्यक्ति की याचिका खारिज कर दी है, जिसे टैक्सी सर्विस चलाने की वजह से पेशेवर कदाचार का दोषी पाया गया.
Advocate Taxi Case: देश की सर्वोच्च अदालत ने एक वकील को पेशेवर कदाचार (Professional Misconduct) के मामले में सजा दी है. वकील पर वकालत के साथ-साथ टैक्सी सर्विस चलाने का आरोप लगा और बाद में कोर्ट में यह साबित भी हो गया.
वकील ने सुप्रीम कोर्ट में काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) की अनुशासनात्मक समिति (Disciplinary Committee) के उस फैसले को चुनौती दी थी जिसमें कहा गया था कि वकालत के अलावा आरोपी वकील टैक्सी सर्विस का भी मालिक है. इसके बाद वकील को टैक्सी सर्विस चलाने के लिए दोषी पाया गया था. साथ ही उसे एक साल के लिए लॉ प्रैक्टिस (मुकदमा लड़ने) पर भी रोक लगा दी गई.
सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासनात्मक समिति के फैसले के खिलाफ अपीलकर्ता फूला राम जाट की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया. इसमें कहा गया कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया की अनुशासनात्मक समिति का फैसला दस्तावेजी साक्ष्य (Documentary Evidence) पर आधारित है. सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की सुनवाई न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति पंकज मिथल की पीठ कर रही थी. वकील ने खुद ही शीर्ष अदालत में बार काउंसिल ऑफ इंडिया के फैसले के खिलाफ याचिका लगाई थी.
टैक्सी सर्विस के मालिक होने के सबूत
लाइव एंड लॉ के मुताबिक, बार काउंसिल की अनुशासनात्मक समिति ने पाया कि अपीलकर्ता का टैक्सी सेवा चलाने का व्यवसाय था. अनुशासनात्मक समिति ने यह भी पाया कि व्यवसाय के लिए उपयोग किए गए वाहन के पंजीकृत मालिक (Registered Owner) और अपीलकर्ता के पहले नाम (First Name) में समानता है. इसके अलावा, अपीलकर्ता के पिता और पंजीकृत मालिक का नाम एक ही है और इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि टैक्सी को अपीलकर्ता के पते पर रजिस्टर किया गया था.
इसके अलावा अदालत ने अपीलकर्ता के खिलाफ एक और मामले में कदाचार का दोषी पाया है. इस मामले में पाया गया कि अपीलकर्ता ने एक सिविल मुकदमे में उसके भाई और मां का केस लड़ा था. फिर उसी मामले में अपनी मां की तरफ से भी केस लड़ा था, जिसे कोर्ट ने पेशेवर कदाचार के तौर पर देखा है. इन दोनों मामलों को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने वकील को एक साल तक किसी भी अदालत में मुकदमा लड़ने पर रोक लगा दी थी.
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