मछली कैसे बनी तेजस्वी यादव के गले की फांस? चुनावी माहौल में क्यों हो रहा इतना बवाल
7 महीने पहले तब भारत न्याय जोड़ो यात्रा के बीच राहुल गांधी लालू फैमिली के घर पहुंचे थे. सावन का महीना चल रहा था. लालू प्रसाद यादव ने उन्हेें बिहारी मटन बनाने की रेसिपी सिखाई थी. तब भी विवाद हुआ.
राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव और मुकेश साहनी की मछली पार्टी का वीडियो चुनावी माहौल में चर्चा का विषय बना हुआ है. मंगलवार (9 अप्रैल) को सोशल मीडिया के एक्स प्लेटफॉर्म पर वीडियो अपलोड किया गया था. उस दिन पहला नवरात्र था. तेजस्वी के हैंडल से वीडियो अपलोड हुआ. देखते ही देखते नवरात्री में तेजस्वी के मछली भोज पर विवाद खड़ा हो गया.
अब वीडियो के सत्य परीक्षण के प्रयोग से आपको समझाते हैं कि वीडियो पर राजनीतिक बवाल सही है या गलत? वीडियो के साथ हेडर दिया गया- चुनावी भागदौड़ और व्यस्तता के बीच हेलिकॉप्टर में भोजन. बाकायदा वीडियो पर डेट भी डाली गई है. दिनांक है 08/04/2024
अब पोस्ट की टाइमिंग गलत थी या विरोधियों की नीयत. ये बहस का विषय हो सकता है, लेकिन बिना तथ्यों की जांच के प्राइमाफेसी जो समझ में आया उस पर बड़े बड़े नेता ऊंचे-नीचे बयान देने लगे. नवरात्री के एक दिन पहले के मछली भोग को व्रत की पवित्रता से जोड़कर तेजस्वी यादव के हिन्दुत्व का टेस्ट करने लगे. सर्टीफिकेट भी बांटने लगे. वैसे हिन्दुत्व, धर्म कर्म और पवितत्रा पर सर्टिफिकेट बांटने की रिवायत नई नहीं हैं. एक खास वर्ग चुनावी सीजन में एक्टिव होता है.
7 महीने पहले तब भारत न्याय जोड़ो यात्रा के बीच राहुल गांधी लालू फैमिली के घर पहुंचे थे. सावन का महीना चल रहा था. खुद लालू प्रसाद यादव ने राहुल गांधी को बिहारी मटन बनाने की रेसिपी सिखाई थी. तब भी विवाद हुआ.
विरोधियों ने मछली की आंख पर चुनावी निशाना साधा और मछली चुनाव में धार्मिक मुद्दा बन गई. सीजनल सनातनी, अधर्मी, विधर्मी और भी ऐसे कई शब्द. वोट काटने के लिए राजनीति की पिच पर लॉन्च हो गए. अब कुछ सवाल हैं, जो आपके मन में भी जरूर उठ रहे होंगे.
- किसी का मछली खाना राजनीतिक मुद्दा कैसे हो सकता है?
- क्या खाने की आदत से धर्म और इंसान की पहचान होती है?
- क्या हिन्दू शाकाहारी होते हैं और मांस खाने वाले विधर्मी?
- क्या शाकाहारियों को ही भारत में रहने का हक है?
एक और बात.. जो आप भी अच्छे से जानते हैं. सोशल मीडिया के उदय के साथ ही झूठ एक बड़ी चुनौती बनकर उभरा है. किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म को ले लीजिए, चाहे फेसबुक हो, व्हॉट्सएप हो, इंस्टाग्राम हो. सोशल मीडिया के जितने भी फोरम हैं झूठ उनकी सवारी करता है और सीधे आपके घर में दाखिल हो जाता है.
कौन क्या खाता है, क्या पहनता है, ये हर किसी का व्यक्तिगत मुद्दा है. संविधान भी इसकी आजादी देता है, लेकिन देश में एक वर्ग ऐसा है. जो मांस मछली खाने वालों को खलनायक बना कर पेश करता है. भारत की 140 करोड़ आबादी है. भारत के 78.6 फीसद पुरुष मांस मछली खाते हैं. 65.6 फीसद महिलाएं मांसाहारी हैं. ये आंकड़े National Family Health Survey की रिपोर्ट पर आधारित हैं. देश में 80 फीसद हिंदू आबादी है और करीब 53 फीसद हिंदू नॉनवेज खाते हैं. ये अलग बात है कि कौन कब खाता है और कैसे खाता है, लेकिन एक बात क्लियर है कि ये कम से कम राजनीतिक मुद्दा तो नहीं होना चाहिए?
यहां क बड़े दार्शनिक की बात याद आती है कि जब सत्य अपने जूते बांध रहा होता है तो झूठ आधी दुनिया का चक्कर लगा चुका होता है. यानी सोशल मीडिया पर झूठ बड़ा नैरेटिव बनकर उभरा है, जिसके इस्तेमाल का आरोप राजनैतिक दलों पर भी लगता है.
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